सामान्यतया किसी भी कार्य के लिए वही व्यक्ति उत्तरदायी होता है जिसके द्वारा वह कार्य किया जाता है। कोई अन्य व्यक्ति ऐसे कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन यह कोई अबाध अथवा निरपेक्ष नियम नहीं है। कई बार एक व्यक्ति के कार्य के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को भी उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। ऐसी स्थिति में यह माना जाता है कि जैसे वह कार्य उसी के द्वारा किया गया है। यही प्रतिनिधिक दायित्व (Vicarious liability) का सिद्धान्त है। साधारणतया स्वामी एवं सेवक के कार्य, इसी श्रेणी में आते है।
साँमण्ड (salmond) ने प्रतिनिधिक दायित्व की परिभाषा देते हुए कहा है- “”साधारण नियम तो यह है कि अपने कार्यों के लिए कोई व्यक्ति स्वयं ही उत्तरदायी होता है. किन्तु कुछ अपवाद ऐसे है जिनमें एक व्यक्ति दूसरे के कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहरा दिया जाता है, चाहे वह स्वयं कितना ही निदर्दोष हो।
फ्रेडरिक पोलक ने भी एक जगह कहा है कि “मैं अपने सेवक या अभिकर्ता द्वारा कारित दोषपूर्ण कार्य के लिए उत्तरदायी हूँ क्योंकि वह मेरा कार्य करता है और यह देखना मेरा कर्तव्य है कि वह मेरे कार्यों का निष्पादन दूसरे व्यक्ति की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए करें।
“प्रतिनिधिक दायित्व के सिद्धान्त को हम एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते है। ‘कू’ एक वाहन का स्वामी है और ‘ख’ उसका चालक। ‘क’ ‘ख’ को वाहन को किसी अमुक स्थान पर ले जाने का निदेश देता है। रास्ते में चालक ‘ग’ नाम के व्यक्ति को टक्कर मारकर क्षतिग्रस्त कर देता है। यहाँ ‘ख’ के साथ-साथ ‘क’ भी दुर्घटना के लिए उत्तरदायी होगा।
यह सिद्धान्त इस सूत्र पर आधारित है कि- “Qui facit per alium facit per se अर्थात् जब कोई व्यक्ति कोई कार्य किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से करता है तो विधिक दृष्टि में यह माना जाता है कि वह कार्य स्वयं उसके द्वारा किया गया है।
‘बक्सी अमरीक सिंह बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया’ [(1973)75 पी.एल.आर.1] के मामले में भी यही कहा गया है कि- “जो कोई व्यक्ति किसी कार्य को किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से करता है तो उसके बारे में यह समझा जाता है कि वह कार्य मानों उसी के द्वारा किया गया है।
(He who does an act through another is deemed in law to do it himself.)
कई बार इस नियम अथवा सिद्धान्त को “Respodent Superior””प्रतिवादी उत्कृष्ट” के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है जिसका अर्थ है- “प्रमुख को उत्तरदायी होने दो” (Let the principal be liable) । सामान्यतः ऐसा स्वामी सेवक के सम्बन्धों में होता है। यही प्रतिनिधिक दायित्व का सिद्धान्त है।
भारत सरकार का उत्तरदायित्व – अब हम इस बिन्दु पर विचार करते हैं “क्या भारत सरकार अपने कर्मचारी द्वारा निष्पादन के दौरान किये गये अपकृत्यपूर्ण कार्य के लिए उत्तरदायी है”?
इस सम्बन्ध में इंग्लैण्ड में स्थिति कुछ भिन्न थी। वहाँ अपने कर्मचारियों के अपकृत्य के लिए राजा अथवा सम्राट को उत्तरदायी नहीं माना जाता था, क्योंकि इंग्लैण्ड में यह कहावत प्रचलित थी कि “राजा कोई गलती नहीं कर सकता” (king can do to wrong) । लेकिन बीसवीं सदी में स्थिति में कुछ परिवर्तन हुआ और “क्राउन प्रोसिडिंग्स एक्ट, 1947” (Crown Proceeding Act, 1947) पारित हो जाने से अब राज (सम्राट) को भी अपने कर्मचारियों के अपकृत्य के लिए उत्तरदायी ठहराया जाने लगा यद्यपि इसके कुछ अपवाद भी रहे है।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है; भारत में अब सरकार को अपने कर्मचारियों के अपकृत्य के लिए उत्तरदायी ठहराया जाने लगा है। संविधान के अनुच्छेद 300 में यह प्रावधान किया गया है कि केन्द्र एवं राज्य सरकार अपकृत्य के मामलों में वाद ला सकती है तथा उनके विरुद्ध भी वाद लाया जा सकता है। इससे पूर्व भारत सरकार अधिनियम 1858 से 1935 तक में भी इस सम्बन्ध में काफी व्यवस्थायें की गई थी जिनमें सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को राज्य कर्मचारियों के अपकृत्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था।
इस विषय पर ‘पेनिनसुलर एण्ड ओरियन्टल स्टीम नेविगेशन कम्पनी बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इण्डिया‘ [(1868)5 बी.एच.सी.आर.1] का एक अच्छा प्रकरण है। इसमें हुगली के बन्दरगाह पर सरकारी कर्मचारियों के असवाधानीपूर्ण कार्य से वादी को चोटे कारित हुई थी। न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि इस कृत्य के लिए सरकार उत्तरदायी है क्योंकि सरकार के इस कृत्य का स्वरूप व्यापारिक है जिसे कोई अन्य नागरिक भी कर सकता है।
ऐसा ही एक और मामला ‘सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बनाम शिवरामजी’ (आई.एल.आर. 1949 नागपुर 875) का है जिसमें नागपुर उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि- वन विभाग के अधिकारी द्वारा वादी को अपनी क्रय की हुई लकड़ी को जंगल से न ले जाने देने के लिए सरकार उत्तरदायी है।।
इसके बाद तो ऐसे अनेक निर्णय आ चुके है जिनसे यह सुस्थापित हो गया है कि अपने कर्मचारियों द्वारा किये गये अपकृत्यों के लिए राज्य उसी रूप में और उसी सीमा तक उत्तरदायी है जिस सीमा तक कोई अन्य व्यक्ति उत्तरदायी होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा सकता है कि यदि परिस्थितियों के अनुसार एवं लोक हित के लिए यह न्यायसम्मत माना जाता है कि किसी स्वामी को उसके सेवकों द्वारा किये गये अपकृत्यों के लिए उत्तरदायी माना जाना चाहिये तो उन्हीं परिस्थितियों में और उन्हीं आधारों पर राज्य को भी अपने कर्मचारियों के अपकृत्य के लिए उत्तरदायी माना जाना चाहिये।
इससे यह बात स्पष्ट होती है कि राज्य एवं उसके कर्मचारियों के बीच स्वामी एवं सेवक के सम्बन्ध होते हैं; इसीलिये अपने सेवकों के अपकृत्य के लिए स्वामी की भाँति राज्य उत्तरदायी हो जाता है। इसके लिए निम्नांकित बातें आवश्यक मानी गई है-
(i) अपकृत्य करने वाला व्यक्ति राज्य का सेवक अर्थात कर्मचारी होना चाहिये;
(ii) अपकृत्य नियोजन के दौरान किया गया होना चाहिये; तथा
(iii) अपकृत्य स्वामी (राज्य) के प्राधिकार के अन्तर्गत किया गया होना चाहिये।
‘रूप राम बनाम स्टेट ऑफ पंजाब’ (ए.आई.आर. 1981 पंजाब 336) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि सड़क निर्माण के लिए सामान लाने का कार्य राज्य कार्य की परिभाषा में नहीं आता है अतः ऐसे वाहन से कारित चोंटो के लिए राज्य उत्तरदायी है। इसमें यह माना गया है कि इस कार्य का स्वरूप एक सामान्य नागरिक के कार्य जैसा ही है।
‘मुस. विद्यावती बनाम लोकूमल’ (ए.आई.आर. 1957 राजस्थान 305) का एक और महत्त्वपूर्ण प्रकरण है जिसमें यह कहा गया कि अन्य साधारण नागरिक की भांति राज्य भी अपने कर्मचारियों के अपकृत्यों के लिए उत्तरदायी है। राज्य अब केवल पुलिस राज्य नहीं है अपितु एक लोक कल्याणकारी राज्य है। दिन प्रतिदिन राज्य अपनी कार्य विधि उन क्षेत्रों में बढ़ा रही है जिन्हें अन्य सामान्य नागरिक कर सकता है। अतः ऐसा कोई आधार नहीं है कि जिन अपकृत्यों के लिए एक सामान्य नागरिक उत्तरदायी माना जाता है; उनके लिए राज्य को उत्तरदायी न माना जाये। अपील में ‘स्टेट ऑफ राजस्थान बनाम विद्यावती’ (ए.आई.आर. 1962 एस.सी.933) के मामले में उच्चत्तम न्यायालय द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय के मत की पुष्टि की गई।
लेकिन ‘कस्तूरी लाल रलियाराम बनाम स्टेट ऑफ उत्तरप्रदेश’ (ए.आई.आर 1965 एस.सी. 1039) के मामले में उच्चत्तम न्यायालय द्वारा स्थिति का भिन्न रीति से विवेचन करते हुए कर्मचारी के अपकृत्य के लिए राज्य को उत्तरदायी नही माना गया है। इसमे उच्चत्तम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि यदि कर्मचारी द्वारा किया गय अपकृत्य राज्य के प्रभुता सम्बन्धी क्षेत्र में आता है, तो अपकृत्य द्वारा कारित हानि के लिप् राज्य को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
लेकिन धीरे-धीरे स्थिति एवं विचारधारा में परिवर्तन आया। ‘सत्यवती देव बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया’ (ए.आई.आर. 1967 दिल्ली98) के मामले में वायुसेना की एक गाड़ी नई दिल्ली में सेना के खिलाड़ियों को मैदान में ले जा रही थी तभी चालक हो असावधानी से एक दुर्घटना घटी जिसके लिए न्यायालय द्वारा राज्य को उत्तरदायी ठहराई गया। न्यायालय ने इसे राज्य का प्रभुतासम्पन्न कार्य नहीं माना।
इसी प्रकार ‘यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम सुगा बाई’ (ए. आई.आर. 1969 मुम्बई 13) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि फौजी काम में लगे वाहन में साईकिल सवार को कारित क्षति के लिए राज्य उत्तरदायी है।
‘राजस्थान स्टेट रोड़ ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन बनाम के.एन. कोठारी,’ (ए.आई.आर. 1997 एस.सी. 3444) के मामले में भी चालक के कृत्य के लिए निगम को उत्तरदायी ठहराया गया है।
स्टेट ऑफ मिजोरम बनाम ललतिंगलिमि (ए.आई.आर. 2017 एन.ओ.सी. 1135 गुवाहाटी) के मामले में एक गार्डमेन द्वारा अपने कर्तव्य के दौरान सर्विस डिफल के प्रयोग से दूसरे गार्डमेन की मृत्यु कारित कर दी गई। दोनों गृह विभाग में सेवारत थे। न्यायालय ने विभाग का भी प्रतिनिधिक दायित्व माना।
‘जी. गौरीशंकर बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा’ (ए.आई.आर. 2007 उड़ीसा 74) के मामले में एक विद्यालय की दीवार गिरने से एक छात्र की मृत्यु हो गई। यह विद्यालय सरकारी था तथा दीवार सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा बनाई गई थी। न्यायालय ने इस दुर्घटना के लिए राज्य का प्रतिनिधिक दायित्व माना
इसी प्रकार ‘धरणीधर पण्डा बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा’ (ए.आई.आर. 2005 उडीसा 36) के मामले में विद्यालय की दीवार व खम्भा ढह जाने से दो छात्रों की मृत्यु हो गई थी। विद्यालय का संचालन गाँव की एक शिक्षा समिति के जिम्मे था। इसमें विद्यालय के प्राधिकारियों की भी लापरवाही रही। न्यायालय ने इस दुर्घटना के लिए राज्य का प्रतिनिधिक दायित्व भी माना। शिक्षा समिति का दायित्व तो था ही।
चिकित्सीय मामलों में राज्य का दायित्व – चिकित्सकों की लापरवाही से कारित क्षति के लिए भी अब अनेक मामलों में राज्य का प्रतिनिधिक उत्तरदायित्व माना जाने लगा है।
‘आर.पी. शर्मा बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान’ (ए.आई.आर. 2003 राजस्थान 104) के मामले में चिकित्सीय लापरवाही से गलत ग्रुप का रक्त दे देने से कारित मृत्यु के लिए राज्य का प्रतिनिधिक उत्तरदायित्व (Vicarious liability) माना गया है।
‘इसी प्रकार ‘डा.लीला बाई बनाम सेबसटाइन’ (ए.आई.आर.2002 केरल 262) के मामले में राजकीय चिकित्सालय में पर्याप्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होने कारित क्षति के लिए राज्य को उत्तरदायी माना गया है।
ऐसे और भी अनेक मामले हैं जिनमें राज्य को अन्य सामान्य नागरिकों की भाँति अपकृत्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया गया है। राज्य को उत्तरदायी ठहराये जाने के मुख्यतया निम्नांकित आधार है-
(1) राज्य का स्वरूप अब केवल पुलिस राज्य न होकर लोक कल्याणकारी राज्य है जो कि सभी प्रकार के लोकोपयोगी कार्यों (जैसे- उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि) के संलग्न है। अतः राज्य भी अन्य स्वामियों की भाँति उत्तरदायी है।
(2) “राजा कोई गलती नहीं कर सकता” (king can do no wrong) का सूत्र सामन्तवादी परम्परा का द्योतक है जिसे भारत में मान्यता नहीं दी जा सकती
(3) इंग्लैण्ड में भी संविधान के लागू होने के पश्चात् यह सूत्र अव महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया है।
प्रतिनिधिक दायित्व के कुछ महत्त्वपूर्ण मामले :-प्रतिनिधिक दायित्व (Vicarious liability) के कुछ महत्त्वपूर्ण मामले निम्नलिखित-
‘गुजरात इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम प्रवीण नानजी नाथबाबा’ (ए.आई.आर. 2005 गुजरात 178) के मामले में बिजली के खुले तारों से छू जाने के कारण एक व्यक्ति को स्थायी क्षतियाँ कारित हो गईं। न्यायालय ने इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को इसके लिए उत्तरदायी ठहराया।
इसी प्रकार ‘आन्ध्र प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम वाई. वेणुकुमार’ (ए.आई.आर. 2006 एन.ओ.सी. 949 आंध्रप्रदेश) के मामले में एक खेत में खुले पड़े बिजली के तारों को छू जाने से एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। न्यायालय ने इसके लिए स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को उत्तरदायी माना।
‘सेक्रेटरी, हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम रिचर्ड’ (ए.आई.आर. 2006 हिमाचल प्रदेश 37) के मामले में इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के वाहन चालक ने वाहन को अनधिकृत रूप से चलाकर दुर्घटना कारित कर दी जिसमें एक कर्मचारी की मृत्यु हो गई। न्यायालय ने बोर्ड का प्रतिनिधिक दायित्व माना।।
• स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश बनाम हरभजन सिंह (ए.आई.आर. 2006 एन.ओ.सी. 310 मध्यप्रदेश) के मामले में राज्य के कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने में असफल रहने से वादी की सम्पति को क्षति कारित हुई। न्यायालय ने राज्य का प्रतिनिधिक दायित्व मानते हुए वादी को प्रतिकर दिलाया।
स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश बनाम श्रीमती शान्तिबाई (ए.आई. आर. 2005 मध्यप्रदेश 66) के मामले में पुलिस द्वारा हवा में गोली चलाने से वादी को क्षति कारित हुई। पुलिस द्वारा हवा में गोली चलाने में असावधानी बरती गई। न्यायालय ने इसके लिए राज्य को उत्तरदायी ठहराया।