Hindu Marriage Act divorce grounds available to both parties husband and wife

:-पति एवं पत्नी दोनों पक्षकारों को उपलब्ध आधार-हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) में उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिन पर पति एवं पत्नी दोनों में से किसी के भी द्वारा विवाह-विच्छेद की याचिका प्रस्तुत की जा सकती है। यह आधार निम्नलिखित हैं:-

(i) जब दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठापन के पश्चात् अपने पति या अपनी पत्नी से भिन्न किसी व्यक्ति के साथ स्वेच्छया ‘मैथुन’ (Sexual Intercourse) किया हो,

श्रीमति इन्दु मिश्रा बनाम कोविद कुमार (ए.आई.आर 2006 राजस्थान (117) के मामले में पति द्वारा पत्नी पर अभित्यजन एवं जारता के आरोप लगाये गये। पति का कहना था कि पत्नी किसी अन्य पुरुष के साथ रहती है और उसके साथ उसके अवैध सम्बन्ध हैं। पत्नी ने भी पति पर जारता का आरोप लगाते हुए कहा कि उसके उसकी भाभी के साथ अवैध सम्बन्ध हैं, लेकिन वह उसे साबित नहीं कर सकी। राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा पत्नी को अभित्यजन एवं जारता का दोषी मानते हुए पति के पक्ष में विवाह विच्छेद की डिक्री पारित की गई।

राजेश कुमार सिंह बनाम श्रीमती रेखा सिंह (ए.आई. आर. 2005 इलाहाबाद 16) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि बलात्कार,जारता की परिधि में नहीं आता है। जहाँ नशे में किसी स्त्री के साथ बलात्कार किया जाये और वह स्त्री बलात्कारी को नहीं पहचानती हो तथा उस स्त्री के बलात्कारी के साथ अनैतिक सम्बन्ध भी साबित न हो, वहाँ इसे जारता मानकर विवाह विच्छेद की डिक्री पारित नहीं की जा सकती

(ii) जब दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठापन के पश्चात् अर्जीदार के साथ ‘क्रूरता’ (Cruelty) का व्यवहार किया हो,

(iii) जब दूसरे पक्षकार ने अर्जी के पेश किये जाने के अव्यवहित पूर्व कम से कम दो वर्ष की निरन्तर कालावधि तक अर्जीदार को ‘अभित्यक्त’ (Desert) कर रखा हो,

(iv) जब दूसरा पक्षकार अन्य धर्म में संपरिवर्तित हो जाने के कारण हिन्दू नहीं रह गया हो,

(v) जब दूसरा पक्षकार असाध्यरूप से ‘विकृत चित्त’ (Unsound mind)रहा हो अथवा निरन्तर या आंतरालिक से इस प्रकार के और इस हद तक मानसिक विकार से पीडित रहा हो कि अर्जीदार से यह युक्तियुक्त रूप से यह आशा नहीं की जा सकती है कि वह प्रत्यर्थी के साथ रहे,

(vi) जब दूसरा पक्षकार उग्र व असाध्य ‘कुष्ठ रोग’ (leprosy) से पीडित रहा हो, कुष्ठ रोग का आधार स्वीय विधि (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा समाप्त कर दिया गया है।

(vii) जब दूसरा पक्षकार संचारी रूप से ‘रतिज रोग’ (Venereal Disease) से पीड़ित रहा हो,

(viii) जब दूसरा पक्षकार किसी धार्मिक पंथ के अनुसार ‘प्रवस्या'(Renunciation of World) ग्रहण कर चुका हो,

(ix) जब दूसरा पक्षकार जीवित है या नहीं, इसके बारे में सात वर्ष या उससे अधिक को कालावधि के भीतर उन्होंने कुछ नहीं सुना है जिन्होंने उसके बारे में यदि वह पक्षकार जीवित होता तो स्वाभाविकतः सुना होता.

(x) जब न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के पश्चात् एक वर्ष या उससे अधिक की कालावधि में विवाह में के पक्षकारों के बीच सहवास का पुर्नाम्भ नहीं हुआ हो अथवा

(xi) जब दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन को डिक्री पारित होने के पश्चात् एक वर्ष या उससे अधिक की कालावधि में विवाह में के पक्षकारों के बीच दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन नहीं हुआ हो ।

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