विवाह (निकाह)(Marriage):-
परिभाषा–
बेली के अनुसार :- स्त्री पुरुष के समागम को वैध बनाने और संतान उत्पन्न करने के उद्देश्य से की गई संविदा है।
मुस्लिम विवाह के आवश्यक तत्व:–
1) प्रस्ताव (ईजब) और स्वीकृति (कबूल)– विवाह का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार से विवाह करने का प्रस्ताव करें और दूसरा उसे स्वीकार कर ले तभी विवाह पूर्ण होता है।
2) विवाह के पक्षकार सक्षम होने चाहिए:- सात वर्ष से पन्द्रह वर्ष के बीच विवाह की दशा में उनके संरक्षक की सहमति होनी चाहिए। पन्द्रह वर्ष की आयु के बाद वे स्वीकृति करने के लिए सक्षम है।
3) गवाह:- सून्नी में दो सक्षम गवाह होने चाहिए। दो पुरुष या एक पुरुष, दो स्त्री। शिया विधि में गवाह आवश्यक नहीं है।
4) एक ही बैठक:- प्रस्ताव और स्वीकृति दोनों पक्षकारो या उनके अभिकर्ताओ की उपस्थिति में होना जरूरी है ताकि दोनों पक्षकार एक दूसरे के कथन को सुन सके।
5) स्वतंत्र इच्छा और सहमति- पक्षकारों की सहमति भय, अनुचित दबाव या कपट से मुक्त होना जरूरी है। सहमति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है। मुस्कुराने हंसने या चुप रहने से भी सहमति हो सकती है लेकिन दबाव, धमकी, अनुचित असर से न ली गई हो।
6) मेहर:- वह धन जो पति द्वारा पत्नी को विवाह के प्रतिफल के रूप में दिया जाता है।
यह दो प्रकार का होता है–
1) अवधि के आधार पर:-
1) मेहर ए मुअज्जल
2) मेहर ए मुवज्जल
2) प्रकृति के आधार पर:-
1) मेहर ए मुसम्मा
2) मेहर ए मिस्ल
7) विधिक अनर्हता का अभाव:-
1) बातिल या शून्य विवाह:– व्यक्ति इन महिलाओं से विवाह नहीं कर सकता-
1) रक्त संबंध–
a) अपनी माता या दादी
b) अपनी पुत्री या पोत्री
C) अपनी बहन चाहे सगी हो या सौतेली
d) भाई की पुत्री या पौत्री
e) अपने पिता या माता की बहन।
ii) विवाह संबंध:-
a) पत्नी की माता या दादी
b) पत्नी की पुत्री या पौत्री
c) पिता या पितामह की पत्नी
d) पुत्र, पौत्र या नाती की पत्नी
3) धात्रेय संबंध– जबकि दो वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे ने अपनी माता के अलावा किसी अन्य स्त्री का दूध पिया है तो वह उसकी धाय माँ मानी जाती है। वह उसकी पुत्री से विवाह नहीं कर सकता।
2) फासिद या अनियमित विवाह-ऐसा विवाह अनियमित होता है जिसमे अवरोध रहता है और अवरोध दूर हो जाने के बाद वह नियमित हो जाता है। जो इन कारण से फासिद होता है-
1) अवैध संयोग:- इसका अर्थ है एक ही समय में परस्पर संबंध की दो स्त्रियों से विवाह करना कि यदि उनमें से एक पुरुष होता तो उनके बीच विवाह अवैध होता जैसे -दो बहनों से एक साथ विवाह।
ii) पांचवीं पत्नी से विवाह:- जब एक व्यक्ति एक समुय में चार से अधिक पत्नियां रखता हो।
ii) उचित गवाहों की अनुपस्थिति– गवाहों की अनुपस्थिति में किया गया विवाह अनियमित होता है। दो गवाहों के उपस्थिति आवश्यक है।
iv) धर्म में भिन्नता– शिया विधि में न तो पुरूष और न स्त्री किसी गैर मुस्लिम से विवाह कर सकता है ऐसा विवाह मान्य नहीं है शून्य होगा।
जबकि सुन्नी विधि में स्त्री किसी भी गैर मुस्लिम से विवाह नहीं कर सकती।
शिया विधि फासिद विवाह को मान्यता नहीं देती केवल वैध और शून्य विवाह को मान्यता देती है।
केस- अब्दुल लतीफ बनाम नियाज अहमद (1909)- कपट से कराया गया विवाह अमान्य होता है जब तक उसका अनुसमर्थन ना हो।
केस- एहसान हसन खान बनाम पन्नालाल (1929)- एक सुन्नी मुसलमान का गैर किताबिया स्त्री से विवाह केवल अनियमित है, शून्य नहीं क्योंकि ऐसे विवाह की संतान वैध मानी जाती है।
केस- मोहम्मद जैनबा बनाम अब्दुल रहमान (1945)– न्यायालय ने कहा कि प्रस्ताव करने और स्वीकृति देने का कोई रूप नहीं होता है। हालांकि शब्द इस तरह के होने चाहिए जिससे यह दर्शित हो कि पक्षकारों का आशय स्वीकृति के क्षण से ही दांपत्य संबंध स्थापित करने का है।
मुस्लिम विवाह संविदा है या संस्कार–
केस- अब्दुल कादिर बनाम सलीमा (1846)- जस्टिस महमूद ने कहा कि मुस्लिम विवाह एक सिविल संविदा है। मुस्लिम में विवाह एक संस्कार नहीं है बल्कि पूरी तरह से एक सिविल संविदा है।
केस- अनीसा बेगम बनाम मलिक मोहम्मद इस्तीफा (1933) मुख्य न्यायाधीश शाह सुलेमान ने कहा कि मुस्लिम विवाह एक सिविल संविदा और धार्मिक संस्कार दोनों हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मुस्लिम विवाह ना तो पूरी तरह से सिविल संविदा है और ना ही धार्मिक संस्कार बल्कि दोनों का मिश्रण है।
शून्य विवाह और फ़ासिद (अनियमित) विवाह में अंतर–
1) यदि विवाह में अवरोध स्थाई होता है तो विवाह शून्य होता है और यदि ऐसा अवरोध अस्थाई होता है तो विवाह फासिद या अनियमित होता है।
2) शून्य विवाह प्रारंभ से ही शून्य होता है और कभी मान्य नहीं हो सकता जबकि अनियमित विवाह में अवरोध दूर हो जाने पर विवाह मान्य हो जाता है।
3) शून्य विवाह पति और पत्नी के बीच वैधानिक अधिकारों या दायित्वों को सर्जित नहीं करता जबकि अनियमित विवाह के कुछ वैधानिक परिणाम होते हैं। अगर विवाह पूर्णावस्था को पहुंच जाता है।
4) शून्य विवाह में समागम अवैध होता है और उसकी संतान भी जारज (illegitimate) होती है जबकि अनियमित विवाह की संतान औरस (legitimate) होती है।