दुर्भावनापूर्ण अभियोजन (Malicious Prosecution)-
अर्थ (Meaning) :- हर व्यक्ति को यह अधिकार होता है कि उसे गलत कानूनी कार्यवाही से परेशान न किया जाए और यदि कानूनी कार्यवाही का उद्देश्य न्याय पाना न हो बल्कि न्यायालय की शक्ति का दुरुपयोग करने का गलत उद्देश्य हो तो ऐसी कार्यवाही उचित है समझ में नहीं आएगा।
परिभाषा :- विद्वेषपूर्ण अभियोजन ऐसी असफल दण्डिक कार्रवाई होती है जो किसी निर्दोष व्यक्ति के विरुद्ध शुरू की जाती है जिसके पीछे कोई युक्तियुक्त कारण नहीं होता केवल विवाद होता है और जो न्याय के लिए नहीं बल्कि वादी को शारीरिक, आर्थिक तथा प्रतिष्ठा संबंधी क्षति के कारण होता है। के लिए की जाती है।
उदाहरण के लिए– • यदि वादी के विरुद्ध प्रतिवादी द्वारा झूठा वाद चलाया जाए और निर्णय वादी के पक्ष में दिया जाए न्याय या वादी को न्यायालय द्वारा निर्दोष सिद्ध किया जाए तो वादी अपनी शारीरिक, आर्थिक या ख्याति संबंधी क्षति के लिए प्रतिवादी पर जो वाद दायर किया जाए करेगा, वह विवादास्पद अभियोजन का वादा कहलाएगा।
आवश्यक तत्व (Elements) –
केस- बिहार राज्य बनाम रामेश्वर प्रसाद– विवादास्पद अभियोजन की कार्यवाही करने के लिए ये बातें साबित करनी जरूरी होती है-
1) प्रतिवादी द्वारा अभियोजन चलाया गया हो।
2) वादी के पक्ष में कार्रवाई की समाप्ति हुई हो या निर्णय वादी के पक्ष में आया हो।
3) युक्तियुक्त कारण का अभाव हो।
4) अभियोजन विद्वेष से होना चाहिए।
5) वादी को विद्वेषपूर्ण अभियोजन से क्षति हुई हो।
1) अभियोजन – इसका अर्थ है विधि को गति में लाना। विधि को गति में लाने के लिए किसी भी व्यक्ति को आवेदन देना होता है और यह जरूरी है कि वादी के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही करने के लिए प्रतिवादी ने हीं विधि को गतिमान किया हो लेकिन जरूरी नहीं है कि कार्यवाही में प्रतिवादी पक्षकार भी हो।
केस- गया प्रसाद बनाम भगतसिंह- यदि शिकायत करने वाले को ज्ञान है कि जो उसने शिकायत की है या जो आरोप लगाया है, वह झूठा है ताकि एक निर्दोष व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने अभियोजित किया जाए तो वह व्यक्ति दायीं होगा।
2) वादी के पक्ष में कार्यवाही के समाप्ति– इसकी दूसरी शर्त है कि कार्यवाही वादी के पक्ष में निर्णय दिया गया हो। पक्ष में में समाप्त हुई हो या वादी
केस- बलभद्र सिंह बनाम बद्रीशाह– विद्वेषपूर्ण अभियोजन के लगाया गया आरोप झूठा था तथा उस आरोप के आधार पर शुरू मामले में यह साबित करना पड़ता है कि प्रतिवादी द्वारा की गई कार्यवाही वादी के पक्ष में खत्म हो गई थी।
3) युक्तियुक्त कारण का अभाव – यदि प्रतिवादी के पास ऐसी कार्यवाही करने का कोई युक्तियुक्त आधार था तो कार्यवाही अनुचित होने पर भी उसे जिम्मेदार नहीं माना जाता है।
केस- हिक्स बनाम फोकवर युक्तियुक्त कारण का मतलब है ऐसा कारण जिसमें सोचा जा सके कि वादी शायद लगाए गए आरोप में अपराध का दोषी है।
4) विद्वेषपूर्ण आशय – अभियोजन विद्वेषपूर्ण आशय से होना चाहिये। जो अनुचित प्रेरणा के कारण था ना कि न्याय के लिए।
केस- श्रीमती एस आर वेंकटरमन बनाम भारत संघ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विद्वेषपूर्ण अभियोजन में यह साबित करना जरूरी होता है कि अभियोजन दुराशय से किया गया था।
दुराशय का अर्थ है- गलत कार्य को जानबूझकर बिना किसी उचित कारण के करना।
5) क्षति – यदि वादी को विद्वेषपूर्ण अभियोजन के कारण क्षति या नुकसान होता है तो वादी को यह साबित करना चाहिए कि उसके व्यक्तित्व, प्रतिष्ठा और संपत्ति को क्षति पहुंची है। ऐसी क्षति धन संबंधी होना ही जरूरी नहीं है।
केस- सी एम अग्रवाल बनाम हराल साल्ट एंड केमिकल वर्क्स-कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि विद्वेषपूर्ण अभियोजन में वादी तीन प्रकार की क्षति के लिए दावा कर सकता है-
1)शारीरिक क्षति।
2) संपत्ति की क्षति।
3) प्रतिष्ठा की क्षति।