सहमति से उठाई गई हानि,(वोलेंटी नॉन फिट इंजुरिया) Volenti non fit Injuria

अर्थ:-

इसका अर्थ है– वादी द्वारा अपनी इच्छा से उठाई गई हानि से उसे कोई विधिक क्षति नही होती है वह उसके लिए वाद नहीं ला सकता।

उदाहरण के लिए

1) जब आप किसी व्यक्ति को अपने घर पर आमंत्रित करते हैं तब आप उस पर प्रतिकूल अतिचार का मुकदमा नहीं कर सकते।

2) जब किसी डॉक्टर के सामने आप अपने को किसी ऑपरेशन के लिए समर्थित करते हैं तो ऑपरेशन के बाद उसके विरुद्ध वाद नहीं ला सकते क्योंकि इन कार्यों के लिए आपने अपनी सहमति दी है।

3) यदि मानहानि के प्रकाशन की आप सहमति दे देते हैं तो ऐसे प्रकाशन के बाद आप मानहानि का दावा नहीं कर सकते।पक्षकारों के आचरण से भी सहमति का अनुमान लगाया जा सकता है।

उदाहरण के लिए– क्रिकेट या फुटबॉल के खेल में यह मान लिया जाता है कि खिलाड़ी उस चोट को सहने के लिए सहमत है जो उसे खेल में उसे लग सकती है।

केस- पद्मावती बनाम दुग्गनायिका (1975)– इस मामले में जीप का चालक टंकी में पेट्रोल भरवाने के लिए जा रहा था। दो अनजान व्यक्ति उसमें सवार हो जाते हैं, अचानक अगले पहिए का बोल्ट निकल गया जिस कारण पहिया अलग हो गया और जीप गिर पड़ी। दोनों व्यक्ति जीप से उछलकर बाहर गिर पड़े और हो गई। न्यायालय ने कहा कि चोट और मृत्यु होने के लिए है और उन्हें चोटें आई और एक की मृत्यु भी रना तो चालक जिम्मेदार था और ना ही जीप का मालिक क्योंकि यह एक दुर्घटना का मामला था और वे अपनी इच्छा से जीप में सवार हुए थे। सवार हुए थे।सहमति:-सहमति के आधार पर फायदा व्यक्ति तभी ले सकता है जब सहमति स्वतंत्र हो। यदि कपट, विवशता या भूल के प्रभाव से ली गई है तो वह बचाव नहीं मानी जा सकती। उदाहरण के लिए- यदि किसी मेहमान से कहा गया कि वह बैठक में ही बैठे और वह बिना किसी औचित्य के शयन कक्ष में प्रवेश करता है तो वह अतिचार के लिए जिम्मेदार होगा, वह यह बचाव नहीं ले सकता कि उसने आपकी सहमति से आपके घर में प्रवेश किया था।

केवल खतरे का ज्ञान होना सहमति नहीं माना जाएगा-

केस- स्मिथ बनाम बेकर (1891)- इस मामले में एक व्यक्ति को चट्टान में छेद करने के काम पर रखा था। एक क्रेन से काटे गए पत्थरो को एक तरफ से दूसरी तरफ लाया जा रहा था। एक बार पत्थर क्रेन से नीचे गिर गया जिससे वादी घायल हो गया। उसे चेतावनी नहीं दी गयी भले ही उसे खतरे का पूरा ज्ञान था। हाउस आफ लॉर्ड्स ने कहा कि क्योंकि इस मामले में वादी को खतरे का केवल ज्ञान ही था उससे होने वाली हानि को सहन करने की सहमति नहीं दी थी प्रतिवादी उसे प्रतिकर देने के लिए जिम्मेदार थे।

केस- डॉन बनाम हैमिल्टन (1939)– इस मामले में एक महिला ने जानते हुए कि कार चालक ने शराब पी हुई है और बस की बजाय कार से ही यात्रा करना पसंद किया। चालक द्वारा लापरवाही से कार चलाने के कारण कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई और चालक की मृत्यु हो गई तथा महिला को भी काफी चोटें लगी। महिला को प्रतिकर प्राप्त करने की हकदार माना गया।

रक्षण या बचाव मामले :-

यह सहमति के सिद्धांत के अपवाद है। इसका अर्थ है- जब वादी किसी व्यक्ति का बचाव करने के लिए किसी ऐसे खतरे का सामना स्वयं अपनी इच्छा करता है, जो प्रतिवादी के दोषपूर्ण कार्य से उत्पन्न हुआ है तो उसके विरुद्ध सहमति का सिद्धांत कार्य नहीं करता।

केस- हेन्स बनाम हारवुड (1935)– इस मामले में प्रतिवादी के सेवक ने दो घोड़ागाड़ी को एक गली में छोड़ दिया और वह स्वयं वहां उपस्थित नहीं था। एक लड़के ने घोड़े पर पत्थर फेंके जिस कारण वह भाग उठे और सड़क पर बच्चों तथा महिलाओं के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। एक पुलिस कांस्टेबल ने जब यह देखा तो उसने घोड़े को रोक लिया लेकिन ऐसा करने से उसे खुद को गंभीर चोट आई। इस मामले में सहमति को प्रतिरक्षा के रूप में स्वीकार नहीं किया गया और कहा गया कि प्रतिवादी जिम्मेदार थे।

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