करार (Agreement) 🤝 :-

(1) करार के लिए तीन बातें आवश्यक है-प्रस्ताव, स्वीकृति (वचन) एवं प्रतिफल ।

(2) करार वैधानिक, अवैधानिक कैसा भी हो सकता है।

(3) करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो भी सकता है और नहीं भी।

(4) करार का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है क्योंकि करार किसी भी प्रकार का हो सकता है, विधिक, नैतिक आदि। कैसा भी करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होने पर भी करार तो रहता ही है।

(5) सभी करारों में वैधानिक दायित्वों का उत्पन्न होना आवश्यक नहीं है जैसे-नैतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि।

(6) प्रत्येक करार में पक्षकारों का सक्षम होना, स्वतंत्र सम्मति होना, पर्याप्त प्रतिफल होना आदि आवश्यक नहीं है क्योंकि करार विधि द्वारा अप्रवर्तनीय भी हो सकता है।

संविदा (Contract) :-

(1) संविदा के लिए दो बातें आवश्यक है। करार एवं उसका विधितया प्रवर्तनीय होना।

(2) संविदा में करार का विधिपूर्ण (वैध) एवं विधि द्वारा प्रवर्तनीय होना।

(3) संविदा विधि द्वारा प्रवर्तनीय होती है।

(4) संविदा का क्षेत्र संकुचित होता है क्योंकि प्रत्येक करार संविदा का रूप धारण नहीं कर सकता।

(5) संविदा में पक्षकारों के बीच वैधानिक दायित्वों का उद्भव होता है।

(6) संविदा में पक्षकारों की क्षमता, स्वतंत्र सम्मति, पर्याप्त प्रतिफल आदि का होना आवश्यक है।

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