वयस्कता का विकल्प(Option of Puberty):

अर्थ

वयस्कता का विकल्प ऐसे अवयस्क लड़के या लड़की का है जिसके विवाह की संविदा उसके अभिभावक द्वारा की गई हो। उसे वयस्कता प्राप्त कर लेने पर विवाह की अस्वीकृति करने का अधिकार है।

प्राचीन विधि में ख्यार उल बुलूग-प्राचीन विधि वे में स्त्री और पुरुष दोनों के लिए एक ही नियम थे।

मुस्लिम विधि में ये अभिभावक विवाह की संविदा कर सकते हैं

a) पिता या पितामह

b) पिता या पितामह के अलावा अन्य अभिभावक

a) पिता या पितामह द्वारा विवाह की संविदा

इन परिस्थितियों में ही अस्वीकृत किया जा सकता था-

i) जब पिता या पितामह ने उपेक्षा या शरारत की हो।

ii) जब विवाह से अवयस्क को प्रत्यक्ष हानि हुई हो।

केस- अजीज बानो बनाम मोहम्मद (1925)- एक अवयस्क शिया लड़की के पिता ने उसका विवाह एक सुन्नी से कर दिया। वयस्क होने पर उस लड़की को पता चला कि उस विवाह से उसकी धार्मिक भावनाओ को चोट पहुंची है। न्यायालय ने कहा कि उसे अस्वीकार करने का विकल्प दिया जाना आवश्यक था।

केस- अब्दुल करीम बनाम अमीना बाई (1935)- मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा की पत्नी को दिया गया वयस्कता का विकल्प उन साधनों में से एक है जिनके द्वारा इस्लाम में स्त्रियों और बच्चों पर कठोर दबाव डालने वाली इस्लाम से पहले की प्रथाओं में कमी लाता है।

ख़्यार उल बुलूग के संबंध में आधुनिक विधि (मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939)- इस अधिनियम के पारित होने के बाद स्त्री का वयस्कता का विकल्प काफी बदल गया है। इस अधिनियम द्वारा पिता या पितामह द्वारा विवाह की संविदा में उनकी उपेक्षा या शरारत और प्रत्यक्ष क्षति के बिना भी विकल्प का प्रयोग किया जा सकता है।

धारा 2(7) के अनुसार- किसी स्त्री का विवाह पन्द्रह वर्ष की आयु से पहले पिता या पितामह या अन्य अभिभावक द्वारा कर दिए जाने पर वह अट्ठारह वर्ष की आयु तक अस्वीकृत करने का विकल्प रखती है जबकि विवाह पूर्णावस्था को प्राप्त न हुआ हो।

अधिनियम का प्रभाव-

1) अब यह साबित करना आवश्यक नहीं है कि विवाह पिता या पितामह ने उपेक्षा या कपट से कराया था और ऐसा विवाह उसके लिए अहितकर था।

2) यह आवश्यक नहीं है कि 15 वर्ष की होते ही बिना देरी के उसे अस्वीकार करें।

3) पिता या अन्य अभिभावक द्वारा विवाह तब तक मान्य या बंधनकारी रहेगा जब तक न्यायालय विवाह विच्छेद की डिक्री ना दे दे।

4) इसके लिए वाद करना और डिक्री प्राप्त करना आवश्यक है।

5) यदि लड़की के 15 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले विवाह पूर्णावस्था को पहुंच जाता है तो भी वह अपना विकल्प का अधिकार नहीं खोती

लेकिन यदि पूर्णावस्था 15 वर्ष आयु के बाद होता है तो वह विकल्प का अधिकार खो देगी।

6) पुरूष इस अधिनियम का लाभ नहीं ले सकेंगे उन्हें प्राचीन मुस्लिम विधि से उपचार प्राप्त होगा।

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