• मुल्ला के अनुसार :- हिबा या दान सम्पत्ति का ऐसा तुरन्त प्रभावी होने वाला अन्तरण है जो बिना किसी विनिमय के एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के पक्ष में किया जाये और इस दूसरे व्यक्ति द्वारा स्वीकार कर लिया जाये।
• अमीर अली के अनुसार :- हिबा बिना प्रतिफल के स्वैच्छिक एक अन्तरण है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपनी सम्पत्ति को या किसी वस्तु के तत्व को दूसरे को इस तरीके से देता है कि इसका उसका स्वामी बन जाये।
• विधि ग्रंथ हेदाया के अनुसार :- हिबा किसी वर्तमान सम्पत्ति के स्वामित्व का प्रतिफल रहित एंव बिना शर्त के किया गया तुरन्त प्रभावी होने वाला अन्तरण है।
• आवश्यक शर्ते :- मुस्लिम विधि में दान के विधिमान्य होने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पालन अनिवार्य है-
1. दाता सक्षम होना चाहिए / द्योषणा होनी चाहिए
2. दान ग्रहिता सक्षम हो /स्वीकृति
3. कब्जे का परिदान
1. दान की घोषणा -सक्षम दाता की तरफ से दान की घोषणा होनी चाहिए जो लिखित या मौखिक हो सकती है। वयस्कता की उम्र हिबा के लिए 18 वर्ष होनी चाहिए, यदि नाबालिग का न्यायालय द्वारा संरक्षक नियुक्त है तो वयस्कता की आयु 21 वर्ष होगी। दाता का स्वस्थचित होना चाहिए तथा उसका दान स्वतंत्र इच्छा द्वारा होना चाहिए अर्थात दुर्व्यपदेशन, उत्पीड़न, असम्यक असर, कपट आदि के प्रभाव में न दिया गया हो। दाता जिसका दान कर रहा है वह उसका स्वामी होना चाहिए।
2 . दान ग्रहीता द्वारा स्वीकृति :- जो व्यक्ति दान ले रहा है उस पर उसकी स्वीकृति होनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति दान ग्रहीता हो सकता है धर्म, आयु, लिंग इत्यादि दान लेने में बाधक नही होते है अर्थात गैर मुस्लिम भी सक्षम दानग्रहीत होते है, यहाँ तक कि दान की तारीख से 6 महीने के अंदर जन्म लेने वाले व्यक्ति सक्षम दान ग्रहीता माने जाते है। अवयस्क या विकृतचित को दिया गया दान भी मान्य होता है यदि अवयस्क के संरक्षक उसे स्वीकार कर लें।
3. कब्जा देना :- दाता, द्वारा दान ग्रहीता को उस वस्तु पर कब्जा दिया जाना अनिवार्य है, बिना कब्जे का दान अमान्य होता है।
निम्नलिखित परिस्थितियों में कब्जे का परिदान आवश्यक नही है-
1. जब दाता और दानग्रहीता एक ही मकान में रहते हों।
2. पति-पत्नी का एक दूसरे को दिया गया दान।
3. संरक्षक द्वारा प्रतिपाल्य को दिया गया दान।
• दान हिबा की विषयवस्तु :- कोई भी सम्पत्ति ही हिबा की विषय वस्तु बन सकती है चाहे वह चल, अचल, मूर्त या अमूर्त किसी भी प्रकार की हो वह दान के समय आस्तित्व में होनी चाहिए और दाता का उस पर स्वामित्व के साथ अन्तरण योग्य सम्पत्ति होनी चाहिए।
बीबी रियाजन खातून बनाम सदरूल आलम AIR 1996 Pat.150 निर्धारित किया गया कि दान के लिए दान की घोषणा के साथ-साथ दाता का स्वामित्व का अन्तरण, कब्जे का अन्तरण तथा दानग्रहीता का उसे स्वीकार किया जाना अनिवार्य है।
हेसाबुद्दीन बनाम हेसारूद्दीन AIR 1984 Gaunati -निर्धारित किया गया कि मुस्लिम विधि के अंतर्गत दान लिखित व रजिस्टर्ड किया जाना आवश्यक नही है।
• हिबा/दान के प्रकार – निम्नलिखित प्रकार है-
1. हिबा – बिल – एवज
2. हिबा-ब-शर्तुल-एवज
3. सदका
4. अरियत
• मुशा का दान :– मुशा शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा शूयूम से हुई है, जिसका तात्पर्य सम्पत्ति में अविभाजित हिस्से से होता है, अर्थात् कई व्यक्तियों की अविभाजित सम्पत्ति को मुशा कहते है और उसे जब बिना विभक्त किये दान किया जाता है तो उसे मुशा का दान कहते है।
कासिम हुसैन बनाम शरीफुन्निसा (1883) 5 All 283 इस वाद में एक व्यक्ति द्वारा अपने मकान का दान किया गया था जो उसने उस जीने (सीढ़ी) का भी दान कर दिया जो पड़ोसी के साथ संयुक्त रूप से थी । निर्णीत हुआ कि दान विधिमान्य था क्यों कि सीढ़ी का दान अविभाजित है अतः यह अविभाजित मुशा का दान था।
• दान कब रद्द किया जा सकता है-
1. कब्जा देने के पूर्व
2. कब्जा देने के पश्चात्
• कब रद्द नही होगा –
1. जब दाता की मृत्यु हो जाये (उसके उत्तराधिकारी दान रद्द नही करा सकते हैं)
2. जब दानग्रहीता की मृत्यु हो जाये।
3. दाता व दानग्रहीता वर्जित डिक्री में आते हो।
4. दान पति द्वारा पत्नी या पत्नी द्वारा पति को किया गया हो।
5. जब सम्पत्ति खो गयी हो, नष्ट हो गयी हो, पहचानी न जा सके (गेहूँ से आटा)
6. जब दाता ने दान के बदले में कोई वस्तु प्राप्त की हो।
7. जब दान का उद्देश्य धार्मिक हो (सदका) ।