भारतीय संविदा अधि. 1872 एक मौलिक विधि है यह भूतलक्षी प्रभाव नहीं रखती।

• भारतीय संविदा अधिनियम में सामान्य सिद्धांतों को 6 अध्यायों में रखा गया है जिन्हें कुल 75 धाराओं में उपबंधित किया गया है।

• भारतीय संविदा अधिनियम का उद्देश्य संविदाओं से सम्बंधित विधि के कतिपय भागों को परिभाषित और संशोधित करना है।

• भारतीय संविदा अधिनियम 1872 पूर्ण विधि नहीं है।

• केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के साथ संविदा में भारतीय संविधान के अनुच्छेद-299 को औपचारिकताओं का पूर्ण होना आवश्यक है।

• सरकार के साथ की गई कोई भी संविदा यदि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 299 के अनुवर्तन में नहीं है तो ऐसी संविदा शून्य है।

• भारतीय संविदा अधिनियम में संविदा विधि के सामान्य सिद्धांत और अन्य विनिर्दिष्ट संविदाएं दीं है।

• भारतीय संविदा अधिनियम 1872, सन् 1872 का अधिनियम क्रमांक 9 है।

• भा.सं. अधि. 1872, 25 अप्रैल 1872 को बना या अधिनियमित किया गया

• भा.सं. अधि. 1872, 1 सितम्बर 1872 को लागू हुआ।

संविदा अधिनियम:- (1) सामान्य सिद्धांत (General Contract)

(2) विशिष्ट सिद्धांत (Specific Contract) :-

(1)क्षतिपूर्ति प्रतिपूर्ति की संविदा (Contract of Indemnity and Guarantee)

(2) उपनिधान (Bailment)

(3) ऐजेंसी (Agency)

धारा-1 में अधिनियम का संक्षिप्त नाम विस्तार और प्रारम्भ दिया गया है।

• इस अधिनियम का नाम भारतीय संविदा अधिनियम 1872 है।

• भारतीय संविदा अधिनियम का विस्तार सम्पूर्ण भारत पर होगा। (धारा- 1)

• भारतीय संविदा अधिनियम की धारा-1 के अनुसार यह अधिनियम 1 सितम्बर 1872 को लागू हुआ।

• इस अधिनियम में दी कोई बात एतद्वारा अभिव्यक्त रूप से निरसित न किये गये किसी अन्य स्टेटयूट, अधिनियम, विनियम के उपबंधों पर, व्यापार की किसी प्रथा या रूढि पर अथवा किसी संविदा की किसी प्रसंगति पर, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो, प्रभाव डालेगी।

• भारतीय संविदा अधिनियम की धारा-2 निर्वचन खण्ड है।

• भारतीय संविदा अधिनियम की धारा-2 में 2(क) से 2 (ञ) तक कुल 10 परिभाषाएँ दी गई है।

धारा-2(क) में प्रस्थापना परिभाषित है। (Pro-posal 2-a)

धारा-2(ख) में प्रतिग्रहण परिभाषित है। (Ac ceptance 2-b)

धारा-2 (ग) वचनदाता और वचनगृहीता। (Promisor & Promise 4-c)

धारा-2 (घ) प्रतिफल (Cosideration 4-d)

धारा-2 (ङ) करार (Agreement 2-e)

धारा-2 (च) व्यक्तिकारी (Reciprocal Prom- ises 2-f)

धारा-2 (छ) शून्य करार (Void Agreement 4-g)

धारा-2 (ज) संविदा (Contract 2-h)

धारा-2 (झ) शून्यकरणीय संविदा (Voidable Contract 2-1)

धारा-2 (ञ) शून्य संविदा (Void Contractसेकंड-4-जे)

धारा-2-क प्रस्थापना (Proposal)- जबकि एक व्यक्ति किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने की अपनी रजामंदी किसी अन्य को इस दृष्टि से संज्ञाप्ति करता है कि ऐसे कार्य या प्रविरति के प्रति उस अन्य की अनुमति अभिप्राप्त करे तब वह प्रस्थापना करता है कहा जाता है।

किसी करार या संविदा का उद्भव या प्रारम्भ प्रस्थापना से होता है।

प्रस्थापना के लिए एक दूसरा पक्ष आवश्यक है यह स्वयं से नहीं की जा सकती) जिससे वह अपने (कार्य या कार्य से प्रविरत रहने की रजामंदी संज्ञाप्ति करे।

प्रस्थापना के आवश्यक तत्व पाँच है-

(1) व्यक्ति हो

(2) प्रस्थापना की संसूचना हो

(3) प्रस्थापना के उद्देश्य

(4) विधिक सम्बंध सृजन का उद्देश्य

(5)प्रत्यास्थापना की निश्चितता हो।

• प्रस्थापना अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है।

अभिव्यक्त प्रस्थापना लिखित या मौखिक की जा सकती है जबकि विवक्षित प्रस्थापना अचरण द्वारा गठित होती है।

• प्रस्थापना विशिष्ट या सामान्य हो सकती है जब प्रस्थापना किसी व्यक्ति विशेष से या व्यक्ति समूह (संघ) से की जाए तो वह विशिष्ट और जबकि प्रस्थापना जन साधारण से की जाती है तो वह सामान्य प्रस्थापना कहलाती है। विशिष्ट प्रस्थापना में सूचना देना अनिवार्य होता है जबकि सामान्य में नहीं।

धारा-2(ख) प्रतिग्रहण (Acceptance)– जबकि वह व्यक्ति जिससे प्रस्थापना की जाती है, उस प्रस्थापना के प्रति अपनी अनुमति संज्ञाप्ति करता है तब वह प्रस्थापना प्रतिगृहीत हुई कही जाती है। प्रतिगृहीत प्रस्थापना बचन हो जाती है।

• संविदा सृजित होने के लिए प्रस्थापना का प्रतिग्रहण आवश्यक है।

एक विधिमान्य प्रतिग्रहण में :-

(1) प्रतिग्रहण की सूचना

(2) प्रतिग्रहण का ढंग

(3) प्रतिग्रहण पूर्ण और शर्त रहित हो

(4) प्रस्थापना का प्रतिग्रहण उसकी (प्रस्थापना) की समाप्ति के पहले हो जाना चाहिए।

• मानसिक सहमति या स्वीकृति संविदा सृजित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

• प्रतिग्रहण का यदि कोई विशिष्ट ढंग दिया हो तो वह उसी ढंग से की जानी चाहिए यदि न दिया हो तो सामान्य या युक्तियुक्त ढंग से किया हो। (धारा-7)

• प्रतिग्रहण की संसूचना प्रस्थापक (प्रस्तावक) को दी जानी आवश्यक है।

• प्रतिग्रहण तभी पूर्ण होता है जबकि प्रतिग्रहण की संसूचना प्रस्थापक को हो जाए।

• जब प्रस्थापना के प्रतिग्रहण का कोई ढंग न दिया गया हो तो प्रतिग्रहण किसी प्रायिक या युक्तियुक्त ढंग से होगा। (धारा-7(2))

भगवान दास बनाम गिरधारी लाल एंड कं. के वाद में धारित किया गया कि स्वीकृति के लिए केवल मानसिक संकल्प पर्याप्त नहीं है, बोलना, लिखना या कोई अन्य बाहरी रूप प्रकटन के लिए होना आवश्यक है।

वचन में दो तत्व होते हैं- (1) प्रस्थापना (2) प्रतिग्रहण

Proposal + Acceptance = Promise

Promise + Consideration = Agreement

Agreement + enforceability =Contract

• वचन एक स्वीकृति प्रस्थापना है।

• प्रस्थापना प्रतिगृहीत हो जाने पर वचन बन जाती है।

• मौखिक स्वीकृति वैध स्वीकृति होती है।

• प्रस्थापना (प्रस्ताव) करने वाला व्यक्ति वचनदाता कहलाता है एवं प्रस्तावना, प्रतिगृहीत करने वाला व्यक्ति वचनदाग्रहीता कहलाता है।

धारा-2 (घ) प्रतिफल (Consideration)– जबकि वचनदाता की वांछा पर, वचनगृहीता या कोई अन्य व्यक्ति कुछ कर चुका है या करने को प्रविरत रहता है, या करने का या करने से प्रबिरत रहने का वचन देता है, तब ऐसा कार्य या प्रविरति या वचन उस वचन के लिए प्रतिफल कहलाता है।

• प्रतिफल में कार्य या प्रतिविरति प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर होती है। यदि कार्य या प्रतिविरति अन्य की इच्छा पर हो तो प्रतिफल नहीं कहलायेगी।

• प्रतिफल प्रतिज्ञागृहीता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दिया जा सकता है।

• किसी ऐसे कार्य को करना जिसे करने के लिए कोई व्यक्ति पहले से ही विधि द्वारा बाध्य है किसी बचन के लिए प्रतिफल नहीं माना जायेगा।

• प्रत्येक साधारण संविदा के लिए प्रतिफल आवश्यक है, बिना प्रतिफल प्रतिज्ञा अप्रवर्तनीय होती है।

• भारतीय विधि के अनुसार बिना प्रतिफल सभी करार शून्य होते हैं।

परंतु धारा-25 में तीन अपवाद दिये हैं

(1) निकट सम्बंधी पक्षकारों में जब प्राकृतिक प्रेम तथा स्नेह होता है।

(2) स्वेच्छा से किए गए कार्य के प्रतिकर देने की प्रतिज्ञा के संबंध में, और

(3) परिसीमा विधि के अंतर्गत अवधि बीत जाने वाले ऋण का भुगतान किए जाने की प्रतिज्ञा।

धारा-25 के तीन अपवादों के साथ ही साथ धारा- 185 में वर्णित एजेन्सी उत्पन्न करने के लिए किसी प्रकार के प्रतिफल की आवश्यकता नहीं होती है।

• अंग्रेजी विधि में भूतकालीन प्रतिफल मान्य नहीं है किंतु भारतीय विधि में भूतकालीन प्रतिफल को भी विधि की दृष्टि में प्रतिफल माना जाता है।

धारा-2 (ङ) करार (Agreement) :- हर एक वचन और वचनों का हर एक संवर्ग, जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल हो करार है।

धारा-2 (च) व्यतिकारी वचन (Reciprocal promises) :- वे वचन जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल या प्रतिफल का भाग हों व्यतिकारी वचन कहलाते है।

धारा-2(छ) शून्य अनुबंध (Void Agreement) :- वे करार जो विधि द्वारा प्रवर्तनीय न हो शून्य करार कहलाते हैं।

धारा-2(ज) संविदा (Contract) :- वे करार जो विधि द्वारा प्रवर्तनीय होते हैं संविदा कहलाते हैं।

धारा-2 (झ) शून्यकरणीय संविदा (Voidable Contract) :- वह करार जो उसके पक्षकारों में से एक या अधिक के विकल्प पर तो विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो किंतु अन्य पक्षकारों के विकल्प पर नहीं शून्यकरणीय संविदा है।

धारा-2(ञ) शून्य संविदा (Void Contract) :- जो संविदा विधितः प्रवर्तनीय नहीं रह जाती हे वह तब शून्य हो जाती है जब वह प्रवर्तनीय नहीं रह जाती है।

• भारतीय संविदा अधिनियम 1872 का अधिनियम संख्या-9 है।

• भारतीय संविदा अधिनियम 1872, 25 अप्रैल 1872को अधिनियमित किया गया।

• भारतीय संविदा अधिनियम 1872, 1 सितम्बर 1872से लागू हुआ।

• भारतीय संविदा अधिनियम 1872 को दो भागों में बांटा गया-(1) संविदा के सामान्य सिद्धांत (2) विशिष्ट संविदाएँ

• संविदा विधि मूल विधि है और यह भूतलक्षी प्रभाव नहीं रखती।

• प्रस्ताव की परिभाषा संविदा विधि की धारा-2 (क) में दी गई है।

• प्रस्ताव, विशिष्ट व्यक्ति या जनसाधारण किसी को भी किया जा सकता है।

धारा-2(ख) स्वीकृति को परिभाषित करती है।

• धारा-2(ख) जब प्रस्थापना, प्रतिगृहीत हो जाती है तो वचन बन जाती है।

धारा-2(घ) में प्रतिफल को परिभाषित किया गया है।

भगवान दास गिरधारीलाल में धारित किया गया कि स्वीकृति में मात्र मानसिक संकल्प पर्याप्त नहीं इसके लिए बाहरी प्रकटन आवश्यक है।

• भा.सं.अधि. 1872 का निर्वचन खण्ड धारा-2 में दिया है।

• भा.सं. अधि. 1872 की धाराएँ 2(ख), 4, 5, एवं 7 स्वीकृति से सम्बंधित है।

• धारा-2(ङ) के अनुसार, हर एक वचन और वचनों का हर एक संवर्ग जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल हो करार है।

• वचन में दो तत्व है- (1) प्रस्थापना (2) प्रतिग्रहण

• अंतिम सहमति से पूर्व कुछ निबंधन प्रस्तावित कर वार्ता हेतु सहमत होना प्रस्थापना के लिए निमंत्रण देना है।

• प्रस्थापना व्यक्ति मानव प्राणी द्वारा की जाती है।और विधिक व्यक्ति द्वारा।

• जनता को पुरस्कार की घोषणा प्रस्थापना है।

• विक्रय हेतु समाचार पत्र में विज्ञापन प्रस्थापना हेतु आमंत्रण है। (लालमन बनाम गौरीदत्त 1925 इला.)

• पूछताछ में दी गई सूचना प्रस्थापना के लिए आमंत्रण है हार्वे बनाम फैंसी का वाद।

संविदा से उन्मुक्ति के 4 ढंग है :-

1. संविदा का पालन करके

2. संविदा को भंग करके

3. संविदा पालन की असंभाविता

4. करार द्वारा।

• “मानक संविदा” वह संविदा है जिसमें संविदा की शर्तें पूर्व में स्पष्टतः लिखी होती है। जिनका पालन पक्षकार को करना अनिवार्य है।

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