सुन्नी सम्प्रदाय

:-सुन्नी संप्रदाय मुक्ता विवाह में विश्वास नहीं करता है यह इसे वेश्यावृत्ति मानता है।

:-सुन्नी संप्रदाय में विधि मान्य विवाह के लिए विवाह के समय दो पुरुष या एक पुरुष एवं दो स्त्री साक्षियों की उपस्थिति आवश्यक है।

:-सुन्नी संप्रदाय में मैहर की न्यूनतम राशि 10 दिरहम निश्चित है और अधिकतम राशि निर्धारित नहीं है।

:-सुन्नी संप्रदाय में तलाक के समय साथियों की आवश्यकता नहीं है।

:-सुन्नी संप्रदाय में तलाक लिखित या मौखिक में हो सकता है।

:-सुन्नी विधि (संप्रदायों) में संपत्ति के विभाजित हिस्से (मूसा) का दान ही (हिबा) अवैध माना जाता है।

:-सुन्नी संप्रदाय के अंतर्गत जीवित व्यक्तियों के बीच विधि मान्य वक्फ के लिए संपत्ति के स्वामी की घोषणा मात्र पर्याप्त है।

:-सुन्नी विधि के अंतर्गत किसी एक वारिस के पक्ष में वसीयत केवल तभी की जा सकती है जबकि अन्य वारिस अपनी सम्मति प्रदान कर दे।

:-सुन्नी संप्रदाय में तीन प्रकार के वारिसों को मान्यता प्रदान की गई है- हिस्सेदार, अवशिष्ट दूरस्थ रक्त संबंधी।

:-सुन्नी विधि में बच्चे का मातृत्व है उस स्त्री में निहित रहता है जो उसे जन्म देती है चाहे ऐसे बच्चों का जन्म संभोग द्वारा हुआ हो या अवैध संभोग द्वारा।

:-सुन्नी विधि में हकशफा का दावा दो से अधिक सहवास मियों द्वारा एक साथ किया जा सकता है।

शिया सम्प्रदाय

:-शिया सम्प्रदाय में मुत्ता विवाह प्रचलित है और ऐसे विवाह से उत्पन्न सन्तान को वैध माना जाता है।

:-शिया सम्प्रदाय में ऐसे साक्षियों की उपस्थिति विवाह के समय नहीं, बल्कि विवाह विच्छेद के समय आवश्यक है।

:-शिया सम्प्रदाय में महर की न्यूनतम राशि निर्धारित होकर अधिकतम राशि 500 दिरहम निर्धारित है।(4) शिया सम्प्रदाय में तलाक के समय दो साक्षियों की उपस्थिति आवश्यक मानी गई है ।

:-शिया सम्प्रदाय में तलाक सदैव मौखिक ही होता है।

:-शिया विधि (सम्प्रदाय) में मुशा कादान सदैव वैध माना जाता है चाहे सम्पत्ति विभाजन योग्य हो या नहीं।

:-शिया सम्प्रदाय में घोषणा के साथ- साथ सम्पत्ति के कब्जे का परिदान भी आवश्यक है।

:- शिया सम्प्रदाय में अन्य वारिसों की सम्मति आवश्यक नहीं है।

:-शिया विधि में हक़शफा का दावा करने का अधिकार दो सह-स्वामियाओं तक ही सीमित है।

:- शिया विधि अर्थात् सम्प्रदाय में केवल दो प्रकार के वारिसों को ही मान्यता प्रदान की गई है-हिस्सेदार एवं अवशिष्ट ।

:- शिया विधि में किसी स्त्री के पति द्वारा सन्तान का पिता होने से अस्वीकार कर दिये जाने पर अविवाहित स्त्री के संभोग से उत्पन्न सन्तान की कोई माता नहीं मानी जाती जबकि विवाहित स्त्री के साथ संभोग उत्पन्न सन्तान का मातृत्व उस स्त्री में निहित माना जाता है।

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