(मृत्यु-शैय्या संव्यवहार ) DEATH-BED TRANSACTIONS
मृत्युदायी रोग क्या है:-इसका अरबी पर्याय मर्ज-उल-मौत है जब किसी मर्ज (रोग या बीमारी) से पीड़ित मनुष्य को मौत (मृत्यु) की आशंका हो तो यह कहा जाता है कि ऐसा व्यक्ति “मर्ज-उल-मौत” अर्थात्, मृत्युदायी रोग से पीड़ित हैं।
बैली के अनुसार :-एक ऐसा रोग है जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु की अधिक संभावना होती हैं।
मुल्ला के अनुसार:-वह रोग जो रोगी में मृत्यु भय उत्पन्न करता है तथा कालान्तर में उसकी मृत्यु हो जाती हैं।
रोगी के चित्त में मृत्यु की आशंका उत्पन्न कर दे।
मृत्यु रोग की पहचान:-रोग की गंभीरता। ② मृत्यु की आशंका ।
मृत्यु- शैय्या पर दान (Death bed Gift) के अनिवार्य तत्व:-मर्ज-उल-मौत के दौरान किया गया दान मृत्यु शैय्या दान कहलाता है यदि दान ग्रहीता अजनबी व्यक्ति है तो वह दानकर्ता के वैध उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना दानकर्ता की संपति के एक-तिहाई से अधिक नहीं प्राप्त कर सकता ।
यदि दान ग्रहीता दानकर्ता के वैध उत्तराधिकारियों में से एक है तो शेष उत्तराधिकारियों की सहमति एक-तिहाई से कम संपति के दान में भी आवश्यक है।
परन्तु शिया विधि के अंतर्गत मृत्युदायी रोग की अवधि में दान एक तिहाई की सीमा तक मान्य है भले ही दान ग्रहीता उत्तराधिकारी ही क्यों न हो।
हिबा के लिए इसमें भी औपचारिकताएँ पूरी करनी होती है:-
(1) दाता द्वारा दान की घोषणा
(2) दान ग्रहीता द्वारा या उसकी ओर से दान की अभिव्यक्त या विवक्षित स्वीकृति
(3) दाता द्वारा दान ग्रहीता को दान की विषय-वस्तु पर कब्जे का परिदान
दान मृत्युदायी रोग के दौरान किया गया तभी माना जायेगा जबकि दान के पश्चात् दानकर्ता की मृत्यु बीमारी से हो जाती है। यदि दानकर्ता इस बीमारी के उपरान्त भी जीवित रहता है तो ऐसा संव्यवहार मर्ज-उल-मौत के दौरान किये गये दान की श्रेणी में नही आयेगा बल्कि हिबा माना जायेगा ।
मृत्यु शैय्या पर ऋण की अभिस्वीकृति और ऋण से उन्मुक्ति:-यदि मृत्यदायी रोग के दौरान किसी ऋण के भुगतान करने का दायित्व स्वीकार कर लिया जाय तो उसे मृत्यु शैय्या पर ऋण की अभिस्वीकृति कहते हैं।
(1) किसी उत्तराधिकारी के पक्ष में की जाने से संपदा पर बंधनकारी नहीं होती।
(2) किसी गैर उत्तराधिकारी के पक्ष में की जाने से उत्तराधिकारी और वसीयतदारों के विरुद्ध निश्चायक होती है।
ऋण से उन्मुक्ति (Release of Debt):-मर्ज-उल-मौत के दौरान दिये हुए ऋण से उन्मुक्ति वसीयत के योग्य केवल एक तिहाई हिस्से के संबंध मे मान्य होती हैं।
मृत्यु शैय्या पर वक्फ (Death-bed waqf):-मृत्यु शैय्या पर किया गया वक्फ उन्हीं नियमों के अधीन होता है जिनसे दूसरे मृत्यु शैय्या व्यवस्थापन शासित होते हैं अर्थात वह संपति के केवल एक तिहाई भाग के संबंध में प्रभावी होता है जबकि दूसरे उत्तराधिकारी उसके लिए सहमत न हो ।
मुमताज अहमद बनाम वसीउन्निसा :-जहा मर्ज उल मौत का सिद्धान्त लागू नहीं होता ऐसी स्थिति में एक-तिहाई परिसंपति के अधिक का वक्फ करना भी मान्य होगा।
मर्ज-उल-मौत के दौरान मेहर की संविदा :-मेहर-उल-मिस्ल अर्थात रिवाजी मेहर के नियमों से शासित होती हैं।
मेहर ऋण से उन्मुक्ति:- मृत्यु रोग से पीड़ित स्त्री अपने पति के पक्ष में मेहर दान करे जब उत्तराधिकारी को आपत्ति ना हो।
मृत्यु शैय्या पर विवाह की संविदा :- मृत्यु शैय्या पर संविदाकृत विवाह अमान्य होता है। परन्तु यदि मनुष्य रोग से अच्छा हो जाय तो विवाह की पूर्णता अमान्यता को दूर कर सकती है।
‘शरअ-ए-उल-इस्लाम‘ का कथन है कि “किसी रोगी द्वारा संविदाकृत विवाह पूर्णता (consummation) पर निर्भर होता है, और विवाह के पूर्णता प्राप्त किये बिना यदि वह उस रोग से मर जाय तो संविदा शून्य हो जाती है और स्त्री को मेहर या उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं प्राप्त होता।”
मर्ज-उल-मौत के दौरान किसी स्वस्थ स्त्री से विवाह करने वाले पति के उत्तराधिकार के अधिकार के बारे में मतभेद है। परन्तु यदि कोई स्त्री मर्ज-उल-मौत के दौरान किसी स्वस्थ पुरुष से विवाह करे, किन्तु वह पुरुष विवाह को बिना पूर्णता प्राप्त कराये मर जाय तो स्त्री अपने मेहर और अपने मृत पति के उत्तराधिकार में एक हिस्से की हकदार होती है, क्योंकि ऐसी संविदा मान्य है। इस सम्बन्ध में शिया और सुन्नी दोनों पर एक ही सिद्धान्त लागू होता है।
मर्ज-उल-मौत के दौरान तलाक :- मर्ज-उल-मौत के दौरान तलाक का उच्चारण शिया और सुन्नी दोनों शाखाओं में मान्य है।
सुन्नी विधि के अन्तर्गत, यदि कोई व्यक्ति मृत्युदायी रोग के दौरान अपनी पत्नी को तलाक देता है, तो पत्नी का उत्तराधिकार का अधिकार कायम रहता है।
शिया विधि के अन्तर्गत, यदि पति तलाक की तिथि से एक वर्ष के अन्दर मर जाता है, तो पत्नी अपने पति की सम्पत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त कर सकती है। परन्तु यह आवश्यक है कि पत्नी इस अवधि में दूसरा विवाह न करे।
मर्ज़-उल-मौत के दौरान दान तथा डोनेशियो मोर्टिस क़ाज़ा (Donatio Mortis Causa) में अन्तर :-
(1) डोनेशियो मोर्टिस काज़ा, जो कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 191 में निहित है, में केवल चल सम्पत्ति का ही दान किया जा सकता है जबकि मर्ज-उल-मौत में दोनों प्रकार की (चल या अचल) सम्पत्ति का दान किया जा सकता है।
(2) डोनेशियो मोर्टिस काज़ा में दान में दी जाने वाली सम्पत्ति की कोई सीमा नहीं होती और न ही यह बन्धन होता है कि सम्पत्ति किसको दी जा रही है। जबकि मर्ज-उल-मौत में कुल सम्पत्ति का एक-तिहाई से अधिक का दान किसी को नहीं किया जा सकता और न ही अपने उत्तराधिकारियों को जब तक कि दूसरे उत्तराधिकारी अपनी स्वेच्छा से स्वतन्त्र सहमति न दे दें।
(3) डोनेशियो मोर्टिस काज़ा में यदि व्यक्ति बीमारी से ठोक हो जाता है तो उसके द्वारा किया गया दान पूर्णतः शून्य हो जाता है जबकि मर्ज-उल-मौत में व्यक्ति के स्वस्थ होने पर दान साधारण दान की तरह किया माना जायेगा।