:-भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25 में प्रारम्भ से ही घोषित किया गया है कि प्रतिफल के बिना किया गया करार शून्य है।

:-इंग्लैण्ड में भी “बिना प्रतिफल के दिये गये वचन प्रवर्तक नही होते,क्योकि वे आनुग्रहिक होते हैं। Rann v Hughes

:-परिभाषा:-

प्रतिफल को कई प्रकार से परिभाषित किया गया है।

:-सबसे सरल परिभाषा ब्लैकस्टोन की कमेंट्रीज में है : “प्रतिफल ऐसे मुआवजे को कहते हैं जो संविदा का एक पक्षकार दूसरे को देता है।” दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रतिफल वचन का मूल्य है।

:-पोलक के शब्दों में “प्रतिफल ऐसे मूल्य को कहते हैं जिसके बदले में दूसरे पक्षकार का वचन प्राप्त किया जाता है और इस प्रकार से मूल्य के लिये दिया गया वचन प्रवर्तनीय होता है।”

:-एक अन्य सरल परिभाषा न्यायमूर्ति पैटर्सन की है।”प्रतिफल वह वस्तु है जिसका विधि की दृष्टि में कुछ मूल्य है… यह वादी का कुछ लाभ हो सकता है अथवा प्रतिवादी का कुछ अहित” ।

:-वचनदाता की वांछा पर : वचनात्मक विबन्ध (At desire of promissory, promissory estoppel):-

धारा 2(घ) में दी गयी परिभाषा स्पष्ट रूप से इस बात पर जोर देती है कि कार्य या प्रविरति ऐसी होनी चाहिये जो वचनदाता की वांछा पर की गयी हो।

:-दूसरे शब्दों में, जो कार्य वचनदाता की वांछा पर न किया गया हो वह प्रतिफल नहीं हो सकता।

:-Durga Prasad v Baldeo उपयुक्त उदाहरण है :वादी को कलेक्टर के आदेश पर एक बाज़ार और दुकानें बनवानी पड़ीं, ये दुकानें कुछ व्यापारियों को मिलीं जिन्होंने दुकान बनाने के बदले में यह वचन दिया था कि इन दुकानों के माध्यम से किये गये व्यापार पर उसे कुछ कमीशन दिया जाता रहेगा। व्यापारियों ने कमीशन नहीं दिया और वादी उसे प्राप्त करने के लिये वाद लाया।

इसे खारिज करते हुए न्यायाधीश ओल्डफील्ड ने कहा : “इस वचन के लिये जो आधार कहा जाता है, वह यह है कि वादी ने यह गंज (मार्केट) अपने खर्चे पर बनवायी परन्तु यह स्पष्ट है कि यह कार्य प्रतिवादियों की वांछा पर नहीं किया गया था क्योंकि यह कलेक्टर के आदेश का पालन था। “

:-प्रार्थना पर किये गये कार्य-

:-दूसरी ओर वचनदाता की वांछा पर किया गया कार्य पर्याप्त प्रतिफल होता है, चाहे इससे वचनदाता को कोई भी व्यक्तिगत लाभ न प्राप्त हुआ हो।

इसका उदाहरण कलकत्ता उच्च न्यायालय के Kedar Nath v Gorie Mahomed” में मिलता है-

:हावड़ा में एक नागरिक हाल बनाने का सुझाव स्वीकार किया गया, अगर पर्याप्त चन्दा मिल सके। इस उद्देश्य के लिये हावड़ा नगर महापालिका के कमिश्नर ने एक सूची बनाकर चन्दा इकट्ठा करने की कोशिश की। काफी लोगों ने चन्दा देने का वचन दिया जिसमें गोरी मोहम्मद भी एक था और उसने ₹100 देने का वचन दिया था। यह देखते हुए कमिश्नर ने इमारत बनवाना आरम्भ कर दिया। गोरी मोहम्मद ने अपना चन्दा नहीं दिया और इसे वसूलनेके लिये उस पर वाद लाया गया।

उसे उत्तरदायी ठहराया गया। जिन व्यक्तियों से चन्दा माँगा गया था, उन्हें मालूम था कि चन्दे का उद्देश्य क्या है, उन्हें यह भी मालूम था कि उनके चन्दे के आधार पर ठेकेदार को भुगतान करने का उत्तरदायित्व लिया जायेगा। वचन यह था : “आप द्वारा हाल बनाये जाने के प्रतिफल में मैं चन्दा देने का वचन देता हूँ।” वादी का हाल के बनवाने के लिये ठेका देना, एक ऐसा कार्य था जो सभी चन्दा देने वालों, जिनमें प्रतिवादी भी सम्मिलित था, की वांछा पर किया गया था।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *