भारत में प्रथम बार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सन् 1986 में पारित किया गया जो लगभग 34 वर्षों तक प्रभाव में रहा। देश, काल एवं परिस्थितियों में बदलाव आने से जब यह अधिनियम अनुपयोगी लगने लगा तो सन् 2019 में नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया गया।
उपभोक्ता कौन है :- उपभोक्ता :- वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है।
इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिये किसी वस्तु को हासिल करता है या कॉमर्शियल उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है।
इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिये किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल है।
उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिये कानून द्वारा दिये गए अधिकार :-
संरक्षण का अधिकार – उन उत्पादो या सर्विस से उपभोक्ता को संरक्षण जो उनके लिए जान का खतरा बन सकती है।
सूचना का अधिकार – उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे गये सामान या प्रयोग में लाई गई सर्विस की क्वालिटी, मात्रा, शुद्धता, प्रभाव, मूल्य जैसी चीजें उससे न छुपाई गई हो। मतलब उपभोक्ता का अधिकार है कि उसे गुड्स और सर्विसेज से जुडी इन सभी चीजो की जानकारी मिले और जानकारियाँ गलत न हो।
सुनिश्वित्ता का अधिकार – इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि जहाँ कही भी संभव हो उपभोक्ता को चुनने का विकल्प मिले। किसी विशिष्ट कंपनी की वस्तु खरीदने की मजबूरी न हो।
सुनवाई का अधिकार – अगर उपभोक्ता कोई शिकायत करता है या फीडबैक देता है तो उसे सुना जाए।
निवारण या निपटान का अधिकार – शिकायत या फीडबैक का कोई उचित हल या काउन्टर फीडबैक उपभोक्ता को मिलना चाहिए।
जागरुकता का अधिकार – जागरुकता एक कर्तव्य नही, उपभोक्ता का अधिकार है, मतलब एक तरह से ये संबंधित सरकार या संस्था का दायित्व है कि विज्ञापनों से लेकर अन्य सभी माध्यमों से उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों की जानकारी दी जाए।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की प्रमुख विशेषता :-
1. केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है।
2. उपभोक्ता को विभिन्न प्रकार के अधिकार प्रदान किया गया है।
3. भ्रामक विज्ञापनों पर प्रतिबंध और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
4. उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
5. सुनवाई के अधिकार क्षेत्र में परिवर्तन किया गया है।
केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण :-
केन्द्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और उन्हे लागू करने के लिए केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण का गठन करेगी।
यह प्राधिकरण उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार तथा भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करेगा।
महानिदेशक की अध्यक्षता में प्राधिकरण की एक अन्वेषण शाखा होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जांच या इन्वेस्टिगेशन कर सकती है।
भ्रामक विज्ञापनों पर प्रतिबंध और जुर्माना :-
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण भ्रामक या झूठे विज्ञापन (जैसे लक्ष्मी धन वर्षा यंत्र) बनाने वालों और उनका प्रचार करने वालों को जुर्माना और 2 वर्ष तक की सजा दे सकती है।
यदि कोई व्यक्ति या कंपनी इस अपराध को बार-बार दोहराता है तो उसे 50 लाख रुपये तक का जुर्माना और 5 साल तक की सजा भी हो सकती है।
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग :-
जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का गठन किया जाएगा।
एक उपभोक्ता–
अनुचित और प्रतिबंधित तरीके के व्यापार;
दोषपूर्ण वस्तु या सेवाओ के संबंध में,
अधिक कीमत वसूलने या गलत तरीके से कीमत वसूलने के संबंध में,
ऐसी वस्तु या सेवाओं को बिक्री के लिए पेश करने जो जीवन और सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकती है के संबंध में आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है।
उपभोक्ता फोरम के द्वारा पारित कुछ आदेश–
गोवा राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने एक स्कूटर कंपनी को एक दोषपूर्ण वाहन के लिए ₹60,000 की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।
दिल्ली उपभोक्ता फोरम ने एक फोटोग्राफर जो कि एक विवाह कार्यक्रम में फोटोग्राफी एवं विडियो रिकार्डिंग की थी, परन्तु उसके द्वारा समय पर विवाह कार्यक्रम की फोटोग्राफी एवं विडियो रिकार्डिंग न दिये जाने पर फोटोग्राफर को ₹25,000 की राशि का मुआवजा अदा करने का आदेश दिया।
मध्यप्रदेश में 19 वर्ष की महक अपने बालो को हॉलीवुड की एक प्रसिद्ध सेलिब्रिटी की तरह कटाने के लिए शहर के एक प्रसिद्ध सैलून गई, जहां पर उसके बालो को चेतावनी के बाद भी जरूरत से ज्यादा छोटा काट दिया गया, जिसके विरुद्ध महक के द्वारा उपभोक्ता फोरम के समक्ष शिकायत दर्ज किए जाने पर उपभोक्ता फोरम के द्वारा महक को सैलून वाले की लापरवाही के लिए पर्याप्त मुआवजा राशि प्रदान करवाई गई।
आनलाईन शापिंग :-
यदि आनलाईन शापिंग में आपको खरीदे गये सामान की डिलिवरी नहीं की जाती है या आपको खराब सामान भेजा जाता है, जिसकी शिकायत करने के बाद भी कंपनी वाले आपकी शिकायत को अनदेखा कर आपको सही सामान उपलब्ध नहीं कराते, तो आपके पास विकल्प है कि आप उस कंपनी को अपने अधिवक्ता के माध्यम से एक कानूनी नोटिस भेजवा सकते है एवं उक्त नोटिस का जवाब प्राप्त नहीं होता है तो उस कंपनी के विरुद्ध उपभोक्ता फोरम के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकते है।
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस :–
विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है, इस अवसर पर उपभोक्ताओं को उनके अधिकारो के प्रति जागरुक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
इस दिवस को मनाये जाने का उद्देश्य ग्राहकों को किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी से बचाना और उन्हे जागरुक बनाना है।
इस अधिनियम की कतिपय प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
1. इस अधिनियम की विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है। पूर्व अधिनियम जम्मू- कश्मीर राज्य पर लागू नहीं था।
2. इस अधिनियम में कुल 8 अध्याय एवं 107 धारायें हैं।
3. इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य–
(1) उपभोक्ता के हितों को संरक्षण प्रदान करना तथा
(ii) उपभोक्ता-विवादों का त्वरित निपटारा करना है।
4. इस अधिनियम की विभिन्न धारायें विभिन्न तारीखों से लागू की गई हैं।
5. धारा 2 में कुल 47 शब्दों की परिभाषाएँ दी गई हैं।
6. इस अधिनियम में केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority) की नई व्यवस्था की गई है।
7. नये अधिनियम में जिला उपभोक्ता मंच के स्थान पर जिला उपभोक्ता आयोग बनाया गया है जिसे ‘जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग‘ नाम दिया गया है।
8. जिला उपभोक्ता आयोग को ‘एक करोड़ रुपये’ तक के मूल्यांकन वाले मामलों की सुनवाई की अधिकारिता प्रदान की गई है। पहले यह मात्र बीस लाख रुपये तक की थी।
9. जिला उपभोक्ता आयोग के सदस्यों के लिए निम्नांकित अहर्ताएं निर्धारित की गई हैं-
(i) 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर लिया जाना,
(ii) किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय का स्नातक (Graduate) होना तथा
(iii) शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होना।
10. जिला उपभोक्ता आयोग को अन्तरिम आदेश (Interim Order) पारित करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
11. जिला उपभोक्ता आयोग को विचारण के दौरान सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
12. जिला उपभोक्ता आयोग को कतिपय मामलों में पुनर्विलोकन (Review) की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
13. नये अधिनियम में ‘मध्यस्थता‘ (Mediation) द्वारा मामलों के निपटारे की व्यवस्था की गई है।
14. राज्य उपभोक्ता आयोग में कम से कम एक महिला सदस्य या अध्यक्ष का होना अनिवार्य कर दिया गया है।
15. राज्य उपभोक्ता आयोग के लिए निम्नांकित अर्हतायें निर्धारित की गई हैं–
(i) 40 वर्ष की आयु पूर्ण कर लिया जाना,
(ii) किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय का न्यूनतम स्नातक होना तथा
(iii) जिला न्यायालय में पीठासीन अधिकारी का न्यूनतम 10 वर्षों का अनुभव होना।
16. राज्य उपभोक्ता आयोग की अधिकारिता एक करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये के मूल्यांकन वाले मामलों तक कर दी गई है। पहले यह बीस लाख से एक करोड़ रुपये तक की थी।
17. राज्य उपभोक्ता आयोग एवं जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति हेतु एक चयन समिति के गठन की व्यवस्था की गई है जिसमें निम्नांकित व्यक्ति होंगे-
(i) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नाम: अध्यक्ष निर्दिष्ट. कोई न्यायाधीश
(ii) राज्य सरकार के उपभोक्ता मामलों का प्रभारी सचिव : सदस्य
(iii) राज्य सरकार के मुख्य सचिव द्वारा नामनिर्दिष्ट व्यक्ति : सदस्य
18. राज्य उपभोक्ता आयोग एवं जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की पदावधि (Term of office) चार वर्ष या पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक की, इनमें से जो भी पूर्व हो, होगी।
19. राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की अधिकारिता दस करोड़ रुपये से अधिक के मूल्यांकन वाले मामलों तक की कर दी गई है।
20. राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की पदावधि निम्नानुसार कर दी गई है-
(1) अध्यक्ष की दशा में पाँच वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक इनमें से जो भी पहले हो, तथा
(ii) सदस्य की दशा में पाँच वर्ष या 68 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक इनमें से जो भी पहले हो।
21. राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को निम्नांकित शक्तियाँ प्रदान की गई हैं–
(i) पुनर्विलोकन की शक्तियाँ,
(ii) एक पक्षीय आदेश को अपास्त करने की शक्तियाँ,
(iii) मामलों के अन्तरण की शक्तियाँ एवं
(iv) अपीलीय शक्तियाँ।
22. जिला उपभोक्ता आयोग, राज्य उपभोक्ता आयोग एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में परिवाद संस्थित करने की अवधि वाद-हेतुक उत्पन्न होने की तारीख से दो वर्ष निर्धारित की गई है।
23. अधिनियम में मध्यस्थता का एक नया अध्याय जोड़ा गया है।इस प्रकार इस अधिनियम की अनेक महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं।