कपट (Fraud) 🤥 :-
Indian Contract Act Section:-17. कपट की परिभाषा – “कपट” से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आता है निम्नलिखित कार्यों में से कोई भी ऐसा कार्य जो संविदा के एक पक्षकार द्वारा, या उसकी मौनानुकूलता से या उसके अभिकर्ता द्वारा, संविदा के किसी अन्य पक्षकार की या उसके अभिकर्ता की प्रवंचना करने के आशय से या उसे संविदा करने के लिये उत्प्रेरित करने के आशय से किया गया हो-
(1) जो बात सत्य नहीं है, उसका तथ्य के रूप में उस व्यक्ति द्वारा सुझाया जाना जो यह विश्वास नहीं करता कि वह सत्य है;
(2) किसी तथ्य का ज्ञान या विश्वास रखने वाले व्यक्ति द्वारा उस तथ्य का सक्रिय रूप से छिपाया जाना;
(3) कोई वचन जो उसका पालन करने के आशय के बिना दिया गया हो;
(4) प्रवंचना करने योग्य कोई अन्य कार्य;
(5) कोई ऐसा कार्य या लोप जिसका कपटपूर्ण होना विधि विशेषतः घोषित करे ।
1. कपट में प्रवंचना (धोखा) कारित करने का आशय रहता है।
2. कपट में आशय दूसरे व्यक्ति को धोखा देने के आशय से तथ्यों को तोड़-मरोड़कर रखा जाता है।
3. कपट में दोषी व्यक्ति को सत्यता का ज्ञान होता है।
4. कपट एक प्रकार का अपकृत्य होने से दण्डनीय है।
5. कपट से प्रेरित संविदा को भंगकर क्षतिपूर्ति की माँग की जा सकती है।
6. कपट के मामलों में दोषी व्यक्ति अपने बचाव में यह नहीं कह सकता है कि वादी अर्थात् पीड़ित पक्षकार सत्यता का पता लगा सकता था।
दुर्व्यपदेशन (Misrepresentation) :-
Indian Contract Act Section 18. “दुर्व्यपदेशन” से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आते हैं-
(1) उस बात का, जो सत्य नहीं है, ऐसे प्रकार से किया गया निश्चयात्मक प्राख्यान जो उस व्यक्ति की, जो उसे करता है, जानकारी से समर्थित न हो, यद्यपि वह उस बात के सत्य होने का विश्वास करता हो;
(2) कोई ऐसा कर्तव्य भंग, जो प्रवंचना करने के आशय के बिना उस व्यक्ति को, जो उसे करता है, या उससे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति को कोई फायदा किसी अन्य को ऐसा भुलावा देकर पहुँचाये, जिससे उस अन्य पर या उससे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े;
(3) चाहे कितने ही सरल भाव से क्यों न हो, करार के किसी पक्षकार से उस बात के पदार्थ के बारे में, जो उस करार का विषय हो, कोई भूल कराना।
1. दुर्व्यपदेशन में ऐसा कोई आशय नहीं रहता ।
2. दुर्व्यपदेशन में ऐसा नहीं होता है। इसमें किसी बात को उसी तरह दूसरों के सामने रख दिया जाता है जबकि वह सत्य नहीं निकलती है।
3. दुर्व्यपेदशन में दोषी व्यक्ति को सत्यता का ज्ञान नहीं होता है।
4. दुर्व्यपदेशन अपकृत्य की कोटि में नहीं आता है।
5. दुर्व्यपदेशन से प्रेरित संविदा को केवल भंग किया जा सकता है, क्षतिपूर्ति की माँग नहीं की जा सकती है।
6. दुर्व्यपदेशन के मामलों में ऐसा बचाव लिया जा सकता है।