विधि का यह सुस्थापित सिद्धान्त है कि किसी भी व्यक्ति को उसके लापरवाहीपूर्वक कृत्यों से उद्‌भूत होने वाली प्रत्येक हानि के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है; क्योंकि किसी भी कृत्य के परिणामों की सीमा नहीं होती। वह केवल उन्हीं परिणामों के लिए उत्तरदायी हो सकता है जो उसके कृत्य से सीधे सम्बन्धित हो। अभिप्राय यह हुआ कि अपकृत्य विधि के अन्तर्गत कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नुकसानी का बाद केवल तभी ला सकता है जब ऐसे कृत्य से कारित क्षति उस कृत्य का सीधा (प्रत्यक्ष) परिणाम हो। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अपकृत्य से कारित क्षति का उस अपकृत्य से सीधा सम्बन्ध हो। यदि कृत्य एवं क्षति में सीधा सम्बन्ध नहीं है तो ऐसे कृत्य के लिए नुकसानी का वाद नहीं लाया जा सकता है। इसे ही ‘क्षति की दूरस्थता का सिद्धान्त’ (Doctrine of remoteness of damages) कहते हैं।

यह सिद्धान्त इस सूत्र पर आधारित है- “In jurenon remota causa sed proxima spectatur अर्थात विधि में किसी घटना के तात्कालिक कारणों पर विचार किया जाता है, दूरवर्ती कारणों पर नहीं।इस सिद्धान्त को एक उदाहरण से और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है। यह उदाहरण ‘हॉब्स बनाम एल एण्ड एस डब्ल्यू रेलवे कं.’ (1875 एल.आर. 107 क्यू. वी. 111) के मामले से जुड़ा हुआ है। इसमें वादी ने एक स्थान विशेष पर जाने के लिए अपने व अपने परिजनों के लिए रेल टिकिट खरीदे। कुलियों (रेलकर्मियों) की गलती से वे एक गलत गाड़ी में चढ़ गये जिससे वे गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुंच सके और उन्हे किसी अन्य स्थान पर उतरना पड़ा। उस स्थान पर उन्हें न तो ठहरने की सुविधा मिली और न ही वाहन सुविधा। परिणामस्वरूप उन्हें करीब चार मील पैदल चलकर अपने गन्तव्य स्थान पर आना पड़ा। इससे वादी की पत्नी बीमार हो गई जिसकी चिकित्सा पर कुछ धन व्यय करना पड़ा। वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध नुकसानी का वाद दायर किया। यह वाद वादी व परिजनों को हुई असुविधा तथा वादी की पत्नी की बीमारी पर आधारित था। न्यायालय ने असुविधा के तर्क को तो स्वीकार कर लिया लेकिन बीमारी के तर्क को नकार दिया। न्यायालय ने कहा कि वादी व उसके परिजनों को हुई असुविधा प्रतिवादी के कृत्य का सीधा (प्रत्यक्ष) परिणाम थी। लेकिन बीमारी नहीं। बीमारी प्रतिवादी के कृत्य का दूरस्थ परिणाम थी क्योंकि पैदल चलने से कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाये यह आवश्यक नहीं है। फिर इस बात का पूर्वानुमान भी नहीं किया जा सकता कि कोई व्यक्ति पैदल चलने से बीमार ही पड़ जायेगा।

ऐसा ही एक और मामला ‘म्युनिसिपल बोर्ड, खेड़ी बनाम रामभरोसे’ (ए.आई.आर.1961 इलाहाबाद 430) का है। इसमें रामभरोसे ने म्युनिसिपल बोर्ड पर आरोप लगाया कि उसके द्वारा सरदार तेजसिंह को उसके (रामभरोसे के) मकान के पास चक्की लगाने की अनुज्ञप्ति दिये जाने से उसके मकान को भारी क्षति पहुँची है इसलिये वह बोर्ड से क्षतिपूर्ति पाने का हक़दार है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए वादी को नुकसानी पाने का हक़दार नहीं माना कि वादी के मकान को कारित क्षति म्युनिसिपल बोर्ड द्वारा प्रदत्त अनुज्ञप्ति का सीधा परिणाम नहीं थी क्योंकि चक्की तेजसिंह चलाता था, बोर्ड नहीं।

इस प्रकार इन दोनों मामलों से क्षति की दूरस्थता का सिद्धान्त स्पष्ट हो जाता है।इनसे यह भी स्पष्ट होता है कि कोई भी व्यक्ति अपने कृत्य के तात्कालिक परिणामों की परिकल्पना तो कर सकता है लेकिन दूरस्थ (दूरवर्ती) परिणामों की नहीं। यही कारण है कि किसी व्यक्ति का दायित्व केवल उसी कृत्य के लिए होता है जिसका क्षति से सीधा (प्रत्यक्ष) सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध में भी दो महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं-

(i) क्षति का वास्तविक कारण (Causa Causans) तथा

(ii) क्षति का परिकल्पित अर्थात् दूरस्थं कारण (Causa sine qua)

किसी भी व्यक्ति को उसके कृत्य के लिए केवल तभी उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जब वह कृत्य क्षति का वास्तविक कारण (Causa Causans) रहा हो। किसी व्यक्ति को उसके ऐसे कृत्य के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है जो यदि नहीं किया जाता तो घटना घटित नहीं होती (Causa sine qua non)

इसे हम एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। ‘क’ ‘ख’ को एक ऐसे गड्ढे में धक्का देता है जिसमें ‘ग’ द्वारा कभी पत्थर डाला गया था। ‘ख’ को गड्ढे में गिरने से चोटें आ जाती हैं। ‘ख’ ‘क’ एवं ‘ग’ के विरुद्ध नुकसानी का वाद लाता है। ‘ख’ का नुकसानी का वाद ‘क’ के विरुद्ध तो संधारण योग्य होगा लेकिन ‘ग’ के विरुद्ध नहीं, क्योंकि ‘क’ के कृत्य का ‘ख’ की चोटों से सीधा सम्बन्ध है लेकिन ‘ग’ के गड्ढे में पत्थर डालने से नहीं। ‘ग’ ने गड्ढे में पत्थर डालते समय कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि इसमें कभी किसी व्यक्ति को धक्का दिया जा सकता है।

दूरस्थता की कसौटी (Test of remoteness):-दूरदर्शिता का अर्थ है दूरदर्शिता (दूरस्थता) के दो मुख्य सिद्धांत हैं-

(i) सीधे या प्रत्यक्ष परिणाम की कसौटी (Test of direct consequences);तथा

(ii) युक्तियुक्त पूर्वानुमान की कसौटी (Test of reasonable foresight)

सीधे या प्रत्यक्ष परिणाम की कसौटी (Test of direct consequences):- दूरस्थता के सिद्धान्त की पहली कसौटी ‘सीधे या प्रत्यक्ष परिणाम’ की कसौटी है। इसके अनुसार क्षति किसी अपकृत्य का सीधा या प्रत्यक्ष परिणाम होती है। इसमें प्रतिवादी उन समस्त क्षतियों के लिए नुकसानी का संदाय करने हेतु उत्तरदायी होता है जो उसके अपकृत्य का प्रत्यक्ष या सीधा परिणाम होती है। इसमें युक्तियुक्त पूर्वानुमान का कोई महत्त्व नहीं है।

युक्तियुक्त पूर्वानुमान की कसौटी (1 st of reasonable foresight):-दूरस्थता के सिद्धान्त की दूसरी कसौटी युक्तियुक्त पूर्वानुमान की कसौटी है। इसके अनुसार यदि किसी अपकृत्यपूर्ण कार्य से कारित क्षति इस प्रकार की है कि एक सामान्य प्रज्ञावान अर्थात् विवेकशील व्यक्ति उसका पूर्वानुमान कर सकता था तो ऐसी क्षति को दूरस्थ नहीं माना जायेगा और प्रतिवादी ऐसी क्षति के लिए नुकसानी का संदाय करने हेतु उत्तरदायी होगा। लेकिन यदि कोई क्षति ऐसी है जिसका पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता था तो उसके लिए प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं होगा।

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