प्रतिफल धारा-2(घ) (Consideration)

धारा-2(घ) में प्रतिफल को परिभाषित किया गया है।

धारा-2(घ) के अनुसार “जबकि वचनदाता की वांछा पर वचनगृहीता या कोई अन्य व्यक्ति कुछ कर चुका है या करने से विरत रहा है या करता है या करने से प्रविरत रहता है या करने का या करने से प्रविरत रहने का वचन देता है तब ऐसा कार्य या प्रविरति या वचन उस वचन के लिए प्रतिफल कहलाता है।

• प्रत्येक साधारण संविदा के लिए प्रतिफल आवश्यक है।

• भारतीय संविदा अधिनियम की धारा-25 में यह घोषित किया गया कि प्रतिफल के बिना किया गया करार शून्य है।

न्यायाधीश लश द्वारा क्यूरी बनाम मिसा 1875 में प्रतिफल एक प्रकार से वचन का मूल्य है।

• प्रतिफल में यह आवश्यक है कि कार्य या प्रविरति ऐसी होनी चाहिए जो वचनदाता की वांछा पर की गई हो। जो कार्य वचनदाता की वांछा पर न किए गए हो वे प्रतिफल नहीं हो सकते है। (दुर्गा प्रसाद बनाम बलदेव 1880)

• वचनदाता की वांछा पर किया गया कार्य पर्याप्त प्रतिफल होता है चाहे इससे वचनदाता को कोई व्यक्तिगत लाभ न प्राप्त हुआ हो। (केदार नाथ बनाम गोरी मोहम्मद 1886)

• प्रतिफल वचनदाता को वचनग्रहीता भी दे सकता है और यदि वचनदाता को कोई आपत्ति न हो तो कोई अन्य व्यक्ति भी दे सकता। (डटन बनाम पूल 1677)

टि्वडल बनाम ऐटकिन्सन 1861 में धारित किया गया कि यह भलीभांति स्थापित नियम है कि कोई भी अजनबी किसी ऐसी संविदा से लाभ नहीं उठा सकता जिसका वह पक्षकार नहीं है।

• ट्विडल बनाम ऐटकिंसन 1861 के बाद में प्रतिपादित सिद्धांत का हाउस ऑफ लार्डस ने डनलप न्यूमेटिक टायर कं. लि. बनाम सेल्फिज एण्ड के. 1915 एसी के वाद में अनुमोदन कर दिया।

वेंकटचिन्नया बनाम वेंकट रमैया 1881 मद्रास के बाद में धारित किया गया कि प्रतिफल बचनगृहीता या अन्य व्यक्ति द्वारा दिया जा सकता है। (भारत में यह नियम धारा-2(घ) से लागू है।)

• संविदा को गुप्तता का सिद्धांत अंग्रेजी विधि में एक मान्य सिद्धांत है जिसमें कोई भी संविदा किसी ऐसे व्यक्ति को अधिकार प्रदान नहीं करती जो उसका पक्षकार नहीं है ।

• भावी मुकदमेबाजी को मिटाने का करार प्रतिफल रहित नहीं होता है, धारित किया गया भीम बनाम निगप्पा 1868 के वाद में।

• पारिवारिक शांति बनाने हेतु किया सदस्यों के मध्य करार प्रतिफल है (सम्पत्ति कर आयुक्त बनाम विजया बाई 1999 एस.सी.)

• बिना प्रतिफल किया करार शून्य है सिवाय भा.सं. अधि. 1872 की धारा-25 में (1) नैसर्गिक प्रेम तथा स्नेह में हो (2) भूतपूर्व स्वैच्छिक सेवा का हो (3) कालवरोधित ऋण के भुगतान का हो।

• प्रतिफल की जरूरत वास्तविक दान में भी नहीं होती।

• अभिकरण को सृजित करने में भी प्रतिफल की आवश्यकता नहीं होती है (भा.सं. अधि. 1872 की धारा- 185)

• निःशुल्क उपनिधान की संविदा भी प्रतिफल के बिना विधितः मान्य है। (भा.स. अधि. की धारा-150)

हर एक वचन और ऐसे वचनों का हर संवर्ग जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल हो-करार है।

• वचन में तत्वों की संख्या दो है।

• जब कोई व्यक्ति अपनी अंतिम सहमति को अभिव्यक्त किये बिना कुछ निबंधन प्रस्तावित करता है जिन पर वह वार्ता के लिए सहमत है तो वह प्रस्थापना हेतु निमंत्रण देता है।

• Proposal + Acceptance = Promises + Consideration = Agreement + Enforceability = Contract

• वस्तु को मूल्य सूची के साथ दुकान में प्रदर्शित करना। • जनता को पुरुस्कार की घोषणा प्रस्थापना है।

• माल को दुकान में कीमत की पर्ची लगाकर प्रदर्शित किए जाने का अर्थ यह है कि प्रस्ताव किया जाए-ग्राहक द्वारा।

• नमूने की शर्तें विक्री की संविदा की अभिव्यक्त शर्त है न कि विवक्षित या गर्भित ।

• संविदा की गुप्तता के सिद्धांत के डनलप न्यूमेटिक टायर कं. लि. बनाम सेल्फ्रेज एण्ड कं. में मान्य किया और कि केवल संविदा के पक्षकार हो उसके आधार पर दावा कर सकते हैं।

• गुप्तता के सिद्धांत के अनेक अपवाद हैं जैसे एजेन्सी, लीज़, ट्रस्ट हिंदू परिवार के विभाजन पर विवाह व्यय, अभिस्वकृति आदि।

• भारत में संविदा की गुप्तता का सिद्धांत मान्य है। जमुनादास बनाम रामऔतार 1911 पी. सी. के बाद में कहा कि गया कि जो संविदा का पक्षकार नहीं है वह संविदा के लिए दावा नहीं कर सकता है।

• भारत में भूतकालीन प्रतिफल विधि की दृष्टि में प्रतिफल माना जाता है। यदि कार्य प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर किया गया है तो संविदा अधिनियम की धारा-2 (घ) के अंतर्गत यह अच्छा प्रतिफल है।

• यदि कार्य (प्रतिफल संदाय) भूतकालीन हो जो प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर नहीं किया गया है और यदि भूतकाल में स्वेच्छा से किये गये किसी कार्य के प्रतिकर के रूप में है तो वह धारा-25(2) में दिये गये अपवाद “के अंतर्गत वैध होगा।

परिभाषा 2(घ) में यह भाग बिल्कुल स्पष्ट है कि जब प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर कोई व्यक्ति कोई कार्य करने या उससे प्रतिविरत रहता है तो वह वैध प्रतिफल है।

• प्रतिफल ऐसा भी हो सकता है जिसमें भविष्य में कोई कार्य करने का वचन दिया जाता। ऐसी दशा में केवल वचनों का विनिमय होता है और एक वचन दूसरे वचन का प्रतिफल होता है।

• प्रतिफल ऐसा कार्य होना चाहिए जिसे केवल पक्षकार ही नहीं वरन् विधि भी कुछ मूल्यवान समझती हो (चिदम्बरा बनाम पी.एस. रंगा 1965 एस.सी.)

सोनिया भाटिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1981 एस.सी. के वाद में न्यायालय ने पर्याप्त प्रतिफल के अर्थ बताये जिसके अनुसार प्रतिफल में प्रेम, स्नेह तथा अन्य आत्मिक भावनायें नहीं आयेंगी, जो प्राय: दान का कारण होती है।

हार्वे बनाम फैंसी का वाद प्रस्ताव के आमंत्रण से सम्बंधित है।

कार्लिल बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल क. का वाद जन सामान्य को की प्रस्थापना के बार में है।

• टेण्डर एक प्रस्ताव के लिए आमंत्रण है।

• निविदा आमंत्रण के लिए समाचार पत्र में प्रकाशित सूचना प्रस्थापना के लिए आमंत्रण है। (

• जब एक दुकान की खिडकी में वस्तुएँ मूल्य सहित रखी है तब प्रस्ताव आता है-खरीददार से।

• रेलवे टाईम टेबिल सामान्य प्रस्ताव है, निविदा की सूचना प्रस्ताव का आमंत्रण है।

• एक प्रतिप्रस्ताव है-एक वास्तविक प्रस्ताव की अस्वीकृति।

• यदि दो पक्षकार एक समान प्रस्ताव, एक दूसरे को अज्ञानता में दें तो इसे कहा जाता है-प्रति प्रस्ताव (Cross offer)

• वाद लाने से विरत रहना सदैव पर्याप्त प्रतिफल है।

धारा-25 के अंतर्गत बिना प्रतिफल के करार शून्य है के निम्न अपवाद है-

(1) प्राकृतिक प्रेम और स्नेह

(2) स्वेच्छा से की गई भूतपूर्व सेवा के लिए प्रतिकर देने का वचन।

(3) काल तिरोहित ऋण के भुगतान के लिए की गई प्रतिज्ञा।

राजरानी बनाम प्रेम अदीब के वाद में धारित किया गया कि सेवा संविदा चाहे अवयस्क ने स्वयं किया हो या उसके संरक्षक ने किया हो शून्य होती है।

• संविदा संसर्ग के नियम का अर्थ है कि जब दो व्यक्तियों में कोई संविदा हुई हो तो कोई भी तीसरा व्यक्ति उसका लाभ नहीं उठा सकता है चाहे वह संविदा उसी के भले के लिए ही क्यों न की गयी हो। अर्थात् जो संविदा का पक्षकार नहीं है वह उस संविदा के लिए वाद नहीं ला सकता है।

• भारत में प्रतिफल से अपरिचित व्यक्ति संविदा को प्रवर्तित करा सकता है बशर्ते कि वह संविदा का पक्षकार हो।

• संविदा से अपरिचित व्यक्ति संविदा को प्रवर्तित कराने के लिए वाद नहीं ला सकते हैं।

• वह व्यक्ति भी संविदा को प्रवर्तित कराने हेतु वाद चला सकता है जो संविदा का पक्षकार नहीं है जबकि निम्न दशाएँ हो (1) न्यास (2) भार (3) विवाह व्यवस्था, बंटवारा अथवा अन्य पारिवारिक व्यवस्था (4) अभिस्वीकृति द्वारा संविदा (5) अभिकर्ता द्वारा संविदा

• भूतकालीन प्रतिफल वह प्रतिफल है जो प्रतिज्ञाकर्ता की प्रतिज्ञा के पूर्व दिया जाता है। वर्तमान या निष्पादित प्रतिफल वह है जो संविदा की तिथि पर अथवा संविदा के समय पर ही दिया जाता है। भावी अथवा निष्पाद्य प्रतिफल में संविदा के दोनों पक्षकार वचन देते हैं और यही वचन एक दूसरे के लिए प्रतिफल होता है।

• अंग्रेजी विधि में भूतकालीन प्रतिफल अवैध होता है जबकि भारतीय विधि में भूतकालीन प्रतिफल वैध होता है।

• किसी ऐसे कार्य को करना जिसे करने के लिए कोई व्यक्ति पहले से ही विधि द्वारा बाध्य है, किसी वचन के लिए प्रतिफल नहीं माना जायेगा।

  • किसी संविदा में प्रतिफल है अथवा नहीं है इस बात का निर्णय इस पर निर्भर होता है कि वचनदाता ने कोई दायित्व ग्रहण किया या नहीं अथवा हानि उठाया है अथवा नहीं।
  • बिना प्रतिफल के किया गया करार शून्य होता है धारा-25 संविदा अधि. के अनुसार।
  • धारा-25 के अनुसार (1) प्रतिफल का विधिक दृष्टि से कुछ मूल्य होना चाहिए। (2) उसका कुछ मूल्य होना चाहिए (3) वह भ्रामक न हो चाहे उसका मूल्य कितना ही कम हो।
  • संविदात्मक सम्बन्ध-आंग्ल संविदा विधि का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि जो व्यक्ति संविदा में पक्षकार नहीं है, वह संविदात्मक दायित्वों को प्रवर्तित नहीं करा सकता। इस सिद्धांत को संबिदा का सम्बन्ध कहते हैं। इसको टिवडिल बनाम एटकिन्सन, (1861)123 ईआर 762 डीएफ के बाद में न्यायमूर्ति बिटमैन द्वारा प्रतिपादित किया गया। यद्यपि कि 1677 के पुराने बाद डटन बनाम पूल में इस सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया गया था। एटकिन्सन के बाद में स्थापित ‘संविदा संसर्ग’ के सिद्धांत को House of Lord ने डनलप न्यूमेटिक टायर कं. लि. बनाम सेल्फ्रेज एण्ड कं. लि. (1915) एसी 857 के वाद में अनुमोदन प्रदान करते हुए इसके दो रूप बताये-
  • (क) प्रतिफल का संबंध-अर्थात् यदि प्रतिफल किसी अन्य व्यक्ति ने दिया है तो बचनग्रहीता प्रतिफल में संसर्गी नहीं होगा, इसलिए वह संविदा को लागू नहीं करवा सकता। प्रतिफल का सम्बन्ध का सिद्धांत भारत में मान्य नहीं है।
  • आंग्ल विधि में इस विषय पर सुप्रसिद्ध वाद डी ला बेरी बनाम पियर्सन 1908 केबी का है। न्यायमूर्ति ब्लैकबर्न ने बोल्टन बनाम मैड्रेन के वाद में कहा कि “न्यायालय पक्षकारों के लिए करार नहीं करेगा न ही वह देखेगा कि प्रतिफल पर्याप्त है अथवा नहीं।

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