प्रतिनिधिक दायित्व (Vicarious Liability)
अर्थ (Meaning) :- आमतौर पर कोई भी व्यक्ति अपने द्वारा किये गये दोषपूर्ण कार्य के लिए ही जिम्मेदार होता है और दूसरो के द्वारा किये गये कार्य के लिए उसका कोई दायित्व नहीं है, लेकिन कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किये गये कार्य के लिए भी जिम्मेदार होता है, ऐसे दायित्व को प्रतिनिधिक दायित्व कहते हैं।
प्रतिनिधि दायित्व से संबंधित सूत्र–
1) दूसरों के माध्यम से कार्य करने वाला ही असली कर्त्ता है (Qui facit per alium facit per se)- इसका अर्थ है कि जो दूसरों के माध्यम से कार्य करता है वह कानून की नज़र में खुद ही कार्य करने वाला समझा जाता है। जैसे- नौकर द्वारा किये गये कार्य के लिए मलिक की जिम्मेदारी।
2) प्रधान व्यक्ति ही उत्तरदायीं है (Respondent Superior) अर्थ है कि मुख्य व्यक्ति ही जिम्मेदार ठहराया जाए, इस नियम के संबंध में नौकर द्वारा किए गए सभी स्पष्ट और अस्पष्ट कार्य स्वामी द्वारा किये गये समझे जायगे।
प्रतिनिधिक दायित्व कैसे उत्पन्न होता है यह तीन प्रकार से उत्पन्न होता है-
1) अनुसमर्थन ।
2) विशेष संबंध के कारण।
3) दुष्प्रेरण से।
1) अनुसमर्थन– यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की तरफ से कोई कार्य करता है और बाद में वह दूसरा व्यक्ति उस कार्य का अनुसमर्थन कर देता है तो वह उस कार्य के लिये जिम्मेदार होता है भले ही वह कार्य उसके फायदे के लिए हो या नुकसान के लिए।
2) विशेष संबंध के कारण– कभी-कभी दो व्यक्तियों के पारस्परिक संबंध ऐसे होते हैं कि कानून एक के द्वारा किये हुए अपकृत्य के लिए दूसरे को जिम्मेदार मानता है।उदाहरण-
1) स्वामी तथा सेवक ।
2) स्वामी तथा स्वतंत्र ठेकेदार।
3) मालिक तथा अभिकर्त्ता ।
4) कंपनी तथा उसके निदेशक।
5) फर्म तथा उसके भागीदार।
6) संरक्षक तथा प्रतिपाल्य।
7) पति और पत्नी।
3) दुष्प्रेरण द्वारा – कोई व्यक्ति जब किसी को कोई अपराध करने के लिए उकसाता या भड़काता है तो वह भी प्रतिनिधिक रूप से दायी होगा।
स्वामी तथा सेवक (Master and Servant)-स्वामी को जिम्मेदार ठहराने के लिए दो शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-
1) दोनो व्यक्तियो के बीच सेवक और स्वामी का संबंध होना चाहिए।
2) सेवक द्वारा अपकृत्यपूर्ण कार्य नियोजन के दौरान किया जाना चाहिए।सेवक – वह व्यक्ति है जो किसी दूसरे के नियंत्रण या। निर्देश के अनुसार कार्य करता है।
स्वामी अपने सेवक के कार्यों के लिए छह अवस्थाओ में उत्तरदायीं होता है-
1) स्वामी के आदेश का पालन करते समय सेवक से कोई गलती हो जाती है तो उसके लिए स्वामी दायीं होता है।
केस- पुनम्मा बनाम रामनाथना केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रतिनिधिक दायित्व का प्रश्न तभी उठता है, जबअपकृत्य सेवा के दौरान किया गया हो। इस मामले में एक मोटर वर्कशॉप में मरम्मत के लिए दी गई कार को नौकर कीलापरवाही से भारी क्षति पहुंची थी।
2) यदि सेवक की असावधानी और लापरवाही से किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचती है तो स्वामी दायीं होगा।
केस- उड़ीसा राज्य व्यापार परिवहन निगम बनाम श्रीमती धूमाली बेवा तथा अन्य इस मामले में परिवहन निगमके ट्रक को एक क्लीनर असावधानी से चला रहा था। उसने बिना हॉर्न बजाये ट्रक को पीछे चला दिया, जिससे तीनव्यक्तियों की मृत्यु हो गई। न्यायालय ने कहा कि ट्रक का स्वामी क्षति के लिए प्रतिनिधिक दायित्व के अधीन दायीं होगा।
3) यदि सेवक से किसी कानूनी कार्य के निष्पादन में गलत ढंग से करने पर त्रुटि हुई तो स्वामी दायीं होगा।
केस- सेमूर बनाम ग्रीनवुड– इस वाद में कंपनी के गार्ड ने यह समझकर कि एक यात्री शराब पिए हुए बैठा है, यात्री को बलपूर्वक गाड़ी से बाहर धकेल दिया जिससे यात्री को चोट लग गई। यह निर्णय दिया गया कि गार्ड के गलत कार्य के लिए प्रतिवादी जिम्मेदार है।
4) सेवक द्वारा जानबूझकर अनुचित कार्य किया जाए तो स्वामी दायी होता है।
केस- लिम्पस बनाम लंडन जनरल आम्नीबस कंपनी इस मामले में कंपनी के बस ड्राइवर ने स्वामी की इस आज्ञा के विरुद्ध कि वह किसी दूसरे बस वाले के साथ लड़ाई न करें, जानबूझकर सड़क के पार अपनी बस चलाईं जिससे वादी के बस का रास्ता अवरुद्ध हो गया और वादी की बस का संतुलन बिगड़ गया और दुर्घटना हुई। कंपनी नुकसानी के लिए दायीं ठहरायी गयी।
5) यदि सेवक ने कोई कपटपूर्ण कार्य अपने सेवाकाल में किया है तो स्वामी उसके उसके लिए द दायीं होगा।
केस- लॉर्ड बनाम ग्रेस स्मिथ एंड कंपनी श्रीमती लॉयड कंपनी के कार्यालय पर गई क्योंकि वह अपना मकान बेचना चाहती थी। नौकर ने वादिनी के कागजात लेकर अपने पास अंतरण कर लिया। जब वादिनी ने कंपनी के नौकर के विरुद्ध कपट के लिए नुकसानी का दावा किया। न्यायालय ने कहा कि कंपनी वादिनी के प्रति दायीं थी भले ही प्रतिवादी को नौकर के कार्य से फायदा नही पहुंचा था।
6) यदि सेवक अपने सेवाकाल में कोई आपराधिक कार्य करता है तो स्वामी दायीं होगा।
केस- अक्सब्रिज परमानेंट बेनिफिट बिल्डिंग सोसायटी बनाम पिकर्ड- इस वाद में सालिसिटर के प्रबंधक ने झुठे बंध पत्र पर 500 एडवांस ले लिए थे जिसके लिए सालिसिटर को दायी ठहराया।
स्वतंत्र ठेकेदार – एक ऐसा व्यक्ति होता है जो किसी के नियंत्रण के अधीन कार्य नहीं करता वह ठेकेदार के रूप में अपने कार्यों का भार अपने हाथ में लेता है और कार्य करने के ढंग के बारे में स्वयं अपना विवेक प्रयोग करता है।
केस- मोरगन बनाम इनकॉरपोरेटेड सेंट्रल काउंसिल (1936)- वादी जब प्रतिवादी के परिसर में घूमने गया तब वह एक खुले लिफ्ट के किनारे में गिर पड़ा और क्षतिग्रस्त हो गया। प्रतिवादी ने लिफ्ट को उचित व्यवस्था में रखने का कार्य एक स्वतंत्र ठेकेदार को दे रखा था। न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्र ठेकेदार की लापरवाही के लिए प्रतिवादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
लेकिन यह मामला इसका अपवाद है-
केस- रायलैंड्स बनाम फ्लेचर (1868)- कठोर दायित्व के मामलों में नियोजक स्वतंत्र ठेकेदार के द्वारा किए गए कार्यों के लिए उत्तरदायी होगा तथा क्षति के दायित्व से वह अपना बचाव नहीं ले सकता।भागीदार का दायित्व भागीदारों के बीच का संबंध प्रमुख और अभिकर्ता का संबंध होता है।
केस- हेमलिन बनाम हॉस्टन एंड कंपनी (1903)- फर्म के दो भागीदारों में से एक ने अपने वादी के क्लर्क को रिश्वत दी कि वह वादी के व्यापार की गोपनीय बातें बता दे और उनका रहस्य खोल दे। न्यायालय ने कहा कि फर्म के दोनों भागीदार अपकृत्य के लिए उत्तरदायी थे। हालांकि दोषपूर्ण कार्य केवल एक भागीदार द्वारा ही किया गया था।