अपकृत्य का वाद कौन नही ला सकता है-

आमतौर पर हर व्यक्ति अपकृत्य के लिए मुकदमा दायर सकता है लेकिन कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिन पर यह नियम पूरी तरह से लागू नहीं होता।

जो दावा करने में अक्षम माने जाते हैं-

1) दंडित अपराधी

2) विदेशी शत्रु

3) दिवालिया व्यक्ति

4) विदेशी राज्य तथा राजदूत

5) पागल व्यक्ति

6) सम्राट या सत्ताधारी

7) व्यवसाय संघ

8) निगम

9) शिशु

10) पति और पत्नी।

केस- सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1978)- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दंड किसी भी व्यक्ति को, व्यक्ति की श्रेणी से बाहर नहीं कर देता।

1) दंडित अपराधी – इंग्लैंड में दंड प्राप्त अपराधी अपनी संपत्ति को नुकसान के मामले में मुकदमा चलाने का अधिकारी नहीं था लेकिन यदि ऐसा कार्य उस व्यक्ति के विरुद्ध है तो वह नुकसानी का मुकदमा चलाने का अधिकारी था। भारतीय दंड संहिता की धारा 126, 127, 169 के अंतर्गत इन मामलों के सिवाय दंडित अपराधी अपने शरीर और संपत्ति दोनों के लिए क्षतिपूर्ति का मुकदमा चला सकता है।

2) विदेशी शत्रु- सामान्य नियम के अनुसार विदेशी शत्रु अंग्रेजी कानून में अपकृत्य का मुकदमा नहीं चला सकता। भारतीय कानून में विदेशी शत्रु सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 83 के अंतर्गत भारत सरकार की अनुमति प्राप्त करने के बाद ही मुकदमा चला सकता है।केस- स्कॉटलैंड बनाम साउथ अफ्रीकन टेरिटरीज- विदेशी शत्रु उस व्यक्ति को कहते है जो शत्रु राष्ट्र का निवासी है भले ही उसकी राष्ट्रीयता किसी अन्य देश की क्यों ना हो।

3) दिवालिया व्यक्ति – अपनी संपत्ति के प्रति किए गए अपकृत्य के लिए नुकसानी का मुकदमा चलाने के अयोग्य माना जाता है क्योंकि दिवालिया व्यक्ति अपनी संपत्ति का स्वामी नहीं रह जाता। भारतीय विधि के अनुसार दिवालिया की संपत्ति रिसीवर में निहित हो जाती है और उस संपत्ति के अपकृत्य के लिए मुकदमा लाने का अधिकार भी रिसीवर का ही होता है।

केस- वैकहम बनाम ड्रेक (1849)- यदि दिवालिया व्यक्ति के विरुद्ध प्रहार या मानहानि आदि किया जाए तो वह मुकदमा चलाने का अधिकारी होता है।

4) विदेशी राज्य तथा राजदूत– अपकृत्य में कोई ई भी विदेशी राज्य भारत में किसी भी न्यायालय में नुकसानी का मुकदमा तब तक नहीं चला सकता जब तक कि भारत सरकार ऐसे राज्य को मान्यता न दे दे।

5) पागल व्यक्ति – पागलपन का बचाव केवल उन मामलों में मिलता है जहां व्यक्ति अपने पागलपन के कारण, आशय, ज्ञान और द्वेष आदि से अनजान होता है। कानूनी सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति केवल उन्हीं कार्यों के परिणाम के लिए जिम्मेदार होता है जिसे करते समय वह परिणाम को जानता हो।

6) पति और पत्नी– विवाहिता स्त्री का पति जब तक उसके साथ ना हो वह मुकदमा नहीं चला सकती थी लेकिन विवाहित स्त्री के संपत्ति अधिकार अधिनियम 1982 में विवाहित स्त्री को अपनी निजी संपत्ति के नुकसान के लिए मुकदमा चलाने का अधिकार दिया गया लेकिन शारीरिक नुकसान के लिए नहीं। इसके पश्चात विधि सुधार (विवाहित स्त्री एवं अपकृत्यकर्ता) अधिनियम 1935 पारित किया गया, जिसमें पति या पत्नी अकेले वाद दायर कर सकते हैं। भारतीय विधि में पति तथा पत्नी दोनो, वह एक दूसरे के विरुद्ध अपकृत्य के लिए मुकदमा चला सकते हैं।

7) शिशु– शिशु की दो स्थितियां हो सकती है-

1) माता के गर्भ में होने पर

2) नाबालिग स्थिति में।

केस- वाकर बनाम ग्रेट नॉर्दर्न रेलवे (1890)- इस मामले में माता एक रेलवे दुर्घटना में घायल हो गई थी इसीलिए बच्चा बदशक्ल पैदा हुआ। शिशु ने रेलवे कंपनी के खिलाफ मुकदमा दायर किया, न्यायालय ने कहा कि ऐसे नुकसान के लिए शिशु मुकदमा दायर नहीं कर सकता था।लेकिन कॉनजेनिटल डिसेबिलिटीज (सिविल लायबिलिटी) एक्ट 1976 में महत्वपूर्ण संशोधन किया गया जिसमें कोई भी व्यक्ति जो बच्चे के मां-बाप को प्रभावित करने वाली घटना के लिए जिम्मेदार है जिससे बच्चा विकलांग पैदा होता है, वह बच्चे के लिए जिम्मेदार होगा।

केस- मॉन्ट्रियल ट्रामवेज़ एंड कंपनी बनाम लेविले (1933)– न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों की उपेक्षा से चोट खाकर संपत्ति और ख्याति के नुकसान के लिए भी शिशु जन्म के बाद मुकदमा दायर कर सकता है।

8) निगम– यह एक कानूनी व्यक्ति है, जिसके कर्तव्य और अधिकार, उन व्यक्तियों से अलग होते हैं जिनसे मिलकर निगम बनता है। अपकृत्य के अंतर्गत निगम व्यक्तिगत नुकसान के लिए मुकदमा नहीं चला सकता जैसे-हमला, क्योंकि ऐसे कार्य केवल मनुष्य द्वारा ही किया जा सकते हैं, लेकिन मानहानि के लेख जिसमें निगम की संपत्ति या व्यवसाय को नुकसान पहुंचा हो, उसके लिए निगम मुकदमा चला सकता है।

9) व्यवसाय संघ – भारतीय व्यवसाय संघ अधिनियम 1926 के अनुसार पंजीकृत व्यवसाय संघ पर या उसके सदस्यों ने वादी को किसी प्रकार की हानि पहुंचाई है तो उनके विरुद्ध किसी प्रकार के कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती।

केस- रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम स्टाफ यूनियन (1976)- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के अंतर्गत कर्मकार से क्षतिपूर्ति की मांग नहीं की जा सकती है

10) सम्राट या सत्ताधारी– अंग्रेजी विधि के अनुसार “राजा कोई गलती नहीं करता” इस सूत्र का अर्थ है कि सम्राट को किसी अपकृत्य या आपराधिक कार्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुसार भारत का राष्ट्रपति, राज्यपाल अपने पद की शक्तियों के प्रयोग में किए गए कार्य के लिए किसी न्यायालय में जिम्मेदार नहीं होगा।

केस- राजस्थान राज्य बनाम विद्यावती (1962)- अपने पति की सरकारी गाड़ी के ड्राइवर की असावधानी से हुई मृत्यु के लिए महिला को क्षतिपूर्ति दिलवाई गई।

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