अपकृत्य के उपचार (Remedies of Tort) :-

अपकृत्य के उपचार दो प्रकार के होते हैं-

1) न्यायिक उपचार (Judicial Remedies)

2) न्यायेतर उपचार (Extra-Judicial Remedies)

1) न्यायिक उपचार- वे उपचार जो व्यक्ति को कानून के अनुसार प्राप्त होते हैं। अपकृत्य विधि का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को नुकसान का मुआवजा दिलाना है। न्यायालय में दावा करके इन उपचारों को प्राप्त किया जा सकता है।

इन्हें तीन भागो में बांटा जा सकता है-

i) नुकसानी (Damages)

ii) व्यादेश (Injunctions)

iii) संपत्ति की वापसी (Specific Restitution of property)

2) न्यायेतर उपचार– इसमें वे उपाय आते हैं जो कानूनी से सम्बंधित नहीं होते पीड़ित व्यक्ति खुद उनको अपनाता है
इसमें-

i) आत्मरक्षा।

ii) अतिचारी को बलपूर्वक रोकना।

iii) अपनी संपत्ति पर दोबारा प्रवेश।

iv) संपत्ति की वापसी।

v) न्यूसेंस का उपशमन

vi) नुकसान पूर्ति करस्थम

होते, पीड़ित व्यक्ति खुद उनको अपनाता है।

i) नुकसानी– यह उपचार अपकृत्य के सभी मामलों में आसानी से प्राप्त होता है। अपकृत्य एक सिविल क्षति है जिसका उपचार नुकसानी का दावा है। प्रकार- दो प्रकार की होती है-

i) साधारण नुकसानी।

ii) विशेष क्षति।
केस- ओरिएंटल फायर तथा जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड नई दिल्ली बनाम लालता प्रसाद श्रीवास्तव (1989) – इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि नुकसानी का उद्देश्य व्यक्ति को उसकी क्षति के लिए धनराशि देना है, जिससे कि उसे पहले वाली स्थिति में पहुंचाया जा सके।

ii) व्यादेश – इसके द्वारा न्यायालय प्रतिवादी को किसी गैरकानूनी कार्यों को करने से रोकने या जारी रखने और दोहराने से मना कर सकता है। व्यादेश न्यायालय के विवेक पर आधारित होता है। यह उपचार मानहानि, न्यूसेंस, अतिचार जैसे अपकृत्यों में दिया जाता है।

प्रकार- व्यादेश चार प्रकार के होते हैं-

1) अस्थाई

2) स्थाई या शाश्वत ।

3)प्रतिषेधात्मक

4) आज्ञापक

iii) संपत्ति की वापसी – कोई व्यक्ति जब अपनी अचल और चल से गैरकानूनी ढंग से बेदखल कर दिया जाता है तो उसे अपनी संपत्ति को दुबारा प्राप्त करने का अधिकार होता है।

न्यायोचित उपचार :-

i) आत्मरक्षा– प्रत्येक व्यक्ति को बल प्रयोग करके अपनी रक्षा करने का अधिकार है लेकिन आत्मरक्षा के लिए प्रयोग किया गया बल आवश्यकता से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इसमें अपने शरीर की रक्षा, परिवार वालों की रक्षा, मालिक और नौकर की रक्षा, संपत्ति की रक्षा का अधिकार भी शामिल हैं।

ii) अतिचारी को बलपूर्वक रोकना– अतिचारी को निकालने का अधिकार हर व्यक्ति को होता है। इसका प्रयोग वही व्यक्ति कर सकता है जिसका संपत्ति पर वास्तविक कब्जा हो।

iii) भूमि पर दोबारा प्रवेश– गलत ढंग से अपनी संपत्ति से बेदखल किया गया व्यक्ति अपना कब्जा शांतिपूर्ण ढंग से दोबारा प्राप्त कर सकता है।

iv) संपत्ति की वापसी– यदि किसी व्यक्ति की चल सम्पत्ति किसी ने गैरकानूनी ढंग से जब्त कर ली है या उसे छीन लिया है तो ऐसा व्यक्ति शांतिपूर्ण ढंग से अपने कब्जे की रक्षा कर सकता है या अपनी संपत्ति को वापस ले सकता है।
v) न्यूसेंस का उपशमन- न्यूसेंस दो प्रकार के होते है- लोक न्यूसेंस और प्राइवेट न्यूसेंस। कुछ अवस्थाओं में शक्ति का प्रयोग करके प्रभावित व्यक्ति इन्हें दूर कर सकता है।

vi) नुकसान पूर्ति करस्थम– यदि सदोष कार्य करने वाले व्यक्ति ने संपत्ति के मालिक को संपत्ति पर आकर हानि पहुंचाई है तो उसके स्वामी को ऐसी वस्तुओं को रोककर रखने का अधिकार होता है।

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