उत्तर– भारत में अपकृत्य विधि के उद्भव का इतिहास सन् 1726 के चार्टर से जुड़ा हुआ है। सन् 1726 के चार्टर के अन्तर्गत कलकत्ता, बम्बई एवं मद्रास के प्रेसीडेन्सी नगरों में आंग्ल न्यायालयों की स्थापना की गई थी जिन्हे ‘मेयर कोर्ट्स‘ के नाम से जाना जाता था। ये न्यायालय ‘कॉमन लॉ’ के अधीन कार्य करते थे। भारत में भी कॉमन लॉ को ही लागू किया गया था लेकिन न्यायालयों को यह निदेश थे कि भारत की परिस्थितियों के अनुकूल ही कॉमन लॉ (common law) को लागू किया जाये। कॉमन लॉ को लागू करने में साम्य, न्याय एवं शुद्ध अन्तःकरण (equity, justice and good conscious) के सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता था।अपकृत्य विधि भी कॉमन लॉ का एक अभिन्न अंग मानी जाती रही है। भारत में भी इसे इसी संदर्भ में लागू किया गया था लेकिन इतना अवश्य ध्यान रखा जाता था कि यह भारतीय परिवेश में अर्थात भारत की परिस्थितियों, रीति-रिवाजों एव परम्पराओं के अनुरूप लागू हो।

बाघेला बनाम मसेदीन‘ [(1887) 11 बम्बई 551] के मामलें यह अभिनिर्धारित किया गया था कि “साम्य, न्याय एवं शुद्ध अन्तःकरण के सिद्धान्तों का अर्थ इंग्लैण्ड की सामान्य विधि के नियमों के अनुसार लगाया जाये; किन्तु भारत की परिस्थितियों एवं रीति रिवाजों के अनुरूप।”आगे चलकर ‘नवल किशोर बनाम रामेश्वर’ (ए.आई.आर. 1955 इलाहाबाद 594) के मामले में यह कहा गया कि इंग्लैण्ड की अपकृत्य विधि के नियमों को भारतीय परिवेश में अर्थात यहाँ की परम्पराओं, रीतिरिवाजों एवं परम्पराओं के अनुरूप लागू किया जाना चाहिये।

इस प्रकार भारत में अपकृत्य विधि की प्रयोज्यता आंग्ल विधि की देन है। सन् 1726 से आज तक भारतीय न्यायालयों में यह विधि प्रयोज्य होती रही है; लेकिन इसके विकास की गति अत्यन्त धीमी है। इसके निम्नांकित कारण है-

(1) विधि का संहिताबद्ध (codified) नहीं होना;

(2) विधि की अनभिज्ञता (ignorance of law);

(3) निर्धनता (poverty);

(4) राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव; तथा

(5) व्ययसाध्य एवं विलम्बकारी न्याय व्यवस्था ।

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