• मामला :- BCR (Bar Council of Rajasthan) की अनुशासनात्मक समिति ने कौंसिल में Enrolled वकील द्वारा वकालत करने की बजाय चाय का व्यवसाय करने वाले को अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 35 का उल्लंघन माना है। वहीं ऐसा करने वाले दोषी वकील दुर्गा शंकर सैनी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए उसकी सदस्यता तीन साल के लिए रद्द कर दी है।
• समिति के अध्यक्ष रामप्रसाद सिंगारिया, सदस्य कपिल प्रकाश माथुर व सहवृत्त सदस्य महेन्द्र मीना ने यह आदेश रूपेश शर्मा के शिकायती प्रार्थना पत्र पर दिया। समिति ने दोषी वकील को निर्देश दिया कि वह एक महीने में जुर्माना राशि बीसीआर के अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा कराए, यदि जुर्माना जमा नहीं हुआ तो उसकी सदस्यता एक साल अतिरिक्त रद्द रहेगी। समिति ने कहा कि बेदखली जयपुर के मुकदमे में 2016 में अप्रार्थी ने अपने बयानों में कहा है कि वह लॉ ग्रेजुएट है, उसका एडवोकेट के तौर पर एनरोलमेंट है और वह जयपुर बार एसोसिएशन का मैंबर भी है, लेकिन वह वकालत नहीं करता बल्कि उसकी चाय की दुकान है, लेकिन 2021 में उसने जिरह में कहा कि वह लॉ ग्रेजुएट है, लेकिन उसने बीसीआर में एनरोलमेंट नहीं करा रखा। ऐसे में उसकी ओर से झूठ बोला गया और उसके दोनों बयान विरोधाभासी हैं। मामले के अनुसार, शिकायतकर्ता ने बीसीआर में दायर प्रार्थना पत्र में कहा था कि अप्रार्थी द्वारा अधिवक्ता व्यवसाय के विपरीत जाकर कोई अन्य कार्य किया जा रहा है। इससे अधिवक्ता की छवि धूमिल हो रही है। इसलिए विधि व्यवसाय के हितों का संरक्षण करते हुए तत्काल दुर्गा शंकर सैनी की सदस्यता रद्द कर उसका नाम अधिवक्ता सूची से निष्कासित किया जाए।
• नियम (Rules) :- भारत में अधिवक्ताओं को विज्ञापन की अनुमति प्रतिबंधित करने वाले प्रावधानः’द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 49 की उपधारा 1(c), ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ के अधिवक्ता के पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों पर नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है।
• बार काउंसिल ऑफ इंडिया (Bar Council of India) द्वारा निर्धारित किये गए अधिवक्ता के व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार मानक’ के खंड 4 की धारा 36 के अनुसार अधिवक्ता के व्यावसायिक आचरण संबंधी निम्नलिखित नियम बनाए गए हैं :-
• एक अधिवक्ता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विज्ञापन और व्यवसाय को लुभाने वाले कार्य नहीं करेगा चाहे उसका माध्यम सर्क्युलर, विज्ञापन, दलाल, व्यक्तिगत संचार ही क्यों न हो।
• कोई भी अधिवक्ता किसी अखबार की ऐसी टिप्पणियों तथा फोटोग्राफ का उपयोग नहीं करेगा, जिनका संबंध उस अधिवक्ता से जुड़े किसी मामले से हो। किसी भी अधिवक्ता के साइन बोर्ड या नेमप्लेट उचित आकर की होनी चाहिए तथा साइन बोर्ड, नेमप्लेट और लेखन सामग्री से यह संकेत नहीं मिलना चाहिये कि वह किसी बार काउंसिल या किसी एसोसिएशन का अध्यक्ष सदस्य है या वह किसी व्यक्ति तथा संस्था से किसी विशेष कारण के बिना जुड़ा हुआ है या वह कभी जज या महाधिवक्ता रहा है।
• अगर कोई अधिवक्ता इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उस अधिवक्ता पर द एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 35 के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। इस धारा के अनुसार, किसी भी राज्य की बार काउंसिल को यह अधिकार है कि यह किसी शिकायत को खारिज कर सकती है। साथ ही अधिवक्ता को फटकार लगाने के साथ-साथ उसे सीमित समय के लिये प्रैक्टिस से वंचित कर सकती है तथा उसका नाम राज्य की अधिवक्ता सूची से बाहर भी कर सकती है।
• BCI क्या है:- (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) बार काउंसिल ऑफ इंडिया भारतीय वकालत को विनियमित तथा प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत बनाया गया एक सांविधिक निकाय है।
• यह संस्था अधिवक्ताओं के लिये पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों को तय करती है तथा अपने अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके विनियमन करती है।
• यह संस्था कानूनी शिक्षा के मानक तय करती है तथा ऐसे विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करती है जिनके द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी डिग्री एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये योग्य होती है।
• यह संस्था अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और उनके हितों की रक्षा करती है तथा उनके लिये प्रारंभ की गई कल्याणकारी योजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये कोष का सृजन करती है।
• ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961:- The advocate act वर्ष 1961 में अधिनियमित हुआ था।
• इस अधिनियम के अंतर्गत बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिल की परिभाषा, स्थापना तथा उनके कार्यों तथा उनसे जुड़े अन्य प्रावधानों के बारे में चर्चा की गई है।
• इस अधिनियम में अधिवक्ता की परिभाषा तथा उसके विभिन्न स्तरों के बारे में चर्चा की गई है। यह अधिनियम अधिवक्ताओं के आचरण और योग्यताओं तथा निर्योग्यताओं के बारे में प्रावधान करता है।
• यह अधिनियम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल की सूची में नामांकन की विधि, एक सूची से दूसरी सूची में स्थानांतरण की विधि के बारे में चर्चा करता है।
• BCR क्या है :- बार काउंसिल ऑफ राजस्थान राजस्थान राज्य में कानून का अभ्यास करने वाले वकीलों के लिए वैध और वैधानिक प्रतिनिधि निकाय है। इसका गठन अधिनियम, 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनिवार्य आवश्यकता के अनुसार किया गया था। मार्च 1953 में, ‘ऑल इंडिया बार कमेटी’ के प्रमुख के रूप में एसआर दास ने अखिल भारतीय बार काउंसिल और राज्य स्तर पर बार काउंसिल के रूप में शीर्ष निकाय के निर्माण का प्रस्ताव रखा और भारत की केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी। बार काउंसिल के सदस्य राजस्थान राज्य में कानून का अभ्यास करने वाले वकीलों के रूप में नियुक्त और अभ्यास करने वाले सदस्यों में चुने जाते हैं और वे बार काउंसिल ऑफ इंडिया की बैठकों में राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी भी स्थान पर काउंसिल के सदस्यों द्वारा बनाए गए अनुशासनात्मक निर्देशों को लागू करने की शक्ति लिखी जाती है ।
• काउंसिल बार ऑफ राजस्थान का निर्णायक अधिनियम, 1961 की धारा 3 की आवश्यकता के अनुसार है जो भारत के प्रत्येक राज्य के लिए अपना बार काउंसिल का निर्माण करना अनिवार्य है।