मुस्लिम कौन है(Who is Muslim):–
कोई व्यक्ति दो प्रकार से मुस्लिम हो सकता है:-
ⅰ) जन्म से मुसलमान होना – कोई भी ऐसा बच्चा जन्म से मुसलमान कहलायेगा जिसके माता पिता दोनों ही मुसलमान हैं या माता पिता में से कोई भी एक मुसलमान हे और उसने इस्लाम धर्म का शपथपूर्वक त्याग नहीं किया है।
ⅱ) धर्म परिवर्तन से मुसलमान- कोई भी ऐसा व्यक्ति जो ईसाई, बौद्ध, हिन्दू है और मुस्लिम धर्म में विश्वास करते हुए उसके अनुसार आचरण करते हुए इस्लाम धर्म को स्वीकार करता है वह भी मुसलमान कहलायेगा।
शिया व सुन्नी विधि में अंतर–
1) विवाह (Marriage)-
1) मुता विवाह– शिया विधि में मुता विवाह कानूनी है जबकि सुन्नी विधि में गैर कानूनी है।
ⅱ) स्वीकृति– शिया विधि में केवल पिता या पितामह की स्वीकृति मान्य है जबकि सुत्री विधि में पिता या पितामह के अलावा लड़की के भाई या पैतृक या माता के संबंधी भी स्वीकृति दे सकते है।
iii) गवाह– शिया विधि में विवाह के समय गवाहों की उपस्थिति आवश्यक नहीं है जबकि सुन्नी विधि में दो पुरुष गवाहों की उपस्थिति आवश्यक है।
iv) तलाक– शिया विधि में तलाक के समय दो गवाह की आवश्यकता होती है जबकि सुन्नी विधि में तलाक के समय गवाहों की आवश्यकता नहीं होती।
v) संबंध– शिया विधि में विवाह सबंध वैध या शून्य होते हैं जबकि सुन्नी विधि में विवाह संबंध वैध अनियमित और शून्य होते है।
2) मेहर (Dower)-
1) शिया विधि में मेहर की कोई न्यूनतम धनराशि निश्चित नहीं है जबकि सुन्नी विधि में मेहर की कम से कम धनराशि दस दिरहम होता है।
ⅱ) शिया विधि में मेहर की अधिकतम रकम 500 दिरहम होनी चाहिए जबकि सुन्नी विधि में मेहर की अधिकतम राशि निश्चित नहीं है।
ii) शिया विधि में मेहर का भुगतान शर्तहीन और तुरंत देय होता है जबकि सुन्नी विधि में मेहर का कुछ भाग तुरंत देय तथा कुछ भाग बाद में भुगतान किया जा सकता है।
3) तलाक (Divorce)-
1) शिया विधि में तलाक मौखिक और दो गवाहों की उपस्थिति में दिया जाना जरूरी है जबकि सुन्नी विधि में तलाक मौखिक या लिखित कैसा भी हो सकता है।
2) शिया विधि में शराब या नशे में या बलपूर्वक कराया गया तलाक शून्य होता है जबकि सुन्नी विधि में नशे या बलपूर्वक कराया गया तलाक मान्य होता है।
3) शिया विधि में तलाक उल सुन्नत श्रेष्ठ माना जाता है जबकि सुन्नी विधि में तलाक उल सुन्नत व तलाक उल बिद्दत दोनों को ही श्रेष्ठ माना जाता है।
4) शिया विधि में तलाक की घोषणा के समय गवाहों की आवश्यकता होती है जबकि सुन्नी विधि में गवाहों की आवश्यकता नहीं होती।
4) वसीयत (Will):-
1) शिया विधि में सम्पत्ति के 1/3 भाग तक की वसीयत उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना की जा सकती है जबकि सुन्नी विधि में सम्पत्ति के किसी भी भाग की वसीयत उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना नहीं की जा सकती।
2) शिया विधि में यदि 1/3 भाग से अधिक की वसीयत है तो उत्तराधिकारियों की सहमति वसीयत करने वाले की मृत्यु से पहले या बाद में ली जा सकती है जबकि सुन्नी विधि में उत्तराधिकारियों की सहमति वसीयत करने वाले की मृत्यु के बाद ली जाती है
3) शिया विधि में अजन्मे बच्चे को की गई वसीयत मान्य होती है भले ही वह वसीयत के 10 महीने बाद उत्पन्न हो जबकि सुन्नी विधि में अजन्मे बच्चे को की गई वसीयत तभी मान्य होती है जबकि वह वसीयत की तारीख से 6 महीने के बाद के आदर उत्पन्न हो।
4) शिया विधि में यदि वसीयत आत्महत्या का प्रयास करने से पहले की गई है तो मान्य होगी अथवा नहीं, जबकि सुन्नी विधि में वसीयत प्राप्त करने वाला आत्महत्या की कोशिश करें तो भी उसके पक्ष में की गई वसीयत मान्य होगी।
5) शिया विधि में वसीयत प्राप्त करने वाले की वसीयत करने वाले से पहले मृत्यु होने पर वसीयत खत्म नहीं होती बल्कि वह वसीयत ग्रहण करने वाले के उत्तराधिकारियों को मिलती है जबकि सुन्नी विधि में वसीयत प्राप्त करने वाले की वसीयत करने वाले से पहले मृत्यु होने पर वसीयत समाप्त हो जाती है।
6) शिया विधि में यदि वसीयत ग्रहण करने वाला जानबूझकर वसीयतकर्ता की हत्या करता है तो वह वसीयत का अधिकारी नहीं होता जबकि सुन्नी विधि में यदि वसीयत ग्रहण करने वाला जाने या अनजाने में वसीयतकर्ता जी हत्या कर देता है तो वह वसीयत का अधिकारी नहीं होता।
5) दान/हिबा (Gift):-शिया विधि में सम्पत्ति के अविभाजित हिस्से का दान मान्य है जबकि सुन्नी विधि में अमान्य है।
6) शुफा (Pre-Emption)-शिया विधि में शुफा का अधिकार केवल सह-भागीदारी के बीच मान्य होता है और वह भी तब जब वह दो से अधिक न हो जबकि सुत्री विधि में शुफा के लिए सह भागीदारी के अलावा अन्य व्यक्ति भी गुफा के अधिकारी होते है।
7) वक्फ (Waqf)-
1) शिया विधि में केवल घोषणा से वक्फ पूरा नहीं होता बल्कि कब्ज़ा भी देना जरूरी है जबकि सुन्नी विधि में केवल दान की घोषणा से पूरा हो जाता है।
ⅱ) शिया विधि में वाकिफ अपने निजी कर्ज के भुगतान की व्यवस्था करने का अधिकारी नहीं होता जबकि रात्री विधि में वाकिफ अपने निजी कर्ज के भुगतान की व्यवस्था करने का अधिकारी होता है।
8) उत्तराधिकार (Inheritance)-
1) शिया विधि में दो तरह के उत्तराधिकारी होते है- हिस्सेदार और अवशिष्ट जबकि सुन्नी विधि में तीन प्रकार के उत्तराधिकारी होते हैं- हिस्सेदार अवशिष्ट और दूर के संबंधी।
ii) शिया विधि ज्येष्ठाधिकार को कुछ सीमा तक मान्यता देती है। ज्येष्ठ पुत्र जिन सम्पत्तियों को अकेले प्राप्त करने का हकदार है वे है मृतक के वस्त्र, अंगूठी, तलवार और कुरान जबकि सुन्नी विधि किसी ज्येष्ठाधिकार को मान्यता नहीं देती।
3) सुन्नी विधि में मानव हत्या प्रत्येक अवस्था में मारे गए व्यक्ति की सम्पत्ति के उत्तराधिकार में रुकावट है जबकि शिया विधि में केवल जब साशय ऐसा किया जाए तभी वह उत्तराधिकार में रुकावट होती है।
iv) सुन्नी विधि में वृद्धि (औल) का सिद्धांत जिसके अनुसार यदि हिस्सेदार का कुल योग इकाई से अधिक होता है तो प्रत्येक हिस्सेदारों का अंश कम हो जाता है सभी हिस्सेदारों पर समान रूप से लागू होता है जबकि शिया विधि में वृद्धि (औल) का सिद्धांत केवल पुत्रियों और बहनों के प्रति ही लागू होता है।