दाम्पत्य अधिकारों का पुर्नस्थापन(Restitution of Conjugal Rights)
दाम्पत्य अधिकारों का पुर्नस्थापन–
मुस्लिम विधि में विवाह एक संविदा होती है दाम्पत्य अधिकारों के पुर्नस्थापन का दावा विवाह की शर्तों के पालन का दावा होता है।
जब विवाह का एक पक्षकार बिना वैध कारण के अपने को दूसरे पक्षकार के संपर्क से अलग कर दे तो पीड़ित पक्षकार दांपत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन का दावा कर सकता है।
जब मुकदमा पति द्वारा दायर किया जाए तो पत्नी आपत्ति कर सकती है–
1) विवाह की मान्यता– निकाह की घटना से इंकार कर सकती है।
केस- मुसम्मात बागबीबी बनाम कायमदीन (1934)-एक मुस्लिम स्त्री का विवाह इद्दत के दौरान एक मुस्लिम लड़के से हुआ। बाद में स्त्री ने लड़के को छोड़ दिया। लड़के ने दाम्पत्य अधिकारों की पुर्नस्थापन के लिए वाद दायर किया। न्यायालय ने विवाह को अनियमित माना क्योंकि मुस्लिम विधि में इद्दत के दौरान किया गया विवाह अनियमित होता है और दाम्पत्य अधिकारों की पुर्नस्थापन के लिए इंकार कर दिया।
2) कानूनी क्रूरता – इसके आधार-
i) पत्नी के विरुद्ध पर-पुरुषगमन का बिना आधार आरोप लगाना।
ii) पत्नी पर विभिन्न सिविल और दांडिक मुकदमा दायर करना।
iii) उग्र मारपीट
iv) पत्नी के लाभ के लिए विवाह के कर्तव्यो का पालन न करना।
v) पत्नी को अपनी सम्पत्ति अंतरण करने के लिए हस्ताक्षर कराने को मजबूर करना और इनकार करने पर मारना और गाली देना।
vi) तलाक का समझौता।
केस- इतवारी बनाम मुसम्मात असगरी :- पति द्वारा दूसरी पत्नी लाने पर पहली पत्नी को उसके साथ रहने को मजबूर करना क्रूरता है।
3) मुअज्जिल मेहर का भुगतान न करना– पति के द्वारा पत्नी के विरुद्ध दांपत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन के लिए लाया गया मुकदमा खारिज कर दिया जाएगा। लेकिन यदि पत्नी की सहमति से संभोग हो गया है तो पुनर्स्थापन का वाद असफल नहीं होगा बल्कि डिक्री इस शर्त के साथ पारित की जाएगी कि पत्नी को मुअज्जिल मेहर का भुगतान कर दिया जाए।
4) जाति बहिष्कार – जब पति को जाति से निकाल दिया गया हो तो पुनर्स्थापन की डिक्री देने से इनकार किया जा सकता है।
5) समझौता – दोनों के बीच अलग रहने का समझौता हो जाए।
केस- जैनुद्दीन बनाम लतीफुन्निसा:- पत्नी द्वारा पति की तरफ से खुद को तलाक देने के लिए विवाह से पहले किया गया समझौता पुनर्स्थापन के मुकदमे में अच्छा आधार होगा।
6) लियॉन और जिहार– जब पति और पत्नी का समागम अनुचित हो तो पुनर्स्थापन का मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता।
7) पति द्वारा धर्मत्याग करने पर।
8) विवाह की अस्वीकृति
9) पति की नपुंसकता
केस- अब्दुल कादिर बनाम सलीमा- इस मामले में पति ने पत्नी को मौखिक तलाक दे दिया इसके बाद लिखित तलाक भेज दिया और मेहर की रकम भी भेज दी। तथा फिर उसने पुनर्स्थापन का वाद दायर किया। न्यायालय ने वाद खारिज कर दिया।