मुस्लिम विधि के स्रोत(Sources Of Muslim Law) :-मुस्लिम विधि के स्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है-
1) प्रधान स्त्रोत (Primary Sources)
2) गौण स्त्रोत (द्वितीयक स्त्रोत)
प्रधान स्त्रोत–
1) कुरान – कुरान मुस्लिम विधि का सर्वोच्च प्रमाण है। उसमें अल्लाह के द्वारा अपने पैगंबर को दिया गया दैवी संदेश है। कुरान में 114 अध्याय, 6666 आयतें है। जिनमें से लगभग 200 आयते विधि विधि से संबंधित और लगभग 80 आयतें पारिवारिक विधि (विवाह, मेहर, तलाक और विरासत) से संबंधित है।
कुरान की विशेषताएं–
1) इसमें पैगंबर मोहम्मद से कह गए अल्लाह के शब्द शामिल है।
2) यह समय और महत्व की दृष्टि से मुस्लिम विधि का प्रधान स्रोत है।
3) यह कोई संहिता नहीं है।
4) मूल रूप से इसका उद्देश्य सामाजिक सुधार जैसे- सूदखोरी, बहुविवाह, जुआ, दूषित रीति रिवाज को दूर करना और दंड के नियमों को लेखबद्ध करना।
5) कुरान केवल विधिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि इसमें धर्म, नीतिशास्त्र, राजनीतिशास्त्र की बातें भी शामिल है।
2) सुन्नत और अहादिस (Traditions)- मुस्लिम समाज के सामने कुछ ऐसी समस्यायें आई जिनके बारे में कुरान में कोई प्रावधान नहीं थे। पैगंबर द्वारा जो कुछ कहा गया या या चुप रहकर जिसका समर्थन किया गया वह कुरान के बाद मुस्लिम विधि का मुख्य स्रोत बन गया और सुन्नत एवं अहादिस कहलाया।
प्रमाणिकता के आधार पर अहादीस को तीन भागों में बांटा जाता है–
1) अहादीस ए मुतबातिर
2) अहादीस ए मशहूर
3) अहादीस ए अहद
उद्भव की दृष्टि से अहादीसो को तीन भागों में बांटा गया है-
1) सुन्नत उल फेल- ऐसी परंपराएं जिनमें पैगंबर साहब के आचरण शामिल हैं।
2) सुन्नत उल कौल– पैगंबर साहब के द्वारा दिए गए उपदेश इसके अंतर्गत आते हैं।
3) सुन्नत उल तकरीर – इसका अर्थ है जो कुछ पैगंबर साहब की अनुपस्थिति में बिना उनकी आपत्ति के किया गया है या जिन पर उनकी मौन स्वीकृति थी।
3) इज्मा– इज्मा का अर्थ है किसी विषय पर विधिशास्त्रियों और पैगम्बर के साथियों की आम सहमति। जिन मामलों में कुरान में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है और सुन्ना और अहादिस के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता उन मामलों में इज्मा के आधार पर निर्णय किया जाता है।
इज्मा के प्रकार– यह तीन प्रकार का होता है-
i) पैगंबर के साथियों का इज्मा अब्दुर्रहीम के अनुसार पैगंबर साहब के साथियों के इज्मा को बड़ा महत्व दिया जाता है क्योंकि उनके साथी पैगंबर के दृष्टिकोण से प्रेरित थे और उनके निकट रहने के कारण वह लगभग उन्हीं के समान तर्क नीति अपनाते थे। हनबली विचार पद्धति केवल ऐसे इज्मा को ही मान्यता देती है।
ii) विधिवेत्ताओं का इज्मा– इस प्रकार के इज़्मा का महत्व तभी हो सकता है जब विधिवेत्ता इसके लिए पूरी तर तरह से योग्य हो और जीवन में अपनी राय ना बदलें।
iii) जनता का इज्मा – विधि की दृष्टि से विधिक प्रश्नों पर मुस्लिम जनता के इज्मा का कोई महत्व नहीं है परंतु धर्म, नमाज और अन्य बातों में उसे बड़ा महत्व प्राप्त है।
4) कयास – मुस्लिम विधि की उत्पत्ति का चौथा मुख्य स्रोत व कयास है। कयास शब्द का अर्थ साम्य के आधार पर तर्क देकर दो वस्तुओं को एक समान सिद्ध करना है। कुछ मामलों पर कुरान प्रकाश नहीं डालता है। कुरान से निकाले गए निष्कर्षो को ही कयास कहते हैं। कयास किसी नई विधि की रचना नहीं करता बल्कि पुराने स्थापित सिद्धांत को ही नई बदलती हुई परिस्थितियों में निकाले गये निष्कर्ष द्वारा विधि में परिवर्तित करके उसे अनुकूल बनाता है।
शिया विधि इस स्रोत को मान्यता नही देती।
गौण स्रोत–
1) उर्फ (रिवाज या रूढ़ि) (Customs)- रूढि को मुस्लिम विधि के स्रोत के रूप में कभी मान्यता नहीं दी गई लेकिन इसका कभी-कभी उल्लेख पाया जाता है। विद्वानों द्वारा इज्मा के समान रूढ़ि को प्रामाणिकता प्रदान नहीं की गई है। रूढ़ि का यह अनिवार्य गुण है कि वह क्षेत्रीय हो, एक देश की रूढ़ि दूसरे देशों की विधि पर प्रभाव नहीं डाल सकती। इसकी प्रमाणिकता तभी तक रह सकती है जब तक कि वह प्रवर्तन में रहे जिसके कारण एक काल की रूढ़ि की दूसरे काल में मान्यता नहीं रह जाती।
2) न्यायिक विनिश्चय (Judicial Decisions)- इसमें प्रिवी काउंसिल, उच्चतम न्यायालय और भारत के उच्च न्यायालयों के निर्णय आते हैं वादों का विनिश्चय करने में न्यायमूर्ति विधि की व्याख्या करते हैं। ये निर्णय भविष्य के वादों के लिए दृष्टांत समझे जाते हैं। जो केवल विधि के साक्ष्य ही नहीं बल्कि उनके स्रोत भी होते है और न्यायालय इनका अनुसरण करने के लिए बाध्य होते है।
3) विधायन (Legislation)- भारतीय विधायिका के अधिनियमो ने मुस्लिम विधि को काफी सीमा तक प्रभावित और संशोधित किया है।
जैसे– मुसलमान वक्फ अधिनियम 1930,
शरीयत अधिनियम 1937,
मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939,
भारतीय संविदा अधिनियम 1872,
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006,
मुस्लिम महिला (विवाह विच्छेद पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986पर
4) न्याय, साम्या और सदविवेक (Justice, Equity and Conscience)- न्याय, साम्या और सदविवेक को भी मुस्लिम विधि का एक स्रोत समझा जाता है। सुन्नियो की हनफ़ी शाखा के संस्थापक अबू हनीफा ने यह सिद्धांत स्पष्ट किया कि किसी विशेष मामले की शर्तों की पूर्ति के लिए उदार अर्थान्वयन के द्वारा न्यायाधीश विधि के नियम को अपास्त कर सकता है। मुस्लिम विधि के इन सिद्धांतों को विधिशास्त्रीय साम्य कहते हैं।