अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास :-

1817 में दिल्ली के सादात (सैयद) खानदान में सर सैयद अहमद खान का जन्म हुआ। 24 साल की उम्र में सैयद अहमद मैनपुरी में उप-न्यायाधीश बन गए। इस समय ही उन्हें मुस्लिम समुदाय के लिए अलग से शिक्षण संस्थान की जरूरत महसूस हुई।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी शुरू करने से पहले सर सैयद अहमद खान ने मई 1872 में मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज फंड कमेटी बनाया। इस कमेटी ने 1877 में मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत की।

इस बीच अलीगढ़ में एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग तेज हो गई। जिसके बाद मुस्लिम यूनिवर्सिटी एसोसिएशन की स्थापना हुई। 1920 में ब्रिटिश सरकार की मदद से कमेटी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट बनाकर इस यूनिवर्सिटी की स्थापना की।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाए जाने के बाद पहले से बनी सभी कमेटी को भंग कर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से एक नई कमेटी बनी इसी कमेटी को सभी अधिकार और संपत्ति सौंपी गई।

ABVP और दूसरे दक्षिण पंथी संगठनों का कहना है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए 1929 में 3.04 एकड़ जमीन दान दी थी। ऐसे में इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक सिर्फ सर अहमद खान को नहीं बल्कि हिंदू राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी हैं।

युनिवर्सिटी क्षेत्र :- यूनिवर्सिटी 15 विभागों से शुरू हुए AMU में आज 108 विभाग हैं। करीब 1200 एकड़ में फैली यूनिवर्सिटी में 300 से ज्यादा कोर्स हैं। यहां आप नर्सरी में एडमिशन लेकर पूरी पढ़ाई कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड 7 कॉलेज, 2 स्कूल, 2 पॉलिटेक्निक कॉलेज के साथ 80 हॉस्टल हैं। यहां 1400 का टीचिंग स्टाफ है और 6000 के करीब नॉन टीचिंग स्टाफ है।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद शुरू हुए कुछ प्रमुख घटनाक्रम :-

NDA vs UPA सरकार के फैसले हालांकि, संसद ने जब 1981 में AMU (संशोधन) एक्ट पारित किया था तो इस AMU को माइनॉरिटी स्टेटस वापस मिल गया था। इसके बाद जनवरी 2006 में इलाहाबाद HC ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके आधार पर AMU को माइनॉरिटी स्टेटस दिया गया था।इसके बाद केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इलाहाबाद HC के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी। यूनिवर्सिटी ने इसके खिलाफ अलग से याचिका भी दायर की थी।

भाजपा के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने साल 2016 में SC को बताया कि वह UPA सरकार की दायर अपील वापस ले लेगी। इसने बाशा मामले में शीर्ष अदालत के 1967 के फैसले का हवाला देते हुए दावा किया था कि AMU माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन नहीं है। क्योंकि इसे केंद्र सरकार फंड करती है, यह सेट्रल यूनिवर्सिटी है।

साल 1951: गैर-मुस्लिमों के लिए भी खुले दरवाजे AMU एक्ट 1920 के सेक्शन 8 और 9 को खत्म कर दिया गया। इसके तहत मुस्लिम छात्रों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा देने वाली बात खत्म कर दी गई। साथ ही अब किसी भी जाति, लिंग, धर्म के लोगों की एंट्री के लिए यूनिवर्सिटी का दरवाजा खोल दिया गया।

साल 1965: सरकार के अधीन लिया गया AMU एक्ट 1920 के सेक्शन 23 में बदलाव किया गया। इसके जरिए यूनिवर्सिटी कोर्ट की सर्वोच्च शक्ति को घटाकर बाकी यूनिवर्सिटी की तरह ही इसके लिए एक बॉडी बना दी गई। यूनिवर्सिटी को उस समय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंदर ले लिया गया।

साल 1967: सुप्रीम कोर्ट ने छीना अल्पसंख्यक दर्जा 1967 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच के सामने पहुंचा। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने तर्क दिया कि सर सैयद अहमद खान ने इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए एक कमेटी बनाई थी। उस कमेटी ने इसे बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सर अहमदखान और उनकी कमेटी ब्रिटिश सरकार के पास गई। सरकार ने कानून बनाकर इस यूनिवर्सिटी को मान्यता दीऔर उसे शुरू किया। यही वजह है कि इस यूनिवर्सिटीको न तो मुस्लिमों ने बनाया है और न ही इसे चलाया है।इस यूनिवर्सिटी की स्थापना उस समय भारत सरकारने किया था। इसलिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया जा सकता।

साल 1981: केंद्र ने एक्ट में संशोधन कर अल्पसंख्यक दर्जा दिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 13 साल बाद 1981 में केंद्र सरकार ने AMU एक्ट के सेक्शन 2 (1) में बदलाव किया गया। इस यूनिवर्सिटी को मुस्लिमों का पसंदीदा संस्थान बताकर इसके अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल किया गया।कानून में इसकी व्याख्या की गई है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पहले मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत हुई। बाद में इसे चलाने वाली कमेटी ने ही अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को शुरू करने की योजना तैयार की। इस कमेटी को सर अहमद खान ने किया था। वो एक अल्पसंख्यक थे, इसलिए इस यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए। साथ ही कानून की धारा 5 (2) (c) में जोड़ा गया कि ये यूनिवर्सिटी भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिमों को शैक्षिक और सांस्कृतिक रूप से आगे बढ़ा रहा है। इसलिए अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलने का आधार मजबूत है।

साल 2006: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पलट दिया भारत सरकार का फैसला साल 2005 की बात है। ये मामला कोर्ट पहुंचा। इस बार अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इन छात्रों की दो मांगे थीं।पहली, अल्पसंख्यक दर्जे के तहत यूनिवर्सिटी मुस्लिम छात्रों को 75% आरक्षण देना बंद करे। दरअसल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने अपने मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए 75% सीटें मुस्लिमों के लिए आरक्षित कर दी थी। जबकि सामान्य वर्ग के लिए सिर्फ 25% सीटें ही रखी गई थी।दूसरी, मुस्लिम छात्रों के लिए एडमिशन टेस्ट यूनिवर्सिटी लेती थी, जबकि 25% सामान्य वर्ग की सीटों के लिए एडमिशन टेस्ट AIIMS करवाती थी। यही वजह है कि यूनिवर्सिटी एडमिशन टेस्ट में भी भेदभाव कराने के आरोप छात्रों ने यूनिवर्सिटी पर लगाया।

2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 में केंद्र सरकार के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर किए गए संविधान संशोधन को अमान्य करार दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक फैसले को गलत तरीके से बदलने की कोशिश की है।2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद से अभी तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पास अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं है।इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं और हाईकोर्ट के फैसले की समीक्षा करने की मांग की। 2016 में केंद्र सरकार ने याचिका वापस ले ली। केंद्र का तर्क था कि ये यूनिवर्सिटी में लागू SC/ST/OBC/EWS के लिए आरक्षण के खिलाफ है।बाकी याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई है।

साल 2024 (वर्तमान) : CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जस्टिस की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। बेंच ने 8 दिन तक इस मामले में दलीलें सुनीं।

AMU के माइनॉरिटी स्टेटस का मुद्दा कई दशकों से बना हुआ है। शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी 2019 को विवादास्पद मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में भेजा था। 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच जस्टिस की संविधान पीठ ने कहा था कि AMU सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। इसलिए इसे माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन नहीं माना जा सकता है।

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर संविधान पीठ की सुनवाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की ओर से सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि मेरे मन में ये सवाल उठ रहे हैं कि माइनोरिटी क्या है और अल्पसंख्यक संस्था का स्टेट्स कैसे मिलता है?इस पर सीजीआई वाईएस चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 30 का अर्थ है – आप संस्थान स्थापित करें और उसका प्रशासन करें। राजीव धवन ने उनके बाद कहा कि शुरुआत से ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का चरित्र अल्पसंख्यक यानी खास कर मुस्लिम प्रधान रहा है। उसके स्थापना से लेकर शिक्षा के पाठ्यक्रम और प्रशासन और कुलपति के साथ-साथ फैकल्टी में भी मुस्लिमों का ही योगदान या बाहुल्य रहा है। इसलिए इसे अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने राजीव धवन से पूछा कि अलीगढ़ यूनिवर्सिटी एक्ट के मुताबिक गवर्निंग काउंसिल के 180 में से 37 सदस्य मुस्लिम होना जरूरी है। ऐसे में गैर-मुस्लिम काउंसिल वाली इस यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक एजुकेशनल इंस्टीट्यूट मानना कितना सही है।

जवाब में राजीव धवन ने कहा कि AMU की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय ने की थी। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय की सेवा करना था। अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा पाने के लिए काउंसिल में 100% अल्पसंख्यकों के नियंत्रण की जरूरत नहीं थी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से जवाब दायर कर कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी राष्ट्रीय महत्व का संस्थान था और है। इसलिए किसी एक समुदाय या अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है। केंद्र ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने तब इस संस्थान की शुरुआत की थी। इस संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा देकर यहां SC/ST/OBC/EWS समुदाय को मिलने वाले रिजर्वेशन से नहीं रोका जाना चाहिए।

सरकार की ओर से वकील :- अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमण सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता

AMU की ओर से वकील :- राजीव धवन व कपिल सिब्बल

किसी यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा कब मिलता है:-

भारतीय संविधान के आर्टिकल 30 (1) में कहा गया है कि भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक लोगों को अपने पसंद की शैक्षणिक संस्थान बनाने और उसे चलाने का अधिकार है। इस कानून के आधार पर कई संस्थानों ने अल्पसंख्यक दर्जे का दावा किया।1970 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार वर्सेस मदर प्रोविंशियल केस में कहा कि अगर अल्पसंख्यक समुदाय का कोई शख्स अल्पसंख्यकों के हित में शिक्षण संस्थान शुरू करता है तो उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलेगा। राज्य शैक्षिक संस्थाओं को सहायता देते समय भेदभाव नहीं करेगा।इस तरह के संस्थानों में अल्पसंख्यकों की भाषा, संस्कृति की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किया जाता है। इसके साथ ही एडमिशन में अल्पसंख्यकों के लिए निश्चित सीटें रिजर्व होती है।

भारत सरकार ने 2004 में ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम‘ कानून बनाकर इन संस्थानों के लिए एक गाइडलाइन बनाई। इस कानून की धारा 2(G) के मुताबिक वो संस्थान जिसे किसी अल्पसंख्यक ने बनाया हो और उसे चला रहा हो। इस तरह के संस्थान अल्पसंख्यक के लिए दावा कर सकते हैं।अब मामला यहां अटका कि अल्पसंख्यक समुदाय कौन है? भाषाई या धार्मिक आधार पर कोई समुदाय एक राज्य में अल्पसंख्यक है, जबकि दूसरे राज्य में बहुसंख्यक हो सकता है। ऐसे में ये फैसला कौन और कैसे करेगा कि वास्तव में अल्पसंख्यक कौन है?

2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में इस समस्या का भी समाधान कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक का दर्जा किसी समुदाय को राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि राज्य स्तर पर तय होगा।

टी एम पी फाउंडेशन’ वाद्य (2002):• सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों का आश्रम राज्य आधार पर स्थापित किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट

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