उत्तर :- विधि के स्रोत से तात्पर्य उन मौलिक सामग्रियों से है जिनसे विधि की विषय-वस्तु प्राप्त की जाती है।
मुस्लिम विधि के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :-
(1) प्राथमिक स्रोत (प्रधान स्त्रोत) Primary Sources
(2) द्वितीयक स्रोत (गौण स्त्रोत) Secondary Sources
(1) प्राथमिक स्रोत (प्रधान स्त्रोत):- Primary Sources
(1) कुरान
(2) सुन्नत और अहादीस (हदीस)
(3) इज्मा
(4) कयास
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(1) कुरान ( The Quran):- कुरान मुस्लिम विधि का सर्वोच्च और सार्वत्रिक प्रमाण है।
इसमें अल्लाह के द्वारा अपने पैगंबर को दिया गया देवी संदेश नियत है कुरान 114 अध्यायों सुरा का यह ग्रंथ है कुरान के सभी अध्याय हजरत मोहम्मद के व्यक्तिगत निर्देशानुसार उनके अनुयायियों द्वारा व्यवस्थित किए गए हैं जब भी कोई आयत वर्सेस नाजिल होती थी तो हज़रत मोहम्मद स्वयं बताते थे इसे किस अध्याय में जोड़ना है।
कुरान में कुल 6666 आयतें हैं जिनमें से लगभग 200 आए थे विधिक सिद्धांतों से संबंधित है विधि से संबंधित आयतों में से लगभग 80 आयतें पारिवारिक विधि (विवाह मेहर तलाक और विरासत) से संबंधित है।
कुरान स्वत कोई पूर्ण संहिता नहीं है वह संहिता के रूप में नहीं वरन् खण्डों में प्रकट हुआ है वह लगभग 23 वर्षों में प्राप्त हुआ और पैगंबर साहब के जीवन काल में संग्रहित और क्रमबद्ध नहीं किया गया।
अबू बकर ने जो पैगंबर साहब के बाद खलीफा हुए और सन 634 ईस्वी में मरे पहली बार कुरान के विभिन्न लेखांशो का संग्रह कराया फिर 16 वर्ष बाद तीसरे खलीफा उस्मान ने उसका पुनरावलोकन कराया।
इस पवित्र किताब को अध्यायबध्द करने का कार्य निम्नलिखित सहाबियों के निर्देशन में हुआ और इन्होंने ही कुरान का एक संकलन का कार्य भी किया है ये है :- जैद (हजरत साबित के पुत्र) अब्दुल्ला (जुबेर के पुत्र) सैयद (आस के पुत्र) और अब्दुल रहमान (हैरीस के पुत्र) इस कार्य को अत्यंत ही सावधानी और तुलनात्मक विधि द्वारा पूर्ण कर खलीफा को भेंट दिया गया खलीफा ने इस ग्रंथ की बहुत सी प्रतिलिपियां बनवाकर इस्लाम के विभिन्न केंद्रों पर भिजवाए और इस पवित्र किताब की बाद में और प्रतिलिपियां बनवाकर हजरत मोहम्मद साहब भी अपने साथियों से कहा करते थे कि कुरान को दिल से याद कर लिया करो और लिखा करो।
कुरान की प्रमुख विशेषताएं:-
(1) वह समय और महत्व की दृष्टि से मुस्लिम विधि का प्रधान स्रोत है।
(2) उसमें पैगम्बर मोहम्मद से कहे गये अल्लाह के ही शब्द अन्त्तर्विष्ट है।
(3) वह कोई संहिता नही है (code) तैय्यबजी का यह अवलोकन है कि कुरान संहिता न होकर,.. एक संशोधन कारी (Amending) अधिनियम है।
(4) मूलतः उसका उद्देश्य था-
(क) सामाजिक सुधार, जैसे- सूदखोरी बहुविवाह, जुआ आदि दूषित रिवाजो को दूर करना,
(ख) दण्ड के नियमो को लेखबंद करना ।
(5) कुरान सुरा या अध्यायों मे विभक्त है और इनकी संख्या 114 है। प्रत्येक अध्याय का अलग-अलग नाम है। ये अध्याय कालक्रम से नहीं रखे गये है वरन् प्रथम अध्याय को छोड़कर सबसे बडा अध्याय पहले, तब उससे छोटा, किर उससे छोटा इत्यादि लघुत्तर क्रम में रखे गये है।
(6) कुरान केवल विधि ग्रंथ ही नहीं वरन् इसमें “मजहब (धम), नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र की बातों की बहुतायत है। धर्म, विधि और नैतिकता की बातें कहीं-कहीं इस प्रकार मिश्रित है कि उन्हें पृथक करना आसान नहीं है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि धर्म और नैतिकता संबंधी कुरान की आयते (verses) मक्का में प्रकट (reveal) हुई विधि संबधित आयते मदीना में उतरी। विधि संबंधी आयतों की संख्या 200 है जो विभिन्न अध्यायों में बिखरी पड़ी हैं।
कुरान विधि के स्रोत के रुप मे :– इस्लामिक विधि के स्त्रोत के रूप में कुछ नियम (लेख) कुरान के निम्र अध्यायों मे मिलते हैं जैसे- अलबकर (गाय), अल इमरान (इमरान का परिवार) अलनिसा (औरत), अलमैदा (भोजन) अननूर (रोशनी) और बनी इस्त्राइल (इस्त्राइल का परिवार)
इन अध्यायों में निहित नियम निम्नलिखित विषयों से संबंधित है:-
(1) अवैध रीति-रिवाजों का दमन जैसे बालिका-वध, जुआ शराब पीना, बहु-विवाह इत्यादि ।
(11) सामाजिक सुधार जैसे विवाह, तलाक, स्त्री की स्थिति- पर्दा आदि।
(iii) अपराध विधि मे चोरी, वध इत्यादि की सजा से सम्बन्धित ।
(iv) दुश्मन के साथ व्यवहार तथा सम्पति के विभाजन से संम्बन्धित निर्देश।
(ⅴ) युद्ध एवं शान्ति की अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा जिम्मी (non-muslim) की सम्पति तथा उसके साथ व्यवहार ।
इस्लाम से पूर्व नाजिल (revealed) विधि की वैधिकता :-इस्लाम से पहले भी अल्लाह की किताब नाजिल हुई जैसे:- तौरात, जुबूर, तथा इंजील और इन सब में विधि के नियम दिये गये है।
आगा मोहम्मद बनाम जफ्फार कुलसुम बीबी:–• अर्थान्वन करने में कुरान प्राचीन व्याख्याओं में दी हुई सुव्यवस्थाओं के अधीन है इस वाद प्रिवी काउन्सिल के मान्य न्यायाधीशों ने यह धारण किया कि जब कुरान के किसी लेखांश का हेदाया या इमामिओं में किसी विशेष रूप से अर्यान्वयन कर दिया गया हो तो न्यायालयों को उसका कोई भिन्न अर्थ लगाने का अधिकार नहीं है।
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(2) सुन्नत और अहादिस (हदीस The Sunnah) traditions):-प्रगतिशील होने के कारण मुस्लिम समाज के सामने ऐसी समस्याएं आती थी ‘जिनके बारे में कुरान खामोश था । अपने जीवन काल में पैगम्बर मोहम्मद अपने विनिश्चय देते थे कुछ कार्य वे स्वयं करते थे और इस्लाम द्वारा अनुमत कुछ कामों को मौन स्वीकृति व्द्वारा होने देते थे। “परिणामतः पैगम्बर मोहम्मद के व्दारा जो कुछ कहा गया या जो कुछ किया गया या जिसका मौन समर्थन किया गया वह समय और प्रामाणिकता की दृष्टि से कुरान के बाद मुस्लिम विधि का एक प्रधान स्रोत बन गया और सुन्नत’कहलाया।
सुन्नत अथवा अहादिस से तात्पर्य पैगम्बर साहब की परम्परा से है। इस्लाम धर्म यह विश्वास किया जाता है कि दैवी आकाशवाणियों के दो प्रकार है-प्रत्यक्ष (जाहिर) ② अप्रत्यक्ष (बातिन)
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(3) इज्मा (विचारों का मतैक्य) :-सर अब्दुर्रहीम ने ‘इज्मा की परिभाषा की है- ” विधि के किसी प्रश्न पर विशेष काल में पैगम्बर मोहम्मद के अनुयायियों में से विधिवेत्ताओं का मतैक्य(एक विशेष प्रश्न पर एक विशेष युग में पैगंबर मोहम्मद के अनुयायियों के बीच न्यायविदों की सहमति)कानून जीवित और परिवर्तनशील है। सामाजिक, परिस्थितियाँ क्रमशः परिवर्तनों के अधीन रहती है और यह परिवर्तन कानून की प्रभावित करते हैं। हनफी विचारधारा के अनुसार समय के बदलने के साथ-2 कानून मे अवश्य ही परिवर्तन होना चाहिए मलिकी विचारधारा के अनुसार, नये तथ्य नये निष्कर्षा की अपेक्षा करते है। कानून का उद्देश्य समाज की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
इज्मा का सिद्धान्त कुरान के निम्रलिखित आदेशो पर आधारित है:-(अल्लाह की आज्ञा मानो, ‘उसके रसूल की आज्ञा मानो और तुममें से जो प्राधिकारी हो, उनकी आज्ञा मानो। यदि तुम्हे ज्ञान न हो पूछो जिन्हें ज्ञान है।
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④ कयास (सादृश्य निष्कर्ष) Amalogical Deduction:-कयास से तात्पर्य सादृश्य तर्क से है अर्थात् कुरान, हदीस और इज्मा के तत्समय नियम को आधार जानकर तद्नुसार मौजूदा कानूनी प्रश्न पर नियम ज्ञात करना इस प्रकार तर्क के आधार पर कानून के नियम निकाले जाते है लेकिन यह नियम कुरान हदीस और इज्मा के नियमों के विरुद्ध नहीं हो सकते हैं। पैगम्बर साहब ने मुआज से पूछा कि “तुम अपने विनिश्चय- किस पर आधारित करोंगे मुआज ने जवाब दिया-अल्लाह के ग्रंथ पर “तब पैगम्बर ने पुनः पूछा- यदि उससे सहायता न मिली तो ? मुआज ने कहा- पैगम्बर के सुन्नत पर और पैगम्बर साहब ने फिर प्रश्न किया-उससे से भी काम नहीं चला तो ? मुआज ने उत्तर दिया- अपनी ही बुद्धि से निर्णय करुगाँ । पैगम्बर साहब ने हाथ उठाकर कहा -यह हाथ उठाकर अल्लाह ही है. जो पैगम्बर के दूतों को राह दिखाता है। विधि के स्त्रोत के रुप में कियास का उद्भव तब हुआ जब किसी प्रश्न या समस्या का समाधान करान, सुन्नत अहादिस एवं इज्मा से भी नहीं किया जा सका। ऐसी स्थिति में उपरोक्त तीनो स्रोतो का तुलनात्मक अध्ययन कर समस्याओं का समाधान किया जाने लगा यही “कियास” कहलाया। कयास से विधि की उस अनन्य विचार पद्धति का भी उद्भव हुआ जिसका प्रतिनिधित्व अजजहीर को माना जाता है) “यह स्रोत (क्यास) हनबली स्कूल के अनुयायियों के लिये कोई महत्व नहीं।
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(2) गौण स्त्रोत (Secondary Sources):-
(1) उर्फ (रिवाज अथवा रुढ़ि)
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(2) न्यायिक विनिश्चय
(3) विधायन
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(4) न्याय साम्य और सद्वविवेक
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इस्तिहसन क्या है:-
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मुस्लिम विधि और मूल हिंदू विधि के स्रोतों की तुलना :-
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