शबाना बानो बनाम इमरान खान(AIR 2010) :- के वाद में उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर यह निर्धारित किया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 मुस्लिम तलाकशुदा महिला के भरण-पोषण के सम्बन्ध में लागू होगी।
ऐसी महिला अपने पति से इद्दत अवधि गुजर जाने के पश्चात् भी भरण-पोषण लेने की हकदार होगी बशर्ते उसने दूसरा विवाह नहीं किया हो।
इस वाद में वादी शबाना बानो का विवाह प्रतिवादी इमरान खान से 26 नवम्बर, 2001 में मुस्लिम रीति-रिवाज से ग्वालियर में हुआ था।
पत्नी का आरोप था कि दहेज में सभी घर में साधारणत: उपयोग होने वाली चीजों को दिये जाने के बावजूद भी पति और उसके परिवार के सभी सदस्य उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करते थे तथा अधिक दहेज की मांग करते थे।
कुछ दिन पश्चात् पत्नी गर्भवती हो गयी तब उसका पति उसे उसके माता-पिता के घर छोड़ आया। लौटते समय पति ने पत्नी को धमकाया कि अगर उसके माता-पिता ने उसकी दहेज की मांग पूरी नहीं की तो वह बच्चा होने के पश्चात् भी उसे नहीं बुलायेगा।
दूसरी तरफ पति का कहना था कि वह अपनी पत्नी को पहले ही तलाक दे चुका है अतः मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 के अधीन पत्नी केवल इद्दत की अवधि के लिये ही भरण-पोषण की अधिकारी है उसके पश्चात् नहीं। पति ने यह भी कहा कि उसकी पत्नी स्वयं 6,000 रुपये में बच्चों को ट्यूशन देकर कमा रही है तथा आत्मनिर्भर है, इसलिये, किसी भरण-पोषण की हकदार नहीं है।
फैमिली कोर्ट ने यह निर्धारित किया पति अपनी पत्नी को वाद दायर करने से तलाक देने तक तथा इसके पश्चात् इद्दत अवधि तक 2,000 रुपया प्रतिमाह भरण-पोषण के तहत दे। इद्दत अवधि के पश्चात् भरण-पोषण को मना कर दिया। उच्च न्यायालय ने भी इस फैमिली कोर्ट के निर्णय को उचित ठहराया। इस पर उच्चतम न्यायालय में अपील की गयी।
मुस्लिम विधि उच्चतम न्यायालय के समक्ष सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि क्या एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला अपने पति से दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अन्तर्गत भरण-पोषण पाने की अधिकारी है और यदि हां तो किस फोरम से?उच्चतम न्यायालय ने निर्णय सुनाने से पहले मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 की धारा 4 एवं धारा 5 फैमिली कोर्ट अधिनियम, 1984 की धारा 7 एवं धारा 20 का गहन अध्ययन किया जो क्रमशः तथा क्षेत्राधिकार और अधिनियम के सर्वोपरि प्रभाव को बताते हैं।
इस वाद में न्यायालय ने यह अवधारणा व्यक्त की कि फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 20 में यह बिल्कुल स्पष्ट है कि इस पारिवारिक न्यायालय को ही धारा 125 के अधीन दी गयी आवेदन पर निर्णय का अधिकार है।उच्चतम न्यायालय ने डेनियल लतीफी के बाद में अपने दिये गये निर्णय को आधार मानते हुये कहा कि धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 3, 4 एवं 5 मुस्लिम महिला अधिनियम का उद्देश्य एक है कि समाज में गरीबी तथा दयनीयता को रोका जाये। इसके लिये उन लोगों को जो दूसरों की सहायता कर सकते हैंसहायता के लिये मजबूर किया जाये जिसे कि उन लोगों की जिनका सहायता पाने का न्यायिक हक है सहायता मिल सके। उक्त व्याख्यान की रोशनी में न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि एक मुस्लिम महिला को जिसे तलाक दे दिया गया है धारा 125 के तहत इद्दत अवधि के पश्चात् भी भरण-पोषण पाने का अधिकार है जब तक कि वह दूसरा विवाह न कर ले।