• अध्याय-1 प्रस्थापनाओं की संसूचना, प्रतिग्रहण और प्रतिसंहरण के विषय में प्रावधानित है इस अध्याय का विस्तार धारा-3 से 9 तक है।
• धारा-3 प्रस्थापनाओं की संसूचना, प्रतिग्रहण और प्रतिसंहरण विषयक उपबंध प्रोज्योजित किया जाता है ।
• प्रस्थापना की परिभाषा भा.सं.अधि. 1872 की धारा-2(क) की दी गयी है।
• धारा-2(क) के अनुसार” जबकि एक व्यक्ति किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने की अपनी रजामंदी, किसी अन्य को इस दृष्टि से संज्ञापित करता है कि वह ऐसे कार्य या प्रविरति के प्रति उस अन्य की अनुमति अभिप्राप्त करे तब वह प्रस्थापना करता है यह कहा जाता है।”
• जो प्रस्थापना करता है वह प्रस्थापक (बचनदाता) और जिसे प्रस्थापना की जाती है उसे प्रस्थापी (वचनग्रहीता) कहा जाता है। धारा-2 (ग)
• प्रस्थापना करने का कार्य इसकी संसूचना दूसरे व्यक्ति को दे देने से पूरा हो जाता है।
• प्रस्थापना की संसूचना का ढंग धारा-3 में बताए गए हैं।
• धारा-3 में-प्रस्थापनाओं की संसूचना – प्रस्थापना करने वाले प्रस्थापनाओं का प्रतिग्रहण – प्रतिग्रहण करने वाले प्रस्थापनाओं तथा प्रतिग्रहणों का प्रतिसंहरण – प्रतिसंहरण करने वाले पक्षकार के किसी कार्य या लोप से हुआ समझा जाता है,
जिसके द्वारा वह ऐसी प्रस्थापना, प्रतिग्रहण या प्रतिसंहरण को संसूचित करने का आशय रखता हो, या जो उसे संसूचित करने का प्रयास रखता हो।
• प्रस्थापना किसी ऐसे ढंग से की जा सकती है जिससे दूसरे व्यक्ति के सम्मुख एक व्यक्ति की रजामंदी स्पष्ट हो जाती है। ऐसा मौखिक या लिखित शब्दों द्वारा या आचरण द्वारा किया जा सकता है।
• धारा-9 के अनुसार जब प्रस्थापना या उसका प्रतिग्रहण शब्दों में किया जाता है तब वह वचन अभिव्यक्त कहलाता है और जब शब्दों से अन्यथा (आचरण द्वारा) किया जाता है तो वह वचन विवक्षित कहलाता है।
• जोन्स बनाम पदवेटन, 1969 WLR 328 के वाद में जस्टिर डकवटस ने इस सिद्धांत को और अधिक विस्तार दे दिया। और कहा कि बुल्फर के वाद सिद्धान्त पति-पत्नी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य रिश्तों जैसे कि बाप-बेटा या मां-बेटी पर भी लागू होता है।
• एक विधिक स्वीकृति या प्रतिग्रहण के आवश्यक तत्व निम्न है-
(1) प्रतिग्रहण की सूचना
(2) प्रतिग्रहण का बंग
(3) प्रतिग्रहण पूर्ण या शर्तरहित होना
(4) प्रस्थापना का प्रतिग्रहण उसकी सम्पत्ति के पूर्व हो।
• किसी नीलामी में बोली लगाना क्रय करने की विवक्षित प्रस्थापना है।
• धारा-4 में संसूचना कब पूर्ण हो जाती है बताया गया है इसके अनुसार प्रस्थापना की संसूचना तब पूर्ण हो जाती है जब प्रस्थापना उस व्यक्ति के ज्ञान में आ जाती है जिसे वह की गई है।
प्रस्थापना का प्रतिग्रहण तब तक नहीं हो सकता जब तक कि प्रस्थापना प्रतिग्रहण करने वाले व्यक्ति के ज्ञान में न आ गयी हो (लालमन बनाम गौरीदत्त 1913 इला.)
• भारतीय संविदा अधिनियम में ऐसा कोई उपबंध नहीं है, न ही ऐसा कोई निर्णीत वाद है जिसमें यह कहा गया हो कि प्रस्थापना या उसका प्रतिग्रहण विधिक सम्बंधों को स्थापित करने के आशय से किया जाना चाहिए।
- मैक्ौराग बनाम मैक्ौराग, (1888) 21 क्यूबीडी 424। इस बाद में यह करार कि पति-पत्नी दोनों अपने मुकदमें वापस ले लेंगे और पत्नी, पति के नाम पर माल उधार नहीं खरीदेगी, वैध संविदा निर्णीत हुआ।
- मैरिट बनाम मैरिट, 1870 के वाद में पति-पत्नी के बीच अलग होते हुए यह संविदा की पति एक मकान का लाभदायक हित पत्नी को देगा। प्रवर्तनीय ठहरायी गई।
- परन्तु गोल्ड बनाम गोल्ड, 1870 के मामले में पति का पत्नी को यह वचन कि साधन होने पर भुगतान करेगा। निर्णीत हुआ कि विधिक प्रभाव उत्पन्न नहीं करता।
- प्रस्थापनाओं की संसूचना, प्रतिग्रहण तथा प्रतिसंहरण
सम्बंधी प्रावधान भा.सं. अधि. 1872 की धारा-3 में उपबंधित है।
- संविदा अधिनियम की धारा-4 में प्रस्थापना की संसूचना कब पूर्ण होगी बताया गया है।
- धारा-9 यह कहती है कि जहाँ तक प्रस्थापना या प्रतिग्रहण शब्दों से अन्यथा किया जाता है, यह वचन विवाक्षित कहलाता है।
- नीलामी में बोली लगाना, रेस्टोरेन्ट में आर्डर देना, आदि विवक्षित प्रस्थापना गठित करती है।
• रामजी दयाल एण्ड संसद बनाम इन्वेस्ट इम्पोर्ट 1988 एस.सी. का वाद विवक्षित करार के बारे में है।
- धारा-4 के अनुसार संसूचना तब पूर्ण हो जाती है जब प्रस्थापना उस व्यक्ति के ज्ञान में आ जाती है जिसे वह की गई है।
- धारा-4 के अनुसार बिना प्रस्थापना के ज्ञान के उसका प्रतिग्रहण नहीं किया जा सकता है।
- प्रस्थापना अन्य व्यक्ति को अनुमति प्राप्त करने के लिए होना चाहिए।
रोज एण्ड फैक कम्पनी बनाम जे.आर क्रम्पटन 1923 के.बी. के बाद में न्यायालय ने निर्णीत किया पक्षकारों के बीच अनुबंध संविदा नहीं था। क्योंकि पक्षकारों का विधिक सम्बन्ध स्थापित करने का कोई आशय नहीं था।
- इंग्लिश विधि में यह सिद्धांत स्थापित हो चुका है कि संविदा स्थापित करने के लिए आवश्यक है कि दोनों पक्षकारों का विधिक सम्बंध बनाने का आशय रहा हो।
- डारलिम्पल बनाम डारलिम्पल 1811 ईआर में कहा गया कि संविदा फालतू समय की मजाकबाजी नहीं है जिसमें कि पक्षकार विधिक प्रभावों का कोई विचार नहीं रखते हैं।
- बैल्फर बनाम बैल्फर 1919 केबी. में (लार्ड एटकिन द्वारा धारित) में कहा गया कि पति-पत्नी के मध्य के समझौते संविदा नहीं होते चाहे उसमें कोई प्रतिफल रहा हो क्योंकि उसके मध्य विधिक सम्बन्ध बनाने का आशय नहीं होता है।
- संविदात्मक आशय की जाँच वस्तुगत ढंग से की जाती है, व्यक्तिगत ढंग से नहीं।
- बीक्स बनाम टाईबाल्ड 1605 ईआर में धारित किया गया कि प्रस्थापना किसी निश्चित व्यक्ति के प्रति होना चाहिए। प्रस्थापना जन सामान्य से नहीं की जा सकती है।
- कार्लिल बनाम कारबोलिक स्मोक बॉल के. 1893 क्यूबी में बीक्स बनाम टाईबाल्ड 1605 के बाद के विपरीत धारित किया गया कि प्रस्थापना जन सामान्य से की जा सकती है। लोक प्रस्थापना में प्रतिग्रहण की संसूचना देना आवश्यक नहीं है।
- कार्लिल बनाम कारबोलिक स्मोक बॉल के. के वाद का सिद्धांत को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायामूर्ति इयर्स ने हरभजन लाल बनाम हरचरन लाल 1925 इला में अपनाया।
- जब लोक प्रस्ताव चलत प्रकार का हो जैसा कि स्मोक बॉल केस में था तो उसका प्रतिग्रहण कई व्यक्तियों द्वारा हो सकता है जब तक कि वह वापस न लिया जाये। परंतु जो प्रस्थापना किसी वस्तु की सूचना मांगे तो प्रथम सूचना आते ही ऐसी प्रस्थापना अपने आप बंद हो जाती है।
- प्रस्तावना तब होती है जब प्रस्तापक यह अंतिम इच्छा स्पष्ट कर दे कि वह संविदा द्वारा बाध्य होना चाहता है। अगर दूसरा पक्ष इसे स्वीकार कर ले।
- हार्वे बनाम फैसी के बाद में धारित किया गया कि प्रतिवादी ने केवल बम्पर बालपेन के कम से कम मूल्य की सूचना दी परंतु अपने बेचने की इच्छा की सूचना नहीं दी। उन्होंने बम्पर बालपेन का न्यूनतम मूल्य तो बतला दिया, परंतु उन्होंने यह नहीं बताया कि बेचना चाहते है कि नहीं। लेकिन प्रथम तार प्रस्थापना नहीं था बल्कि प्रस्ताव करने का निमंत्रण था। वादी ने जो दूसरा तार दिया था वह प्रस्ताव या जिसे प्रतिवादी ने अस्वीकृत कर दिया और परिणामस्वरूप उनके मध्य संविदा का सृजन नहीं हुआ।
- रेल को समय सारणी भी प्रस्थापना के लिए निमंत्रण होता है (डेन्टन बनाम ग्रेट नार्दन रेलवे, 1865)।
- एक नीलामी करने वाले की घोषणा कि विनिर्दिष्ट समान अमुक दिन नीलाम किया जायेगा, उस नीलामी की प्रस्थापना नहीं है। बल्कि प्रस्थापना के लिए निमंत्रण है और उस स्थान पर आने वाले व्यक्तियों के प्रति घोषणाकर्ता का कोई दायित्व नहीं है। (हैरिस बनाम निकर्सन, 1873 क्यूबी 286)
- नीलामी का विज्ञापन प्रस्ताव नहीं है बल्कि प्रस्ताव का निमंत्रण है।
- प्रत्येक प्रस्ताव का संसूचित किया जाना आवश्यक है प्रस्ताव की संसूचना तब पूर्ण हो जाती है जबकि वह उस व्यक्ति के जिसको वह दी गई है ज्ञान में आ जाती है (लालमन बनाम गौरी दत्त)
- धारा-29 में कहा गया है कि प्रतिग्रहण से पूर्व प्रस्ताव को निश्चित एवं स्पष्ट होने के साथ ही साथ वैध होना चाहिए। अत वे करार जिनका अर्थ अस्पष्ट हो शून्य है।
- डारलिम्पल बनाम डारलिम्पल 1811. 161 ईआर 665 के बाद में लार्ड स्टोवेल ने कहा कि संविदा फालतू समय की मजाकबाजी नहीं है।
- बैलफर बनाम बैलफर 1919 केबी का बाद संविदा सृजित करने के विधिक आशय से सम्बंधित है।
- • मैकगैराग बनाम मैकगैराग, मैरिट बनाम मैरिट, गोल्ड बनाम गोल्ड के बाद विधि सम्बंध सृजित करने के आशय से सम्बंधित है।
- रोज एण्ड फैक के बनाम जो आर क्राम्पटन 1923 केबी के बाद में न्यायालय ने कहा कि पक्षकारों के बीच करार संविदा नहीं है जब तक कि पक्षकारों का विधिक सम्बंध स्थापित करने का कोई आशय न हो।
- धारा-3 के अनुसार प्रस्ताव का प्रतिसंहरण प्रस्ताव करने वाले पक्षकार के किसी कार्य या कार्यलोप से समझा जाता है जिसके द्वारा वह ऐसे प्रस्ताव को प्रतिसंइत करने का आशय रखता है। या जो उसे संसूचित करने का प्रभाव रखता है।
- संविदा अधिनियम की धारा-4 के अनुसार, प्रतिसंहरण प्रस्ताव करने वाले के विरुद्ध प्रतिसंहरण क्या प्रस्ताव का वापस लिया जाना तब पूर्ण होता है जब संसूचना का पारेषण या उसे पहुँचाने के लिए भेज दिया जाता है। जिससे कि प्रतिसंहरण करने वाले की शक्ति से परे हो जाता है।
- उस व्यक्ति के लिए जिसके लिए उसे किया जाता है प्रतिसंहरण को सूचना तब पूर्ण हो जाती है जब उसे ज्ञान में आती हैं।
- प्रतिसंहरण निम्न से हो सकता है-
- (1) प्रतिसंहरण की सूचना प्रस्थापक द्वारा दूसरे पक्ष के संसूचित करके
- (2) प्रतिग्रहण के लिए विहित समय के बीत जाने पर (3) प्रतिग्रहण के किसी पूर्ववर्ती शर्त को पूरा करने में प्रतिगृहीता की असफलता पर
- (4) प्रस्थापक की मृत्यु, उन्मत्चता पर
- (5) प्रस्थापना के अस्वीकार किये जाने या प्रतिप्रस्ताव पर
- (6) स्वीकृतिकर्ता की मृत्यु पर।
- धारा-5 के अनुसार किसी प्रस्ताव का प्रतिसंहरण, स्वीकृति की संसूचना के पूर्व ही किया जा सकता है स्वीकृति को संसूचना के बाद प्रतिसंहरण नहीं किया जासकता है।