तलाक (Divorce) :-

अर्थ (Meaning)-

तलाक शब्द का अर्थ है:-विवाह को तोड़ना या विवाह विच्छेद करना।

कानून की दृष्टि में तलाक पति या पत्नी द्वारा किया गया कोई ऐसा कार्य है जिससे उनके विवाह की संविदा समाप्त हो जाती है।

परिभाषा (Definition)

फिटजराल्ड– तलाक़ शब्द से तात्पर्य खण्डन से है।

जी सी चैशायर– तलाक जो पारिवारिक एकता को तोड़ता है और अपने आप में एक सामाजिक बुराई है किंतु यह एक आवश्यक बुराई है।

तलाक देने की शर्ते:-

1) शिया विधि के अनुसार

1) वयस्क

11) स्वस्थचित्त

Ⅲ) स्वतंत्र इच्छा वाला

iv) कार्य की प्रकृति को जानने वाला

2) सुन्नी विधि के अनुसार:

1) वयस्क

2) स्वस्थचित्त

यदि पति अस्वस्थचित्त है तो उसके संरक्षक द्वारा दिया गया तलाक भी मान्य है।

तलाक के प्रकार:-

1) तलाक उल सुन्नत– यह तलाक पैगंबर साहब की परंपरा के अनुसार किया जाता है। जिसको हजरत मोहम्मद द्वारा मान्यता प्रदान की गई है.

इसके दो भाग है-

ⅰ) तलाक ए अहसन- अरबी में अहसन का अर्थ है सर्वश्रेष्ठ। विल्सन ने इसे अतिउत्तम बताया है। तलाक अहसन में पति एक ही घोषणा से अपनी पत्नी से वैवाहिक संबंध विच्छेद कर सकता है। यह तलाक सर्वोत्तम तलाक होता है तथा एक बार तलाक की घोषणा के बाद पति को उसे वापस लेने की हमेशा स्वतंत्रता रहती है।

ii) तलाक ए हसन:- अरबी में हसन शब्द का अर्थ है अच्छा। विल्सन ने इसे उचित कहा है। इसमें पति तलाक की लगातार तीन घोषणाये करता है लेकिन तीनों घोषणाये ऐसी अवधि में की जानी चाहिए जब पत्नी शुद्ध अवधि में हो और एक घोषणा व दूसरी घोषणा के बीच की अवधि में पति- -पत्नी का समागम भी न हुआ हो। यदि वे ऐसा करते हैं तो तलाक मान्य नहीं होगा।

2) तलाक उल बिद्दत– इसे तलाक उल बैर भी कहा जाता है।

इसकी निम्र शर्ते है:-

1) तलाक को उच्चारण तीन बार करते ही या यह कहना कि मैं तुम्हें तीन बार तलाक कहता हूं।

ⅱ) तलाक का उच्चारण होते ही तलाक हो जाता है।

3) पत्नी की उपस्थिति भी आवश्यक नहीं है तथा मजाक नशे, विवशता में तलाक सुन्नी विधि में मान्य है।

v) इशारे द्वारा भी तलाक हो सकता है।

v) तलाक के बाद इद्दत प्रारंभ हो जाती है।

केस- रशीद अहमद बनाम अनीसा खातून (1932) न्यायालय ने कहा कि हनफी विधि में तलाक देने के बाद पत्नी से उसका पति पुनर्विवाह नहीं कर सकता जब तक कि पत्नी किसी अन्य से विवाह नहीं कर लेती और उससे तलाक नहीं हो जाता। बच्चे मान्य नहीं है। और अभिस्वीकृति भी उन्हें धर्मज नहीं बना सकती।

केस- सायरा बानो बनाम भारत संघ (2017) उच्चतम न्यायालय की पांच जजों के संवैधानिक पीठ द्वारा 32 के बहुमत से तलाक उल बिद्दत को असंवैधानिक घोषित कर दिया क्योंकि यह अनुच्छेद 14 व 21 उल्लंघन करता है।

तलाक के अन्य प्रकार

1) इला- इला का अर्थ है- समय की प्रतिज्ञा। यदि कोई पति जो वयस्क और स्वस्थचित्त हो खुदा की कसम खाकर कहे कि वह चार माह या उससे अधिक समय तक अपनी पत्नी से संभोग नहीं करेगा तो इसे इला कहा जाता है। भारत में इला का कोई महत्व नहीं है।

2) जिहार– जिहार का अर्थ है- विधिविरुद्ध तुलना। जब कोई पुरुष अपनी पत्नी की तुलना अपनी माँ या बहन से करता है जिससे वह विवाह नहीं कर सकता है तो जब तक वह प्राश्चित न कर ले पत्नी को उससे संभोग करने से इंकार करने का अधिकार है और पत्नी को विवाह विच्छेद के लिए आवेदन करने का अधिकार हो जाता है।

ज़िहार के लिए प्रायश्चित के तरीके

1) एक गुलाम को आजाद करके

2) दो महीने का रोजा रखकर

3) साठ गरीबों को भोजन कराकर।

3) तलाक ए तफ्वीज (प्रत्यायोजित तलाक)- कोई पति या तो स्वयं अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है या तलाक देने की अपनी शक्ति तीसरे व्यक्ति को दे सकता है पति के ऐसे अधिकार में किसी अन्यव्यक्ति द्वारा दिया गया तलाक, तलाक ए तफ्वीज या प्रत्यायोजित तलाक कहलाता है।

केस- हमीदुल्ला बनाम फेजुन्निसा (1982) इस मामले में विवाह के पहले पति पत्नी के बीच करार हुआ था कि पति पत्नी की मांग पर उसे 400 रू मुअज्जिल मेहर के रूप में देगा। पत्नी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा। पति हर वर्ष उसे चार बार माइके भेजेगा और यदि वह इन शर्तों उल्लंघन करता है तो पत्नी अपने को तलाक दे सकेगी। विवाह के कुछ दिनों बाद पत्नी ने पति के ऊपर क्रूरता और मेहर ए मुअज्जिल की अदायगी न किए जाने का आरोप लगाकर अपने को तलाक दे दिया। न्यायालय ने इस तलाक को सही माना।

4) लियॉन (व्यभिचार का झूठा आरोप):- जब कोई पति अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाए लेकिन आरोप झूठा हो वहां पत्नी को अधिकार है कि दावा करके विवाह विच्छेद करा ले इसके लिए नियमित वाद दायर करना आवश्यक है।

पारस्परिक सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद :-

1) खुला– खुला का अर्थ है- हटाना या खोलना (बंधन मुक्त करना) विधि में इसका अर्थ है पति द्वारा पत्नी पर अपने अधिकार और प्रभुत्व का परित्याग। पति-पत्नी के बीच जब कभी भी वैमनस्य हो जाए तो पत्नी अपने पति को धन देकर अपने को मुक्त कर सकती है। इसकी कुछ शर्ते हैं-

1) पत्नी की तरफ से प्रस्ताव आना चाहिए।

2) छुटकारे के लिए प्रतिफल जरूरी है।

3) प्रस्ताव पति द्वारा स्वीकार किया जाना आवश्यक है।

2) मुबारत– मुबारत का अर्थ है पारस्परिक छुटकारा। खुला की तरह मुबारत में भी पति-पत्नी के आपसी समझौते से विवाह विच्छेद होता है। मुबारत में विवाह विच्छेद का प्रस्ताव किसी एक की ओर से हो सकता है। एक बार प्रस्ताव स्वीकार होने पर विवाह विच्छेद पूर्ण हुआ माना जाता है इसमें किसी प्रतिफल का लेनदेन नहीं होता।

खुला और मुबारत में अंतर

1) खुला विवाह की संविदा से पत्नी की मुक्ति को कहते हैं जबकि मुबारत विवाह बंधन से पारस्परिक मुक्ति को कहते हैं।

2) खुला में पत्नी की तरफ से प्रस्ताव और पति की तरफ से उसकी स्वीकृति होती है जबकि मुबारत में दोनों में से कोई भी प्रस्ताव कर सकता है और दूसरा उसे अस्वीकार नहीं कर सकता।

ⅲ) खुला में प्रतिफल पत्नी से पति को प्राप्त होता है जबकि मुबारत में प्रतिफल का प्रश्न ही नहीं उठाता।

iv) खुला में अरुचि पत्नी की ओर से होती है जबकि मुबारत में अरुचि दोनों की ओर से होती है।

केस मुशी बुजुल उल रहीम बनाम लतीफ‌न्त्रिसा (1861) मुस्लिम विधि में तलाक या खुला दोनों में से किसी भी रीति से विवाह विच्छेद किया जा सकता है। अन्तर यह है कि तलाक पति का मनमाना कार्य है। उसे मेहर देना होगा जबकि खुला पत्नी की सहमति पर आधारित संविदा होती है।

मुस्लिम विवाह विच्छेद 1939 में तलाक के आधार:-मुस्लिम विवाह विच्छेद 1939 के पारित होने से पहले मुस्लिम पत्री को भारत में केवल दो आधार प्राप्त थे:-

1) पति की नपुंसकता

2) लियॉन

इस अधिनियम की धारा 2 में 9 आधारों का वर्णन किया गया है जिनमें से एक या अधिक आधार पर पत्नी विवाह- विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती है-

1) पति की अनुपस्थिति

2) भरण पोषण करने में असफलता

3) पति को कारावास

4) दाम्पत्य दायित्वों के पालन में असफलता

5) पति की नपुंसकता

vi) पति का पागलपन

vii) पत्नी द्वारा विवाह की अस्वीकृति

viii) पति की निर्दयता

x) अन्य आधार

i) पति की अनुपस्थिति– यदि पति चार वर्ष तक लापता रहे तो पत्नी को विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कराने का आधार प्राप्त हो जाता है। डिक्री पारित होने के छह माह बाद ही वह प्रभावी होगी। यदि छह माह में पति वापस आ जाता है और न्यायालय को संतुष्ट कर दे तब न्यायालय डिकी रद्द कर देगा।

ⅱ) पत्नी का भरण पोषण करने में असफलता– • यदि पति भरण पोषण करने में दो वर्ष से असफल रहा हो या उपेक्षा करता हो तो पत्नी विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने की हकदार है।

केस-फजल मोहम्मद बनाम उमातुररहीम– इस मामले में विवाह विच्छेद के लिए पत्नी का वाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि वह पति के प्रति वफादार और आज्ञाकारिणी नहीं थी।

iii) पति को कारावास– यदि पति को सात सात वर्ष या अधिक के कारावास का दंड दिया गया हो तब पत्नी विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती है लेकिन जब तक दण्ड का आदेश अंतिम न हो जाए और अपील भी खारिज हो गई हो।

iv) दाम्पत्य दायित्वो के पालन में असफलता– यदि । बिना उचित कारण के पति ने तीन वर्ष तक दाम्पत्य दायित्वो का पालन न किया हो तो पत्नी विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने की हकदार है।

केस- वीरनसेबू राठौर बनाम वीनाठम्मा– जहाँ पत्नी पति से दूर अपने पिता के घर रह रही है पति ने कभी यह कोशिश नहीं की कि वह उसके साथ दाम्पत्य जीवन गुजारे। इसका अर्थ है कि वैवाहिक दायित्वो को बिना युक्तियुक्त कारण के निर्वाह नहीं कर रहा था। पत्नी भरण पोषण की डिक्री की हकदार होगी।

v) पति की नपुंसकता– यदि पति विवाह के समय नपुंसक था तथा बाद में भी रहे तो पत्नी विवाह विच्छेद की डिकी की अधिकारी है। डिक्री पारित करने से पहले न्यायालय पति के आवेदन पर आदेश करेगा कि ऐसे आदेश के एक वर्ष के भीतर वह न्यायालय को आश्वस्त कर दे कि वह नपुंसक नहीं रहा है यदि ऐसा करता है तो विवाह विच्छेद की डिक्री नहीं पारित की जा सकती।

vi) पति का पागलपन – यदि पति दो वर्ष से पागल रहा हो या कुष्ठ रोग या उग्र रोग से पीड़ित हो (इसमें 2 वर्ष की शर्त आवश्यक नहीं है)

vii) पत्नी द्वारा विवाह की अस्वीकृति– यदि किसी स्त्री का विवाह पन्द्रह वर्ष से कम आयु में उसके संरक्षक द्वारा किया गया हो तो अट्ठारह वर्ष की आयु पूरी होने से पहले वह इस विवाह को अमान्य घोषित कर सकती है लेकिन इस विकल्प का तभी प्रयोग किया जा सकता है जब विवाह के बाद पति-पत्नी में समागम हुआ ना हो।

viii) पति की निर्दयता – यदि पति उसे अक्सर पीटता है या उससे ऐसी क्रूरता करता है जिससे उसका जीवन दुख में हो जाता है भले ही ऐसा व्यवहार शारीरिक दुव्यर्वहार न हो। इसमें शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार की क्रूरता शामिल है।

केस- इतवारी बनाम मुसम्मात असगरी :-पति ने पहली पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुर्नस्थापना का वाद दायर किया था क्योंकि पत्नी पति द्वारा दूसरी पत्नी लायी गयी थी। उच्च न्यायालय ने अपील खारिज करते हुए कहा कि पति को साबित करना चाहिए कि उसके द्वारा दूसरी पनी लाना पहले पत्नी का अपमान या निर्दयता नहीं है।

ix) अन्य आधार- इला, जिहार, खुला, मुबारत और तलाक ए तफ्वीज़ विवाह विच्छेद के आधार आधार है लेकिन लियॉन इन आधारों में शामिल नहीं है

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