बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ और अन्य (AIR 1984 SC 8029) बैंच में न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती, आर.एस.पाठक एवं ए. एन. सेन थे।
बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ मामला मूलतः एक जनहित याचिका का मामला था। सुप्रीम कोर्ट ने बाल श्रम को खत्म करने के प्रयास में कालीन व्यवसाय द्वारा बाल श्रम के उपयोग को निपटाने, 14 वर्ष से कम उम्र के बाल श्रम को प्रतिबंधित करने वाले सरकारी सहायता आदेश जारी करने और बच्चों को शिक्षा और कल्याण कार्यालयों में प्रवेश देने के लिए हरियाणा राज्य को समन्वयित किया।
• मामले के तथ्य :- बन्धुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ एवं अन्य, के मामले में पिटीशनर एक संगठन, जो देश के बन्धुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए कटिबद्ध था, उसने दिल्ली शहर के नजदीक फरीदाबाद जिले में पत्थर की खदानों का सर्वेक्षण किया तथा पाया कि विशाल संख्या में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान से आये मजदूर अमानवीय एवं असहनीय दशाओं में काम कर रहे हैं, तथा उनमें से अनेक श्रमिकों को बन्धुआ मजदूर बनाया हुआ था। अतः पिटीशनर ने दिनांक 25 फरवरी, 1982 को उच्च्चतम न्यायालय को एक पत्र प्रेषित किया, जिसमें उसने इंगित किया कि श्री एस. एल. शर्मा ने गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ, पोस्ट अमर नगर, फरीदाबाद जिले में खान में कार्यरत मजदूरों को पिछले 10 वर्ष से बन्धुआ को घटिया हालत में डाल रखा है। पिटीशनर ने पत्र के साथ बन्धुआ मजदूरों की अंगूठा निशानी या हस्ताक्षरयुक्त मूल कथनों को भी संलग्न किया। पिटीशनर ने बताया कि बन्धुआ मजदूर बनाए जाने के अलावा वहाँ पर खानों में काम करते हुए पहाड़ों को तोड़ने हेतु बारूद को काम लाते समय या पत्थरों की पिसाई का कार्य करते समय दुर्घटना के कारण असंख्य मामलों में गम्भीर एवं घातक चोटें पहुँची हैं। पत्थरों के पीसने के कार्य से अनेक श्रमिकों के मूल्यवान अंग ट्यूबरक्यूलोसिस के कारण नष्ट हो गए हैं तथा अन्य बीमारियों के कारण अन्य श्रमिकों के अस्थिपंजर रह गए हैं। कार्यरत मजदूरों को किसी तरह की चिकित्सीय सेवा नहीं दी जाती तथा उनकी मृत्यु अथवा क्षति होने पर प्रतिकर नहीं दिया जाता। खान अधिनियम के अन्तर्गत सुरक्षा नियमों के उल्लघंन करने पर कोई मामला दर्ज नहीं किया जाता। अधिकांश मजदूर जो इन खानों में कार्य कर रहे हैं वे राजस्थान, मध्यप्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र एव बिहार राज्य के सूखाग्रस्त क्षेत्रों से प्रवास करके आये हैं। इन खानों में अन्तर्राज्यिक प्रवासी कार्यकार (नियोजन का विनियमन और सेवा शर्त) अधिनियम, 1979 के प्रावधानों का उल्लंघन किया जा रहा है, क्योंकि उनके आवास की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, बर्फीली हवाओं, सर्दियों में बरसात अथवा गर्मियों की चिलचिलाती हुई धूप से बचाव के लिए कोई छप्पर तक उपलब्ध नहीं कराया है। वे थोड़े से कपड़ों से, अत्यन्त अशुद्ध तथा बारिश से इकट्ठे हुए पानी को पीने के लिए मजबूर हैं, जहाँ बच्चों की देखभाल तथा उनके स्कूल की कोई सुविधा नहीं है, वे प्रकृति के सभी संकटों को झेलते हुए, दुर्व्यवहार को सहन करने वाले हजारों भारत माता के बेटी, बेटे दीन-हीन अवस्था में कार्य करते हैं। पिटीशनर ने बताया कि सबसे ज्यादा खानों में काम करने वाले गरीब व्यक्तियों का शोषण ठेकेदारों द्वारा किया जाता है, जो उनके वेतन का 30 प्रतिशत कमीशन के रूप में लेते हैं। पहाड़ियों पर शराब की वैध और अवैध बिक्री की जाती है, जहाँ स्त्रियों की हत्या एवं पीड़ा पहुँचाना अत्यन्त सामान्य है। पिटीशनर ने संविधान एवं विधि के अनेक प्रावधानों का हवाला दिया, जिन्हें पत्थर खदान में कार्य कर रहे मजदूरों के सम्बन्ध में पालना नहीं की जा रही तथा उन्हें अमल में नहीं लाया जा रहा है। पिटीशनर ने अन्त में न्यायालय से प्रार्थना की कि इन सांविधानिक एवं कानूनी प्रावधानों को अमल में लाने के लिए याचिका जारी की जाए ताकि इन अत्यन्त अमानवीय शोषण के शिकार बने असहाय, पीड़ित तथा श्रमिकों का दुःख खत्म हो सके।
पिटीशनर द्वारा 25 फरवरी, 1982 को भेज गए पत्र को याचिका माना गया तथा 26 फरवरी, 1982के एक आदेश द्वारा उच्चतम न्यायालय ने याचिका के आधार पर नोटिस जारी किए तथा दो अधिवक्ता श्री अशोक श्रीवास्तव तथा अशोक पण्डा को श्री एल.एल. शर्मा की गोधोखोर (अनंगपुर) तथा लक्करपुर, जो फरीदाबाद जिले में स्थित पत्थर की खदान का निरीक्षण करने हेतु कमीशन नियुक्त किया तथा पिटीशनर द्वारा पन्न में बताये गये नाम वाले प्रत्येक व्यक्ति से साक्षात्कार करने तथा अन्य श्रमिकों से वार्तालाप करने हेतु नियुक्त किया, ताकि यह ज्ञात हो सके कि क्या वे पत्थर खदान में कार्य करने में इच्छुक है तथा यह जाँच की जा सके कि वे किन दशाओं में कार्य कर रहे हैं। श्री अशोक श्रीवास्तव तथा अशोक पण्डा को निर्देश दिया कि वे इन खानों का निरीक्षण 27 व 28 फरवरी, 1982 को करें तथा न्यायालय को 2 मार्च, 1982 या इससे पहले रिपोर्ट दे दें। अतः इन्होंने न्यायालय के निर्देशानुसार 2 मार्च, 1982 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। गोधोखोर पत्थर खदान के बारे में बताया गया कि अनेक पत्थर पिसाई की मशीनें काम में ली जा रही हैं, जिसके कारण सारा वातावरण धूल धूसरित हो रहा है, यहाँ तक कि श्वास लेना भी मुश्किल है। अनेक श्रमिकों का कहना था कि उन्हें पत्थर खदान से बाहर नहीं जाने दिया जाता तथा उन्हें बलात्श्रम (Forced Labour) बनाया हुआ है, उन्हें अधिकांश मामलों में नाले के गन्दे पानी को पीने के लिए मजबूर किया जाता है, तथा वे लोग पत्थर की बनी झुग्गियों में रहते हैं, जिन्हें हल्के फुल्के घासफूस से ढका जाता है, जिनमें सूरज की रोशनी या बारिश होने पर कोई संरक्षण नहीं है, तथा वे इतनी नीची हैं, कि मुश्किल से ही कोई व्यक्ति खड़ा हो सकता है। अनेक श्रमिकों को नियोजन के दौरान दुर्घटना के कारण अनेक प्रकार की चोटें आ जाती हैं, तो उन्हें कोई प्रतिकर नहीं दिया जाता, कुछ श्रमिक ट्यूबरक्यूलोसिस से ग्रसित हैं। चिकित्सा व्यवस्था की कोई सुविधा उन्हें नहीं दी जाती, न ही उनके बच्चों के लिए स्कूल की कोई व्यवस्था है। रिपोर्ट में बताया गया कि गोधोखोर की खान नं. 8 में पत्थर खदान करने वाले मजदूर झुग्गियों में अत्यन्त खराब स्थिति में हैं, जो घास-फूस से बनायी गयी है, अधिकांश झुग्गियों में काम करने वाले श्रमिकों के पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं तथा वे सर्दी से ठिठुरते रहते हैं तथा छोटे बच्चे बिना उपयुक्त कपड़ों के घूमते रहते हैं। झुग्गी में रहने वाले व्यक्ति के पास कोई कम्बल या ऊनी कपड़े नहीं हैं तथा न उनके पास कोई चटाई है, जिस पर वे सो सके। मजदूर हैं, जिन्हें पत्थर की खदान से बाहर नहीं जाने दिया जाता। चोट कारित होने पर उन्हें प्रतिकर नहीं दिया जाता। पत्थरों के खदान में काम करने वाले श्रमिकों को काफी कम वेतन मिलता है, क्योंकि विस्फोटकों को उनके द्वारा स्वयं के पैसे से खरीदा जाता है तथा ड्रिलिंग द्वारा छेद करने का खर्चा उनके द्वारा उठाया जाता है।
रिपोर्ट में बताया गया कि लक्करपुर पत्थर खदान में 250 श्रमिक कार्य करते हैं। बिलासपुर से आये 100 श्रमिकों ने बताया कि उन्हें ठेकेदारों द्वारा जबरदस्ती पत्थर खदान के स्थान पर रखा जाता है तथा उन्हें बाहर नहीं जाने दिया जाता तथा वे बन्धुआ मजदूर हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि श्रमिक लोग धनवान लोगों के हाथों में असहाय स्थिति में गरीबी तथा घोर शोषण के शिकार बने हुए हैं।, तथा अत्यन्त दुःखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं, शायद बोझा ढोने वाले पशु अथवा जानवर इन असहाय श्रमिकों से ज्यादा सुविधाजनक जीवन व्यतीत करते हों।
इसके बाद रिट पिटीशन 25 मार्च, 1982 को सुनवाई के लिए न्यायालय में आया, तब पिटीशनर ने दूसरा पिटीशन दूसरे बन्धुआ मजदूरों को मुक्त कराने के लिए दायर किया। न्यायालय ने इस दिन मैसर्स अशोक श्रीवास्तव एवं अशोक पण्डा की रिपोर्ट की प्रतिलिपि सभी खान पट्टाधारी व पत्थर पीसने वाले मालिकों को जो इस पिटीशन में रेस्पोन्डेन्ट्स हैं उन्हें सप्लाई करने के निर्देश दिए ताकि वे रिपोर्ट का जवाब दे सकें। न्यायालय ने आई.आई.टी. के डॉ. पटवर्धन को सामाजिक एवं विधिक जाँच करने हेतु नियुक्त किया ताकि वे यह जाँच कर सुनिश्चित कर सकें कि फरीदाबाद जिले में अनेक खदान के कार्यों में कार्यरत श्रमिकों की कार्य दशाएँ कैसी हैं तथा क्या खदान में श्रमिकों को उनकी इच्छा के विरुद्ध तथा उनकी सहमति बिना काम पर लगाया हुआ है, उनके रहने की क्या दशाएँ हैं? क्या बन्धित श्रम पद्धति (उत्पादन) अधिनियम, 1976 तथा अन्तर्राज्यीय प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा शर्त) अधिनियम, 1979 के प्रावधानों का उल्लंघन किया जा रहा है। संक्षेप में डॉ. पटवर्धन को सामाजिक-विधिक अन्वेषण का कार्य इसलिए दिया गया था कि वह पत्थर खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों की रहन-सहन की दशाओं के सुधार हेतु योजना प्रस्तुत करें तथा उनके द्वारा योजना को प्रस्तुत करने के उपरान्त पक्षकारों को सुनने के उपरान्त हरियाणा राज्य की सहायता से योजना अन्तिम रूप से तैयार की जायेगी ताकि इन श्रमिकों की पुनः आर्थिक स्थिति अच्छी बन पाये। पटवर्धन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पट्टाधारी अथवा पत्थर पीसने वाले श्रमिकों की भर्ती के लिए ठेकेदार या खान के जमादार को खान में काम करने के लिए अनेक राज्यों से व्यक्तियों को लाने के लिए कहते हैं तथा कभी-कभी जमादार या ठेकेदार खदान में कार्य करने वाले पुराने श्रमिकों का श्रमिकों की आवश्यकता के बारे में संदेश देते हैं ताकि वे अपने गाँव से लौटते समय अपने साथ व्यक्तियों को लेते आयें। पटवर्धन ने रिपोर्ट में बताया कि ठेकेदार अथवा जमादार एवं पत्थर पीसने का काम करने वाले मालिक के बीच आपसी समझ है कि कितनी तादाद में पत्थर घिसाई का लक्ष्य प्राप्त करना है, अतः वे ठेकेदार हैं तथा उनके द्वारा लगाये गये श्रमिक अन्तर्राज्यीय प्रवासी मजदूर हैं। अतः उनको अनेक श्रमिक विधियों के तहत उपलब्ध लाभों से वंचित किया जा रहा है जैसे कर्मकार प्रतिकर अधिनियम 1923, मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952, मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 आदि। डॉ. पटवर्धन रिपोर्ट में बताया गया कि पत्थर खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों से न केवल पत्थर खदान का काम लिया जाता है, वरन् उनसे गोली मारकर अग्नि प्रज्ज्वलित करने का कार्य भी करवाया जाता है, जो बिना प्रशिक्षण के नहीं करवाया जा सकता, जिसके लिए न्यूनतम मजदूरी के अलावा अलग से वेतन दिया जाना चाहिए जो नहीं दिया जाता है। रिपोर्ट में कहा कि श्रमिकों को शुद्ध पीने योग्य जल उपलब्ध नहीं कराया जाता है। श्रमिकों की स्त्रियाँ अथवा बच्चे सामान्यतः दूरस्थ स्थानों से ट्यूबवैल का पानी लाने के लिए लगाये जाते हैं। जमादार या ठेकेदार ने श्रमिकों के लिए पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं की है, न केन्द्रीय सरकारी अधिकारियों या राज्य सरकार ने शुद्ध पीने योग्य पानी के प्रावधानों को प्रवर्तित करने के लिए कोई चिन्ता की है, जबकि कान्ट्रेक्ट लेबर एक्ट एवं इन्टर स्टेट माइग्रेन्ट वर्कमैन एक्ट में यह स्पष्ट प्रावधान है कि खान अधिनियम की धारा 19 व खान नियम 1955 के नियम 30 से 32 के तहत खान पट्टा ग्रहीता तथा पत्थर पीसने वाले, उपयुक्त स्थान पर ठण्डा व शुद्ध पेय योग्य जल की व्यवस्था करेंगे। रिपोर्ट में बताया गया कि श्रमिकों के लिए शौचालय आदि की व्यवस्था का नितान्त अभाव है, व्यक्ति खुले पहाड़ी, गड्ढों में शौचालय जाते हैं तथा खुले में शौच करते हैं, केवल आँखों को फेरकर पर्दे का काम लेते हैं। रिपोर्टों में बताया गया कि पत्थर खदान व पत्थरों की पिसाई के कार्य में लगाये गये श्रमिकों को चिकित्सीय अथवा प्राथमिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई है।
• रेस्पोन्डेन्ट के तर्क :- हरियाणा राज्य की ओर से विद्वान अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल तथा एक खान के पट्टाग्रहीता की ओर से मिस्टर फड़के ने प्रतिवाद किया कि यदि पत्र में पिटीशनर ने जो भी कहा है उसे रिट पिटीशन मान भी लिया जाए तो भी संविधान के अनुच्छेद 32 के द्वारा समर्थन नहीं किया जा सकता, क्योंकि न तो पिटीशनर या न ही उन कर्मचारियों के जिनकी ओर से याचिका लाई गई है, उनके किसी मौलिक अधिकार का हनन किया गया है। दूसरी प्रारम्भिक आपत्ति अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल एवं फड़के ने उठाई कि न्यायालय को अशोक श्रीवास्तव तथा अशोक पण्डा या पटवर्धन को कमीशन के रूप में नियुक्त करने की शक्ति नहीं है, तथा उनके द्वारा जो प्रतिवेदन तैयार किया गया है, उसकी कोई साक्षीय अहमियत नहीं है क्योंकि जो प्रतिवेदन तैयार किया गया है वह एकतरफा कथन है, जिसे प्रति परीक्षा द्वारा जाँचा नहीं गया है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के नियम 1966 के आदेश XIVI को आधार बनाते हुए कहा कि न्यायालय द्वारा नियुक्त कमीशन आदेश XIVI के प्रावधानों में वर्णित कमीशन की श्रेणी में नहीं आते, अतः न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर है, तथा न्यायालय इनके द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन को रिट पिटीशन से उत्पन्न मामलों के न्याय निर्णयन हेतु काम में नहीं ले सकती। अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल ने हरियाणा राज्य की ओर से बोलते हुए कहा कि पत्थर खदान तथा पत्थर पीसने के स्थानों पर बलात् श्रमिक हो सकते हैं, लेकिन वे अधिनियम के अन्तर्गत बन्धुआ मजदूर नहीं है, क्योंकि कोई श्रमिक बन्धुआ मजदूर तभी होगा जब उसने बन्धुआ ऋण लिया हो, लेकिन विद्यमान मामले में ऐसा कुछ नहीं है तथा राज्य सरकार को उनका पुनर्निवास करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। भारत सरकार की ओर से मिस सुभाषिनी का कहना है कि पत्थर खदान एवं पत्थर पिसाई में काम करने वाले श्रमिक अपनी स्वेच्छा से आ रहे हैं, उन्हें किसी एजेन्ट ने किसी राज्य से प्रवास करने हेतु भर्ती नहीं किया जा रहा है।
• उच्चतम न्यायालय के सामने विचारणीय प्रश्न
(1) रेस्पोन्डेन्ट्स द्वारा प्रथम प्रारम्भिक आपत्ति यह उठायी गई कि पिटीशनर द्वारा दायर किए गए पिटीशन को अनुच्छेद 32 द्वारा अनुसमर्थन किया जा सकता है, अथवा नहीं? क्या पिटीशनर के अथवा उन श्रमिकों के, जिनकी ओर से पिटीशनर दायर किया गया है, उनके किसी मौलिक अधिकार का हनन किया गया है। द्वितीय प्रारम्भिक आपत्ति रेस्पोन्डेन्ट्स की ओर से यह उठाई गई कि न्यायालय को कमीशन नियुक्त करने की शक्ति नहीं थी।
(2) उच्चतम न्यायालय के सामने विचारणीय बिन्दु था कि पत्थर खदान एवं पत्थर के पीसने के काम में लाये जाने वाले श्रमिक की रहने तथा कार्य करने की दशाओं से संबंधित कौनसे श्रमिक कानून हैं, तथा क्या उनका उल्लंघन किया जा रहा है? एवं कैसे संबंधित श्रमिक विधियों को कार्यान्वित किया जाए?
(3) क्या पत्थर खदान एवं पत्थर पीसने के कार्य में लगाये गये श्रमिक बन्धुआ मजदूर हैं? यदि वे बन्धुआ मजदूर हैं, तो किस प्रकार उनकी पहिचान, मुक्ति एवं पुनर्निवास किया जाये?
• निर्णय :- उच्चतम न्यायालय ने प्रथम प्राथमिक आक्षेप के सम्बन्ध में संप्रेक्षित किया कि खान पट्टेदार द्वारा पिटीशन का किसी आधार पर विरोध करना एक बार को फिर भी उचित माना जा सकता है, लेकिन राज्य द्वारा रिट के जवाब में इस प्रकार का प्राथमिक आक्षेप उठाना कि पिटीशन को अनुच्छेद 32 के तहत रिट नहीं माना जाना चाहिए, यह कहना बिल्कुल निरर्थक है। यदि कोई पिटीशन बहुसख्यक वर्ग के बन्धुआ बनाये जाने से सम्बन्धित लाया जाता है, जहाँ श्रमिकों का शोषण कुछ खान पट्टेदार या ठेकेदारों या मालिक द्वारा किया जा रहा है, उन्हें सामाजिक कल्याणकारी विधियों से वंचित किया जा रहा है, वहाँ राज्य सरकार को जिस पर यह भार डाला गया कि वह नयी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था लाये जहाँ सामाजिक न्याय स्तर एवं अवसर की समानता सभी व्यक्तियों का समान रूप से उपलब्ध हो, ऐसी स्थिति में राज्य को न्यायालय द्वारा बन्धुआ मजदूरों से सम्बन्धित जाँच को स्वागत करना चाहिए तथा उनके गिरे हुए जीवन स्तर के उत्थान हेतु कदम उठाने चाहिए। सरकार एवं उसके अधिकारियों को लोकहित मुकदमा का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें अवसर प्रदान करेगा कि वे यह जाँच कर सकें कि गरीब व पिछड़े लोगों को उनके सामाजिक एवं आर्थिक हक मिल रहे हैं या वे समाज के मजबूत एवं शक्तिशाली वर्ग के हाथ में धोखे एवं शोषण के शिकार बने हुए हैं। न्यायालय केवल साविधानिक उद्देश्यों को महसूस कराने में मदद कर रही है। हरियाणा राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खान पट्टेदार अथवा ठेकेदार जिन्हें खान, पत्थरों के खदान हेतु दी जाती है, उनके द्वारा अनेक सामाजिक कल्याणकारी एवं श्रमिक विधियों को, जिन्हें कर्मकार के लाभ हेतु अधिनियमित किया गया है, उनकी अनुपालना करनी चाहिए। यह सांविधानिक उत्तरदायित्व है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत केन्द्रीय सरकार एवं हरियाणा राज्य के विरुद्ध प्रवर्तित करवाया जा सकता है।
न्यायालय द्वारा कमीशनों की नियुक्ति सम्बन्धी प्राथमिक आक्षेप के बारे में न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 32 अधिवक्ताओं एवं न्यायाधीशों द्वारा मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन हेतु अक्सर प्रयोग में लिया जाता है तथा इसके बारे में कोई आपत्ति राज्य द्वारा नहीं उठायी जाती। न्यायालय ने कहा अनुच्छेद 32 का निर्वचन करने के लिए हमें इसके महत्त्वपूर्ण उद्देश्य एवं लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए कि क्यों इस अनुच्छेद को मौलिक अधिकार के रूप में अधिनियमित किया गया है। इसके निर्वचन हेतु संविधान के तीन प्रमुख प्रावधानों प्रस्तावना, मौलिक अधिकार एवं राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों की सहायता लेनी चाहिए। अनुच्छेद 32 (1) की भाषा से स्पष्ट है कि जब भी किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया जाता है, कोई भी व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में ऐसे मौलिक अधिकार के प्रवर्तन हेतु जा सकता है। साधारणतः जिस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है, उसे ही न्यायालय में मौलिक अधिकार के प्रवर्तन हेतु आना चाहिए, लेकिन यह न्यायालय की शक्ति है कि यदि वह स्वयं न आकर अन्य कोई व्यक्ति उसके मौलिक अधिकार के उल्लंघन होने पर, प्रवर्तन कराने के लिए आता है, तो न्यायालय उसे सुने जाने का अधिकार देगी। संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन हेतु कोई विशेष प्रकार की कार्यवाहियों को निर्धारित नहीं किया है और न ही उन्होंने यह निश्चित किया है कि ऐसी कार्यवाहियों को किसी कठोर तरीके को अपनाना चाहिए या बिल्कुल सीधा फार्मूला न्यायालय तक जाने का तय नहीं किया है जैसा इग्लैण्ड में है। न्यायालय ने कहा कि कार्यवाहियों के लिए मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन हेतु किसी कठोर फार्मूला के लिए दबाव डालना स्वयं में उपाय को परास्त करने वाली साबित होगी।’ न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार के प्रवर्तन सम्बन्धी वृहद शक्ति दिया जाना यह प्रदर्शित करता है कि संविधान निर्माताओं की मंशा यह थी कि इसके रास्ते में मौलिक अधिकारों के प्रवर्तित करते समय किसी प्रकार की प्रक्रियात्मक औपचारिकता की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि गरीब एव अलाभप्रद स्थिति वाले लोग संभवतया अपने समर्थन में सुसंगत सामग्री नहीं जुटा सकते तथा न ही ऐसे व्यक्ति के लिए यह संभव है जो दूसरों के अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए पिटीशन न्यायालय में लाया है कि वह सुसगत सामग्री इकट्ठी करे तथा न्यायालय के सामने प्रस्तुत करे। अतः इस कारण उच्चतम न्यायालय ने ऐसे मामलों में कमीशन नियुक्त करने की प्रवृत्ति को विकसित किया है ताकि वे आवश्यक सामग्री इकट्ठी कर सकें। उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि जब कभी भी यह प्रतीत होता है कि श्रमिकों से बलात् श्रम लिया गया है, न्यायालय की यह अवधारणा होगी कि उसे ऐसा करने के लिए अग्रिम राशि के एवज में अथवा अन्य आर्थिक प्रतिफल प्राप्त करने के एवज में रखा गया है। अतः वह बंधित श्रमिक है एवं अधिनियम के प्रावधानों का लाभ प्राप्त करने के योग्य है। राज्य सरकार को उसके द्वारा बंधित श्रमिक की पहचान करने, मुक्त कराने तथा पुनर्निवास के दायित्व को पूरा करने से मना करने की अनुमति इस दलील पर नहीं दी जा सकती कि यद्यपि श्रमिकों से बलात् श्रम लिया गया हो, लेकिन राज्य को तब तक जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि न्यायिक व्यवस्था के नियम के तहत विधिक कार्यवाहियों में यह साबित न कर दिया जाए कि वे बंधित श्रमिक हैं।
• न्यायालय द्वारा निर्देश :- उच्चतम न्यायालय ने पत्थर खदान एवं पत्थर पीसने के कार्य पर लगे श्रमिकों से सम्बन्धित अनेक श्रमिक विधानों का अध्ययन किया तथा पाया कि अनेक श्रमिक विधानों का उल्लंघन किया जा रहा है, अतः न्यायालय ने प्राधिकारियों को निम्नलिखित निर्देश जारी किए –
1. हरियाणा राज्य इस निर्णय में दिए गए दिशा निर्देशों को ध्यान में रखते हुए बंधित श्रम पद्धति(उत्पादन) अधिनियम, 1976 की धारा 13 की अनुपालना में जिले के हर उपखण्ड में एक विजीलेन्स कमेटी का गठन करेगी।
2. हरियाणा राज्य जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश देगा कि सबसे प्राथमिकता के कार्य बतौर यह बन्धुआ मजदूर की पहचान का काम अपने हाथ में ले तथा कार्यदलों के द्वारा उन क्षेत्रों की पहचान करायें जहाँ बन्धुआ मजदूरों का केन्द्र है तथा उन्हें मुक्त कराये, वे कालावधि में श्रमिकों के लिए नेशनल केयर लेबर इंस्टीट्यूट की सहायता से कैम्प आयोजित कर शिक्षा प्रदान करें।
3. श्रम पद्धति (उत्पादन) अधिनियम, 1976 के प्रावधानों को कार्यान्वित करने के लिए राज्य सरकार, विजीलेन्स कमेटियाँ एवं जिला मजिस्ट्रेट अराजनैतिक सामाजिक कार्यवाही समूहों एवं स्वैच्छिक संगठनों की सहायता लेंगे।
4. हरियाणा राज्य निर्णय के दिनांक से तीन माह के अन्दर, सचिव, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा तैयार की गई मार्गदर्शिका के आधार पर मुक्त किए गए श्रमिकों के लिए एक योजना या प्रोग्राम बनायेगी तथा यथासंभव उसे कार्यान्वित करेगी।
5. केन्द्र सरकार एवं हरियाणा राज्य पत्थर खदान एवं पत्थर पीसने के कार्य में लगे हुए श्रमिकों के लिए इस निर्णय में निर्धारित सिद्धान्तों के अनुसार न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठायेंगे।
6. यदि श्रमिकों को प्रत्येक ट्रक के भरने के हिसाब से भुगतान किया जाता है तो केन्द्र प्रवर्तन मशीनरी का कोई अधिकारी या अन्य अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि हर ट्रक में कितना क्यूबिक फीट पत्थर होना चाहिए, ताकि श्रमिकों को उसके हिसाब से वेतन मिल सके तथा उनको मिलने वाले वेतन में कोई धोखाधड़ी न हो।
7. केन्द्र सरकार केन्द्र प्रवर्तन मशीनरी के निरीक्षक अधिकारी या अन्य अधिकारी को निर्देश देगी कि वे सप्ताह में अचानक निरीक्षण करें कि क्या ट्रकों में निर्धारित वजन से ज्यादा वजन तो नहीं लादा जाता, यदि ऐसा पाया जाता है तो वे इसकी शिकायत उपयुक्त प्राधिकारी को की जाएगी तथा गलती करने वाले खान के मालिक, ठेकेदार अथवा जमादार के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही की जायेगी।
8. केन्द्र सरकार एवं हरियाणा राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि खान पट्टेदार एवं पत्थर पीसने का कार्य करने वाले मालिकों द्वारा श्रमिकों को वेतन, सरकार द्वारा निर्धारित दर से किया जा रहा है। सरकार का निरीक्षक दल कालावधि में यह जाँच करेगा कि श्रमिकों को निर्धारित वेतन दिया जा रहा है।
9. सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ वर्क्स एज्यूकेशन समय-समय पर फरीदाबाद जिले में पत्थर खदान एवं पत्थर पीसने की जगह के नजदीक सामाजिक कल्याण एव श्रम विधियों के तहत श्रमिकों को मिलने वाले अधिकारों तथा लाभों की शिक्षा श्रमिकों को प्रदान करेगी तथा इस दिशा में क्या कार्य किया गया इसकी सूचना न्यायालय को प्रत्येक तीन माह में देनी होगी।
10. केन्द्र सरकार एवं हरियाणा राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठायेगी कि पत्थर पीसने के कार्य से लगातार वायु को प्रदूषित नहीं किया जायेगा। इसके लिए या तो पानी का ड्रम, पत्थर पीसते समय पानी छिड़कने के लिए काम में लिया जायेगा अथवा धूल को सोखने वाली मशीन लगायी जायेगी।
11. केन्द्र सरकार एवं हरियाणा सरकार तुरन्त यह सुनिश्चित करेगी कि खान पट्टेदार तथा पत्थर की पिसाई करने वाले मालिक लोग, श्रमिकों को सुविधाजनक स्थान पर उपयुक्त बर्तनों में छाया के नीचे शुद्ध पानी की व्यवस्था करें, तथा प्रत्येक दिन उस बर्तन को खाली करके, साफ करके पुनः पानी से भरा जायेगा। सरकार पर्यवेक्षण करेगी कि इस निर्देश का कठोरतापूर्वक पालन किया जाये।
12. केन्द्र सरकार एवं हरियाणा राज्य यह सुनिश्चित करेगी कि शुद्ध पानी के बर्तनों की देखभाल के लिए लगाई गई स्त्रियों एवं बच्चों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाये।
13. केन्द्र एवं राज्य सरकार, हरियाणा खान पट्टेदार एवं पत्थर पिसाई कराने वाले मालिकों को निर्देश देंगी कि वे अप्रदूषित स्रोतों से पानी की सप्लाई कम करने की जगह टैंकर के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध करायें।
14. केन्द्र एवं राज्य सरकार हरियाणा खान अधिनियम, 1950 एवं उसके अन्तर्गत बनाये गये नियमों के अनुरूप पर्याप्त मात्रा में शौचालय एवं पेशाब गृह सुविधाएँ उपलब्ध करायें।
15. केन्द्र एवं राज्य सरकार, हरियाणा खान अधिनियम, 1952 एवं नियम 40 से 45-क के तहत उपयुक्त एवं पर्याप्त चिकित्सीय एवं प्राथमिक उपचार सुविधाएँ उपलब्ध करायें।
16. केन्द्र एवं राज्य सरकार हरियाणा यह सुनिश्चित करेंगी, कि जहाँ विस्फोटक द्वारा ब्लास्टिंग की जाती है, वहाँ श्रमिकों को खान व्यावसायिक प्रशिक्षण नियम, 1966 के तहत न केवल प्रशिक्षण दिलाया जाये वरन् उन्हें प्राथमिक अर्हताधारी होना चाहिए तथा उन्हें प्राथमिक सहायता सम्बन्धी सामग्री साथ में ले जानी चाहिए।
17. केन्द्र एवं राज्य सरकार तुरन्त इस दिशा में कदम उठायेंगे कि खान पट्टेदारों एवं पत्थर पीसने वाले मालिक द्वारा अपने श्रमिकों तथा उनके परिवारजनों को मुफ्त चिकित्सीय सहायता उपलब्ध करायें तथा आवश्यकता पड़ने पर परिवहन का खर्चा, दवाइयों का खर्चा तथा अस्पताल में भर्ती कराये जाने के खर्च का पुनर्भरण किया जाए।
18. केन्द्र एवं राज्य सरकार, हरियाणा यह सुनिश्चित करेंगी कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961मातृत्व लाभ (खान एवं सर्कस) नियम, 1963 एवं खान पालनागृह नियम, 1966 के सबंधित प्रावधानों को पत्थर खदान, पत्थर की पिसाई के काम में उनके मालिकों या पट्टेदारों द्वारा लागू किया जाय।
19. जैसे ही पत्थर खदान या पत्थर पिसाई के काम में लगाये गये श्रमिक के नियोजन के दौरान यदि कोई क्षति कारित होती है या कोई बीमारी लग जाती है, तो सम्बन्धित खान पट्टेदार या पत्थर पीसने का कार्य करने वाले स्वामी द्वारा केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के चीफ इंस्पेक्टर या इन्सपेक्टिंग ऑफिसर्स को तुरन्त सूचना दी जायेगी। ऐसा निरीक्षक अधिकारी उस कर्मकार को विधिक सहायता उपलब्ध करवायेगा ताकि वह प्रतिकर के लिए उपयुक्त न्यायालय के समक्ष दावा करने योग्य बन पाये। ऐसे दावे का प्रभावी रूप से अनुसरण किया जायेगा।
20. केन्द्र एवं राज्य सरकार के निरीक्षक अधिकारी पन्द्रह दिन में एक बार प्रत्येक पत्थर खदान या पत्थर पिसाई किए जाने वाले स्थानों का अवलोकन करेंगे तथा सुनिश्चित करेंगे कि क्या कोई कर्मकार क्षतिग्रस्त हुआ है या कोई श्रमिक किसी बीमारी से पीड़ित है, यदि ऐसी कोई स्थिति है, तो उसे चिकित्सीय या विधिक सहायता उपलब्ध करायेंगे।
21. यदि खण्ड 11, 13, 14 एवं 15 में दी गई जिम्मेवारियों को खान पट्टेदार या पत्थर पिसाई का कार्य करने वाले मालिक द्वारा निर्दिष्ट समयावधि में पूरा नहीं किया जाता, तो उसे केन्द्र या राज्य सरकार, हरियाणा द्वारा जैसा भी मामला हो, पूरा किया जायेगा।
• निर्देशों का निष्पादन :- उच्चतम न्यायालय ने श्री लक्ष्मीधर मिश्रा संयुक्त सचिव, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार को निम्न कार्यों को निष्पादित करने के लिए कमिश्नर नियुक्त किया –
(i) श्री लक्ष्मीधर फरीदाबाद जिले की पत्थर खदान एवं पत्थर पीसने के कार्यों को देखेंगे तथा यह सुनिश्चित करेंगे कि क्या उनसे बलात् श्रम लिया जा रहा है तथा क्या वे बन्धुआ मजदूर हैं। वह बन्धुआ बनाये गये श्रमिकों के विवरण तैयार करेगा तथा यह सुनिश्चित करेगा कि क्या वे वहाँ आगे काम करने के इच्छुक हैं अथवा नहीं। यदि वह यह पाता है कि वे जाना चाहते हैं, तो वह उनके विवरण जिला मजिस्ट्रेट, फरीदाबाद को देगा। जिला मजिस्ट्रेट उन्हें मुक्त कराने के लिए आवश्यक प्रबन्ध करेगा तथा उनके घर वापिस जाने हेतु परिवहन की सुविधा उपलब्ध करायेगा, राज्य सरकार जिला मजिस्ट्रेट को आवश्यक कोष उपलब्ध करायेगी।
(ii) वह यह सुनिश्चित करेगा कि पत्थर खदान, पत्थर पिसाई कराने वाले स्वामी या खनन् पट्टेदार अथवा जमादार द्वारा, क्या काम करने वाले श्रमिकों को कोई राशि अग्रिम भुगतान की है? यदि की है, तो अब कितना पैसा मालिक/ठेकेदार / जमादार का श्रमिकों के विरुद्ध बकाया है।
(iii) वह नमूना जाँच द्वारा यह सुनिश्चित करेगा कि पत्थर खदान या पत्थर पिसाई के कार्य में लगायेगये श्रमिकों को वास्तविक रूप में न्यूनतम मजदूरी से कम वेतन नहीं दिया जा रहा तथा न्यूनतम मजदूरी के निर्धारणतथा भुगतान सम्बन्धी निर्देशों को कार्यान्वित किया जा रहा है।
(iv) वह यह जाँच आयोजित करेगा कि क्या फरीदाबाद जिले की पत्थर खदान एवं पत्थर पीसने के कार्य में का ठेका श्रमिकों अथवा अन्तर्राज्यीय प्रवास श्रमिकों को नियोजित किया गया है तथा वहाँ यदि ठेका श्रम अधिनियम अथवा/एवं अन्तर्राज्यीय प्रवास कर्मकार अधिनियम लागू होता है, तो उसकी रिपोर्ट न्यायालयको देगा।
(v) वह यह सुनिश्चित करेगा कि शुद्ध पेव योग्य जल की आपूर्ति सम्बन्धी न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की पालना, पत्थर खदान एवं पत्थर पिसाई किए जाने वाले स्थानों पर की जा रही है अथवा नहीं तथा शुद्ध पानी श्रमिकों को उपलब्ध करवाया जा रहा है।
(vi) वह यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायालय द्वारा शौचालय या पेशाब गृह सम्बन्धी निर्देशों की पालना की जा रही है अथवा नहीं।
(vii) वह यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायालय द्वारा चिकित्सीय एवं विधिक सहायता सम्बन्धी निर्देशों की पालना की जा रही है अथवा नहीं।