अतिचार (Trespass)

परिभाषा (Definition) :- किसी व्यक्ति के घर या भूमि में गलत ढंग से प्रवेश करना या उसके कब्जे में बाधा पहुंचाना अतिचार कहलाता है। दूसरे शब्दों में बिना कानूनी औचित्य के किसी की भूमि में थोडा सा भी हस्तक्षेप अतिचार माना जाता है।

उदाहरण के लिए– किसी की जमीन पर पत्थर फेंकना, किसी की दीवार पर लिखना, किसी की दीवार में कील गाड़ना, छत पर मलबे छोड़ना आदि।

अतिचार की कार्यवाही करने के लिए ये बातें साबित करनी होगी-

1) अतिचार के समय वादी का संपत्ति पर वास्तविक कब्जा था और उसका कब्जा प्रभावित होना चाहिए।

2) वादी की भूमि पर सीधा हस्तक्षेप किया गया था।बिना कानूनी औचित्य के अनाधिकार प्रवेश किसी व्यक्ति के अधिकार का का उल्लंघन माना जाता है।

केस- माधव विठ्ठल बनाम माधव दास (1979)– इस मामले में प्रतिवादी वादी के बहुमंजिले मकान के प्रथम मंजिल पर किराएदार था। वह वादी के परिसर में ही अपनी कार खड़ी करता था। वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध वाद दायर किया। न्यायालय ने कहा कि किसी बहुमंजिले मकान के किराएदार को यह अधिकार है यदि उसके पास कोई सवारी है तो मकान के परिसर में खड़ा करें लेकिन ऐसा करने में किसी दूसरे व्यक्ति को कोई असुविधा नहीं पहुँचनी चाहिए।

अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) के दुरुपयोग द्वारा अतिचार :

सर फ्रेडरिक पोलक के अनुसार लाइसेंस एक प्रकार की सहमति होती है जो संपत्ति से संबंधित कार्य को दोषपूर्ण होने से रोकती है।

केस- वुड बनाम लेडबाईटर (1934)- वादी ने एक भूमि पर दौड़ देखने का टिकट खरीदा। प्रतिवादी ने अपने मालिक के आदेश के अनुसार वादी को जाने के लिए कहा, वादी के इनकार करने पर उसे बलपूर्वक बाहर निकाल दिया। वादी ने नुकसानी का दावा किया, न्यायालय ने मामला खारिज कर दिया क्योंकि वादी को वहां रहने का अधिकार नहीं था और उसके पास केवल लाइसेंस था।

आरंभ से ही अतिचार (Trespass Ab Initio) :-जब कोई व्यक्ति किसी की भूमि पर कानूनी अधिकार से प्रवेश करता है और बाद में अपने अधिकार का दुरुपयोग करता है तब वह अपने प्रवेश और बाद में सभी कार्यों के लिए नुकसानी के लिए जिम्मेदार होता है और इसे आरंभ से ही अतिचार कहा जाता है।

केस- सिक्स कारपेन्टर्स का मामला (1610)- इस मामले में छह बढ़ाई एक सराय में गए वहां उन लोगों ने शराब मंगवाकर पी, लेकिन पैसे देने से इनकार कर दिया। वादी ने उन पर आरम्भ से अतिचार के लिए वाद दायर किया। न्यायालय ने कहा कि वे आरंभ से अतिचार की दोषी नहीं थे क्योंकि उन लोगों ने अपने अधिकार का दुरुपयोग नहीं किया उन्हें सराय में घुसने का सार्वजनिक अधिकार था। शराब के मूल्य का भुगतान न करना अपकरण था।

चालू रहने वाला अतिचार (Continuing Trespass) :- अतिचार एक लगातार जारी रहने वाला अपकृत्य है जब तक दोषकर्ता किसी व्यक्ति की भूमि पर रहता है तब तक अतिचार भी जारी रहता है किसी की भूमि पर पत्थर फेंकना या पड़ोसी की भूमि पर दीवार बनाना आदि के संबंध में अतिचार तब तक बना रहता है जब तक अतिचारी उस वस्तु को वहां से ना हटा लें।

केस- हडसन बनाम निकोलसन (1839)– इस मामले में प्रतिवादी ने बगल की जमीन पर लकड़ी के कुछ लट्ठे अपने मकान की रोक के लिए रख दिए थे। बाद में उस जमीन को वादी ने खरीद लिया। लकड़ी के लया। लकड़ी के लड्डे जमीन पर वैसे ही पड़े रहे। न्यायालय ने कहा कि यह चालू रहने वाला अपकृत्य है।

अतिचार के कार्यवाही में बचाव (Defences) :-

1) चिरभोग (Prescription)- प्रतिवादी अपने बचाव में कह सकता है कि जिस भूमि पर प्रवेश करने के आरोप में उस पर अतिचार का मुकदमा चलाया गया है उस पर उसे बहुत समय से उपयोग करने के कारण प्रवेश का अधिकार प्राप्त था। वादी ने उसके चिरभोग के अधिकार में बाधा डाली है।

2) अनुमति एवं अनुज्ञप्ति (Leave and Licence) – लाइसेंस या अनुमति प्राप्त होने पर कार्य कानूनी हो जाता है। अनुमति तथा अनुज्ञप्ति प्राप्त करने के बाद अन्य व्यक्ति की भूमि पर प्रवेश पर अतिचार का मुकदमा नहीं चलाया जासकता।

3) आत्मरक्षा (Self Defence)– अपनी रक्षा या किसी अन्य की संपत्ति की रक्षा में किया गया अतिचार माफी योग्य होता है। यदि किसी वस्तु पर किसी व्यक्ति का अधिकार और कब्जा है और अन्य व्यक्ति उसको छीनना चाहता है तो वह व्यक्ति अपने अधिकार की रक्षा के लिए उचित बल का प्रयोग कर सकता है।

4) आवश्यकता के कार्य (Acts of Necessity)- यदि किसी भूमि पर आवश्यकता पड़ने पर जाना पड़े तो वह प्रवेश भी अतिचार नहीं माना जाता है।उदाहरण के लिए- यदि किसी व्यक्ति के मकान में आग लग गई है तो आग बुझाने के लिए उसकी भूमि पर उसकी अनुमति के बिना प्रवेश करना अतिचार नहीं होता।

वादी के लिए उपाय जिस व्यक्ति की भूमि पर अतिचार हुआ है उसे ये उपाय प्राप्त होते हैं-

1) नुकसानी– वह अतिचारी के विरुद्ध नुकसानी का वाद ला सकता है।

2) बेदखली– वादी बलपूर्वक अपने अधिकार की रक्षा कर सकता है तथा अतिचारी को बेदखल कर सकता है। लेकिन शक्ति का प्रयोग आवश्यकता के अनुसार ही होना चाहिए।

3) व्यादेश – व्यादेश प्राप्त करके जारी रहने वाले अतिचार को रोक सकता है।

4) वस्तु का अभिग्रहण- यदि अतिचार के साथ-साथ वास्तविक क्षति भी हुई है तो वादी को यह हक होगा वह नुकसानी पाने के लिए अतिचारी की वस्तु या पशु को जब्त कर सकता है। इसे नुकसान पूर्ति करस्थम कहा जाता है।

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