हिंदू:-व्यापक रूप से प्रचलित एवं प्रख्यात शब्द है। प्रायः प्रत्येक व्यक्ति इस शब्द से परिचित है। लेकिन यह दुःख का विषय है कि आज तक इस शब्द की कोई सार्वभौम परिभाषा नहीं दी जा सकी है। कहने को तो किसी व्यक्ति की हिन्दू कह दिया जाता है लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि वह हिन्दू क्यों है?
:-राधाकृष्णन ने अपनी कृति ‘हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ’ (Hindu View of Life) में एक जगह कहा है कि एक समय था जब हिन्दू के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान प्रादेशिकता के आधार पर होती थी अर्थात् जो व्यक्ति भारतवर्ष में रहता था यह हिन्दू कहलाता था। उस समय ‘हिन्दू’ शब्द राष्ट्रीयता का द्योतक भी था। इसका अभ्युदय सिन्ध नदी की घाटी में निवास करने वाले व्यक्तियों से हुआ अर्थात् जो सिंध नदी की घाटी में रहते थे वे हिन्दू कहलाते थे। कालान्तर में इस शब्द का प्रयोग सिंध नदी की घाटी से बाहर रहने वाले लोगों के लिए भी किया जाने लगा। लेकिन आगे चलकर ज्यों-ज्यों मुस्लिम राज्य स्थापित होने लगे, शब्द ‘हिन्दू न तो राष्ट्रीयता का सूचक रह गया और न ही प्रादेशिकता का
-बीच में एक समय ऐसा भी आया जब ‘हिन्दू’ उसे कहा जाने लगा जो हिन्दू धर्म को मानता था या उसका अनुसरण करता था अर्थात् हिन्दू धर्म का अनुयायी था। लेकिन ‘हिन्दू’ की यह पहचान भी अधिक समय तक नहीं टिक सकी क्योंकि ‘हिन्दू’ के लिए यह आवश्यक नहीं माना गया कि वह हिन्दू धर्म को मानता ही हो। यह खेदपूर्ण ही है कि सन् 1955 एवं 1956 में संहिताबद्ध विभिन्न हिन्दू विधियों का निर्माण किया गया लेकिन उनमें हिन्दू शब्द को परिभाषित नहीं किया गया। आज मोटे रूप में यही कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति मुसलमान, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है, वह हिन्दू है।
:-उच्चत्तम न्यायालय ने ‘डॉ रमेश यशवन्त प्रभु बनाम प्रभाकर काशीनाथकुन्ते’ (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 1113) तथा ‘मनोहर जोशी बनाम नितिन भाय्शव पाटिल’ (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 796) के मामलों में शब्द ‘हिन्दू’ से जुड़े शब्द ‘हिन्दुत्व’ को इस महाद्वीप की जीवन शैली एवं मानसिकता के रूप में निरुपित किया है।
अब ‘हिन्दू’ शब्द की व्यापक परिभाषा यही दी जा सकती है कि जिस व्यक्ति पर हिन्दू विधि लागू होती है, वह हिन्दू है।
:-वे व्यक्ति, जिन पर हिंदू विधि लागू होती है-उन लोगों को, जिन पर हिंदू विधि लागू होती है, उन्नत स्थान में रखा जा सकता है-
(क) वे व्यक्ति जो जन्मतः हिंदू, जैन, बौद्ध या सिख हैं,
(ख) वे व्यक्ति जो धर्मतः हिंदू, जैन, बौद्ध या सिख हैं, तथा
(जी) वे व्यक्ति जो मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है।
(क) वे व्यक्ति जो जन्मतः हिन्दू हैं- जन्मतः हिन्दू उस व्यक्ति को कहा जाता है जो हिन्दू माता-पिता की सन्तान है अर्थात् जिसके माता एवं पिता दोनों हिन्दू हैं, वह हिन्दू है। लेकिन ऐसे व्यक्ति को भी हिन्दू ही माना जाता है जिसके माता- पिता में से कोई एक हिन्दू है और उसका पालन पोषण हिन्दू रीति से किया गया है। ‘माया देवी बनाम उत्तराम’ [ (1861) 8 एम.आई.ए. 406] के मामले में उक्त मत की पुष्टि की गई है।
‘देवावासम बनाम जया कुमारी’ (ए.आई.आर. 1991 केरल 175) के मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि त्रावनकोर की नाडार जाति में कोई पुरुष अहिन्दू स्त्री से विवाह कर सकता है और ऐसे विवाह से उत्पन्न सन्तान हिन्दू मानी जाती है।यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्राचीन धर्मशास्त्रों के अनुसार हिन्दू माता-पिता से उत्पन्न सन्तान ही हिन्दू कही जा सकती थी, धर्म परिवर्तन कर हिन्दू धर्म को अंगीकृत करने जैसी कोई बात नहीं थी। इसी कारण यह कहा जाता है कि हिन्दू पैदा होता है, बनाया नहीं जाता। (A Hindu is born and not made.)
अनुसूचित जनजाति पर हिन्दू विधि की प्रयोज्यता कई बार यह प्रश्न उठा है कि क्या संहिताबद्ध हिन्दू विधि उन व्यक्तियों पर भी लागू होती है जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (25) के अर्थान्तर्गत अनुसूचित जनजाति के हैं? हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 2(2) तथा ‘दशरथ बनाम गुरु’ (ए.आई. आर. 1972 उड़ीसा 78) तथा ‘कदम बनाम जीतन’ (ए.आई.आर. 1973 पटना 205) के मामलों में इस प्रश्न का उत्तर मिलता है। इनके अनुसार ऐसे व्यक्तियों पर संहिताबद्ध हिन्दू विधि तभी लागू होगी जब केन्द्रीय सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना जारी कर ऐसा निर्दिष्ट किया जाये।
:-(हिन्दू पिता एवं ईसाई माता से उत्पन्न सन्तान एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या ऐसा व्यक्ति हिन्दू माना जायेगा जिसका पिता हिन्दू तथा माता ईसाई है? ‘धनकर आयुक्त बनाम श्रीधरन’ (1976 एस. सी. आर. 489) के मामले में इस प्रश्न का सकारात्मक उत्तर देते हुए यह कहा गया है कि यदि माता-पिता में से कोई एक हिन्दू है और उनसे उत्पन्न सन्तान का पालन-पोषण हिन्दू रीति के अनुसार होता है तो वह सन्तान हिन्दू मानी जायेगी फिर हमारे यहाँ पुत्र पर पिता का धर्म ही प्रयोज्य माना जा है।
:-लेकिन वहाँ स्थिति भिन्न होगी जहाँ सन्तान का पालन-पोषण ईसाई परिवार के सदस्य के रूप में किया जाता है। ऐसी स्थिति में सन्तान हिन्दू नहीं होकर ईसाई होगा। जैसा कि ‘सपना बनाम केरल राज्य’ (ए.आई.आर. 1993 केरल 75) के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है।
(ख) वे व्यक्ति जो धर्मतः हिन्दू है:- हिन्दू विधि ऐसे व्यक्तियों पर भी लागू होती है जो जन्मतः हिन्दू नहीं है लेकिन जिन्होंने धर्म परिवर्तन कर हिन्दू धर्म स्वीकार किया है। इस सम्बन्ध में ‘अब्राहम बनाम अब्राहम’ [ (1863) 9 एम.आई.ए. 195] का एक महत्त्वपूर्ण मामला है। इस प्रकरण में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि हिन्दू विधि केवल ऐसे व्यक्तिनों पर ही लागू नहीं होती है जो जन्म से हिन्दू हैं, अपितु ऐसे व्यक्तियों पर भी लागू होती है जो धर्म परिवर्तन द्वारा हिन्दू बने हैं। एक और मामला ‘मोरारजी बनाम एडमिनिस्ट्रेटर जनरल‘ [(1929) 52 मद्रास 160] का है जिसमें यह कहा गया है कि धर्म परिवर्तन से हिन्दू बने व्यक्ति भी हिन्दू हैं और ऐसे व्यक्तियों पर हिन्दू विधि लागू होती है। आधुनिक हिन्दू विधि में ‘हिन्दू’ शब्द में जन्मत: हिन्दू एवं धर्मतः हिन्दू दोनों को सम्मिलित किया गया है।
(ग) जो मुसलमान, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है-विस्तृत भाव में हिन्दू विधि उन सब व्यक्तियों पर लागू होती है जो मुसलमान, ईसाई, पारसी वा यहूदी नहीं है। ‘राजकुमार बनाम वारवारा’ (ए.आई. आर 1989 कलकत्ता 165) के मामले में तो कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यहाँ तक अभिनिर्धारित किया गया है कि इस श्रेणी में वे सभी लोग आ जाते हैं जो किसी भी धर्म को मानने वाले नहीं हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मुसलमान, ईसाई, पारसी एवं यहूदी से भिन्न ऐसे सभी व्यक्ति हिन्दू हैं और उन पर हिन्दू विधि लागू होती है जो- (i) नास्तिक है, या (ii) सभी धर्मों को मानने वाले हैं, या (iii) मिले-जुले धर्म में विश्वास करते हैं।
‘यज्ञपुरुवद्रासजी बनाम मूलदास (ए.आई. आर. 1966 एस.सी. 1119) के मामले से उत्पतम् यायालय द्वारा नारायण स्वामी सम्प्रदाय के अनुयायियों को भी हिन्दू माना गष्ट है क्योंकि मत-मतान्तर एवं अपने नियमों से शासित होते हुए भी। अन्ततः व हिन्दू धर्म से ही जुड़े हुए हैं।अधिनियमित विधियों की प्रयोज्यता- अब हम
:-अधिनियमित विधियों Enacted laws) की प्रयोज्यता पर विचार करते हैं। अधिनियमित विधियाँ निम्नांकित न लागू होती हैं-
(1) जो वीर शैव, लिंगायत अथवा ब्रह्मसमाज, प्रार्थना समाज या आर्य समाज के अनुयायी है और धर्मत हिन्दू हैं।
(ii) जो धर्मतः जैन, बौद्ध या सिक्ख हैं, तथा
(iii) जो अधिनियमिति के विस्तार क्षेत्र में अधिवासी है और जो मुसलमान, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है, और यह सिद्ध नहीं किया गया है कि. अधिनियमिति नहीं होने की दशा में से हिन्दू विधि या उसके भाग रूप में किसी रूढ़ि या प्रथा से शासित नहीं होते।
:-निम्नलिखित व्यक्ति धर्मत यथास्थिति हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख है-
(क) कोई भी अपत्य, धर्मज या अधर्मज, जबकि माता-पिता दोनों ही धर्मतः हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख है,
(ख) कोई भी अपत्य, धर्मज या अधर्मज , जिसके माता-पिता में से कोई एक धर्म है हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख और जो उस जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुंब के सदस्य के रूप में है, जिसके माता या पिता सदस्य हैं या थे, तथा
(जी) कोई ऐसा व्यक्ति भी है जो हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख धर्म में संपरिवर्तित (रूपांतरित) या प्रतिसंपरिवर्तित (पुनः परिवर्तित) है। ‘पेरुमल बनाम पी.एस.सी. 2352) दुर्गा प्रसाद बनाम सुदर्शन स्वामी’ (ए.आई.आर. 1940 मद्रास 513) के प्रसंगों में इस बात की पुष्टि की गई है। है
डॉ. बिनी बी. बनाम जयन पी.आर. (ए.आई. आर. 2015 केरल 59 ) के मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि–हिन्द विवाह अधिनियम, 1956 केरल के कूरमा समुदाय पर लागू नहीं होता है, क्योंकि यहाँ प्रथायें प्रचलित हैं और वैवाहिक मामले प्रथाओं से ही शासित होते हैं। केन्द्रीय सरकार की अधिसूचना द्वारा भी इसे कूरमा अनुसूचित जाति पर लागू नहीं किया गया।