मुस्लिम विधि की विचारपद्धति (Schools of Muslim Law)

मुस्लिम धर्म को मानने वालों को दो भागों में बांटा जा सकता है-

1) सुन्नी सम्प्रदाय – जिसकी कुछ शाखाएँ है-

ⅰ) हनफी शाखा

ii) मलिकी शाखा

iii) शफी शाखा

iv) हनबली शाखा

2) शिया सम्प्रदाय

ⅰ) असना अशरिया शाखा

क) अखबरी

ख) उसूली

॥ इस्माइली शाखा

क) खोजा।

ख) बम्बई के बोहरे।

iii) जैदिया शाखा

1) सुन्नी संप्रदाय – सुन्नी संप्रदाय अबू हनीफा ने स्थापित किया था। उनका मत था कि खलीफा के पद के लिए चुनाव होना चाहिए। सुन्नी लोग विधिवेत्ताओ की साधारण सभा के निर्णयो को कुरान के नियमों के समान मानते थे। उनकी राय में इज्मा और कयास का महत्वपूर्ण स्थान है।

सुन्नी संप्रदाय को निम्नलिखित भागों में बांटा जाता है:-

i) हनफी शाखा– हनफी संप्रदाय सुन्नी विधि का सबसे पहला उप-संप्रदाय है, जिसके संस्थापक अबू हनीफा थे। अबू हनीफा की विचारपद्धति शीघ्र ही प्रसिद्ध हो गई और हनफी विचारपद्धति के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। उनके अनुसार कुरान ही विधि का पहला तथा मुख्य स्रोत है। दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत वे परम्पराये है, जो विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न तरीकों से व्यक्त की गई है। हनफी स्कूल उत्तर भारत, अरब सीरिया तुर्की और मिस्र में प्रचलित है।

ⅱ) मलिकी शाखा – इस शाखा के संस्थापक मलिक इब्र अनास थे, जो मदीना में रहते थे और धार्मिक शिक्षा देते थे। इनके धर्म सिद्धांत हनफी विधि के सिद्धातों के विपरित नहीं थे इनके सिद्धांतो का प्रथम स्रोत कुरान तथा उसके बाद हजरत मोहम्मद की परंपराये है। इस शाखा में विवाहित स्त्री अपनी संपत्ति की पूर्ण स्वामिनी नहीं होती। यह शाखा मदनी स्कूल के नाम से भी जाना जाती है। मलिकी स्कूल उत्तरी अफ्रीका, मोरक्को तथा स्पेन में प्रचलित है।

iii) शफी शाखा– शफी विचारधारा के प्रवर्तक मोहम्मद शफी थे। मोहम्मद शफी न्याय के लिए प्रसिद्ध है। शफी कुरान के बाद मोहम्मद साहब के सुत्रा पर अधिक बल देते थे। वे परम्पराओ के समर्थक थे। शफी पहले विधिवेत्ता थे जिन्होंने क्यास के लिए नियम निर्धारित किये। यह स्कूल दक्षिणी भारत, श्रीलंका और अरब में प्रचलित है।

iv) हनबली शाखा– हनबली शाखा के संस्थापक अहमद बिन हनबल थे, जिन्होंने परम्पराओं पर अधिक जोर दिया। ये सबसे पहले कुरान और उसके बाद अहादिस को अधिक महत्व देते थे। इन्होंने इज्मा और क्यास का प्रयोग निश्चित सीमा तक कम कर दिया। अरब में इस पद्धति के अनुयायी बहुत कम है।

2) शिया सम्प्रदाय– शिया शब्द का अर्थ धार्मिक गुट से है। मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी आयशा ने अली जो मोहम्मद साहब के दामाद थे, उनके उत्तराधिकारी होने से वंचित करके अपने पिता अबूबक्र को खलीफा घोषित करा दिया। शिया लोगों ने इसका घोर विरोध किया। उनका कहना था कि मोहम्मद साहब के उत्तराधिकारी का चयन चुनाव के आधार पर होना चाहिए।

इस प्रकार शिया विधि की प्रमुख शाखा निम्नलिखित है-

i) असना अशरिया शाखा – इस शाखा के समर्थक बारह इमाम को मानने वाले कहे जाते है। शिया संप्रदाय में इस विचारधारा को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। भारत, लखनऊ और मुर्शिदाबाद में इस मत के काफी लोग पाये जाते हैं। इस शाखा के अनुयायी दो विचारपद्धति रखते है- अखबरी और उसूली। अमीर अली के अनुसार अखबरी शिया कट्टर परंपरावादी थे और उसूली शिया कुरान को पूरा महत्व देते थे।

ii) इस्माइलिया शाखा– छठे इमाम जफर अस-सादिक के दो पुत्र थे इस्माइल और मूसा उल काजिम। इस्माइल के समर्थक इस्माइ‌लिया कहलाते हैं।

इस्माइली शाखा को पुनः दो भागों में बांटा जाता है– खोजा और बोहरा।

खोजा– इनका प्रतिनिधित्व 49वे इमाम आगा खां करते है और ये लोग दक्षिण अफ्रीका मुध्य एशिया और सीरिया आदि में पाए जाते है।

बोहरा– इस शब्द का मतलब है-व्यापारी। ये लोग सीरिया, दक्षिणी अरब और यमन में पाए जाते है।

iii) ज़ैदिया शाखा– चौथे इमाम अली असगर के पुत्र जैद इसके प्रवर्तक थे। इस शाखा। के अनुयायी शिया और सुन्नी दोनों विचार पद्धतियों के सिद्धान्तों को मानते हैं। इस शाखा के अनुयायी अधिकांश दमन में हैं।

3) मोताजिला संप्रदाय– शिया और सुन्नी के बाद इसैं मुस्लिम विधि का तीसरा संप्रदाय माना जाता है। यह शाखा इस्लाम धर्म की शाखा के रूप में नौवीं शताब्दी में उन्द्भव हुई। इसके संस्थापक अता उल गज्जल थे। आमिर अली ने कहा कि मोताजिला के लोग एक स्वतंत्र संप्रदाय के थे और कभी-कभी उसूली विचार पद्धति के समान माने जाते थे। वर्तमान में इसके अनुयायी काफी कम हो गए है।

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