भारत माता की धारणा का उद्गम 19वीं सदी में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किरण चंद्र बैनर्जी के नाटक, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास, बिपिन चंद्र पाल के लेखों और अबनिंद्रनाथ टैगोर के चित्र से हुआ माना जाता है। अबनिंद्रनाथ टैगोर के चित्र में ‘भारत माता’ को केसरिया रंग के कपड़े पहनी हुईं और चार हाथों में अपनी संतानों के लिए जपमाला (श्रद्धा का प्रतीक), वेद (ज्ञान का प्रतीक), चावल के डंठल ( अन्न का प्रतीक) और कपड़ा (वस्त्र का प्रतीक) थामे हुए दिखाया गया है। इस तस्वीर से प्रेरित भारत माता के अन्य संस्करणों में बाद में उन्हें हाथ में तिरंगा पकड़े हुए, शेर पर सवार या शेरों द्वारा खींचे गए रथ पर सवार दिखाया गया।

भारत माता जैसी अन्य देशों की भी अपनी-अपनी ‘माताएं’ हैं, उदाहरणार्थ ब्रिटेन की ब्रिटैनिया, फ्रांस की मारिआन, न्यूज़ीलैंड की ज़ीलैंडिया, स्वीडन की मदर स्वेया और अमेरिका की कोलंबिया । ये जन्मभूमि से देवियां हैं, जिनका औपनिवेशिक काल में उद्गम हुआ। इस काल के अंत में राष्ट्र-राज्यों के उद्गम के साथ इन देवियों ने देश की ‘माता’ के रूप में अपनी जगह ली|

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