हमारे वर्तमान प्रयोजनों के लिए हमें 1858 से पीछे जाने की आवश्यकता नहीं है। इस भारत शासन अधिनियम, वर्ष ब्रिटिश सम्राट ने भारत की प्रभुसत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से 1858 लेकर अपने में निहित कर ली थी और ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ब्रिटेन की सरकार द्वारा सीधे शासन चलाने के लिए भारत के शासन का पहला कानून बनाया था—भारत शासन अधिनियम, 1858 (21 और 22 विक्टोरिया, अध्याय 106 )। यह अधिनियम हमारे सर्वेक्षण का प्रारम्भिक स्थल है क्योंकि इसमें सम्राट के संपूर्ण नियंत्रण का सिद्धान्त प्रमुख था। इसमें देश के प्रशासन में जनता का कोई स्थान नहीं था। संविधान के बनने तक, इस अधिनियम के पश्चात् का इतिहास सम्राट के नियंत्रण के धीरे-धीरे शिथिलीकरण का और उत्तरदायित्वपूर्ण सरकार के उत्क्रमण का इतिहास है। अधिनियम के लागू होने पर, सम्राट की शक्तियों का प्रयोग सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया द्वारा 15 सदस्यों की एक परिषद् की सहायता से (जो भारत परिषद् के नाम से ज्ञात थी) किया जाना था। यह परिषद् अनन्य रूप से इंग्लैंड के व्यक्तियों से मिलकर बनती थी जिनमें से कुछ सम्राट द्वारा नामनिर्देशित होते थे और कुछ ईस्ट इंडिया कम्पनी के निदेशकों के प्रतिनिधि होते थे। सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, ब्रिटिश पार्लियामेंट के प्रति उत्तरदायी होता था और गवर्नर जनरल के माध्यम से भारत का शासन करता था। गवर्नर-जनरल कार्यकारी परिषद् की सहायता से कार्य करता था। इस कार्यकारी परिषद् में सरकार के उच्च अधिकारी होते थे।
:-1858 के अधिनियम द्वारा प्रारंभ की गई प्रणाली के मुख्य लक्षण यह थे – (क) देश का प्रशासन न केवल ऐकिक था बल्कि कठोरता से केन्द्रीकृत भी था । राज्यक्षेत्र को प्रान्तों में बांटा गया था और प्रत्येक के शीर्ष पर एक गवर्नर या लेफ्टिनेंट गवर्नर था तथा उसकी सहायता के लिए कार्यकारी परिषद् थी किन्तु ये प्रान्तीय सरकार भारत सरकार के अभिकरण मात्र थीं। उन्हें प्रान्त के शासन से सम्बन्धित सभी मामलों में गवर्नर जनरल के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण के अधीन काम करना पड़ता था।
:-(ख) कृत्यों का कोई पृथक्करण नहीं था। भारत के शासन के लिए सभी प्राधिकार सिविल और सैनिक, कार्यपालक और विधायी सपरिषद् गवर्नर-जनरल में निहित थे जो सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के प्रति उत्तरदायी था
:-(ग) भारत के प्रशासन पर सेक्रेटरी ऑफ स्टेट का संपूर्ण नियंत्रण था। इस अधिनियम द्वारा भारत के शासन या राजस्व से किसी भी प्रकार से सम्बन्धित सभी कार्यों संक्रियाओं और बातों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण सेक्रेटरी ऑफ स्टेट में निहित किया गया था। ब्रिटिश पार्लियामेंट के प्रति अन्तिम रूप से उत्तरदायी रहते हुए वह अपने अभिकर्ता गवर्नर जनरल के माध्यम से भारत का प्रशासन चलाता था। उसी का वाक्य अन्तिम होता था चाहे वह नीति के विषय में हो या अन्य ब्यौरों के विषय में
:-(घ) प्रशासन का सम्पूर्ण तंत्र अधिकार तंत्र था, जिसका भारत की जनता की राय से कोई लेना देना नहीं था।