अब्दुल फताह मोहम्मद इशहाक अन्य बनाम रसोमय धर चौधरी अन्य[30 (1894) 22 आई0 ए0 76]
परिचय – इस वाद में एक शाश्वत पारिवारिक बन्दोबस्त (Perpetual Family Settlement) के विधिक होने अथवा न होने के प्रश्न पर विचार किया गया है जो वक्फ (Waqf) के रूप में किया गया था।
तथ्यों का वर्णन-21 दिसम्बर, 1868 को अब्दुल रहमान और अब्दुल कादिर नाम के दो भाइयों ने जो सुन्नी मुसलमानों के हनफी सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे अपनी सम्पत्ति का एक ऐसा शाश्वत पारिवारिक बन्दोबस्त (Perpetual family Settlement) किया जो वक्फ के रूप में था। प्रस्तुत वाद के अपीलार्थी उनके बेटे थे, जिन्हें उस बन्दोबस्त के अन्तर्गत वादगत सम्पत्ति में स्वत्व (Interest) उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था। प्रत्यर्थियों में उक्त वक्फ के करने वाले और व्यक्ति थे जो वादगत सम्पत्ति के उक्त बन्दोबस्त में अपने स्वत्व का दावा करते थे। निम्र अदालत ने इस वाद में यह निर्णय दिया कि वक्फनामा विधिक था, इसलिये उसने वाद डिक्री कर दिया। अपील में हाईकोर्ट ने निम्न अदालत का निर्णय रद्द कर दिया। इस प्रकार प्रिवी काउन्सिल में अपील प्रस्तुत की गई।
निर्णय – प्रिवी काउन्सिल के माननीय न्यायाधीशों ने निर्णय देते हुए कहा कि शाश्वत पारिवारिक बन्दोबस्त, जो वक्फ के रूप में किया गया हो और जिसके सदके (दान) का प्रावधान दिखावटी (Illusory) हो, मुस्लिम कानून के अन्तर्गत वैध नहीं है। अपीलार्थी की ओर से यह अपील की गई कि वे पैगम्बर मोहम्मद के इस निदेश (Precept) पर विश्वास रखते हैं, जिसमें कहा गया था कि अपने परिवार में सदका बांटने का पुण्य फकीरों को भी बांटने से ज्यादा है, अर्थात् सबसे धर्मनिष्ठ सदाकत (दान) वह है जो व्यक्ति अपने परिवार को देता है। माननीय न्यायाधीशों ने कहा कि उक्त प्रवचन आदरणीय है और वक्फ के कानून को धारा को बदलने के लिये एक आधार भी है। लेकिन मुस्लिम कानून, जैसा कि भारत में प्रचलित है, दिखावटी निदेशों पर आश्रित नहीं है। मुस्लिम कानून के महान विधि शास्त्रियों के प्रति यह धारणा बड़ी गलत है कि उन्होंने एक हाथ से उपहार देकर दूसरे हाथ से उसे वापस लेने की कल्पना की थी। अपीलार्थियों की ओर से दलील को पुष्टि में कानून की अधकचरी व्याख्या की गई जो मानने योग्य नहीं थी। मुस्लिम कानून को विशद व्याख्या करते हुए माननीय न्यायाधीशों ने यह मत व्यक्त किया कि यदि वक्फ सम्पत्ति के शाश्वत बन्दोबस्त द्वारा स्थापित किया गया है, जिसमें सदके के लिये बहुत कम प्रावधान है, तो यह दिखावटी दान (Illusory Gift) कहा जायेगा जो मुस्लिम कानून के अन्तर्गत विधिपूर्ण नहीं है, अतएव अपील खारिज की गयी।
प्रतिपादित सिद्धान्त – (1) पैगम्बर मोहम्मद के निदेश (Precept) आदरणीय हैं और उन्हें उचित रूप से लागू किया जाना चाहिये। मुस्लिम कानून के महान विधि शास्त्रियों के प्रति यह धारणा बड़ी गलत है कि वक्फ के मामले में उन्होंने एक हाथ से दान देने और दूसरे हाथ से उसे वापस लेने की कल्पना की थी।
(2) मुस्लिम कानून के अन्तर्गत शाश्वत पारिवारिक बन्दोबस्त, जो वक्फ के रूप में किया गया हो और जिसमें सदके (दान) का प्रावधान दिखावटी (Illusory) हो, विधिपूर्ण नहीं है।
टिप्पणी – वर्तमान समय में, अब्दुल फता मोहम्मद के वाद में प्रतिपादित विधिक सिद्धान्त मान्य नहीं है। इस वाद में किये गये निर्णय के प्रभाव को समाप्त करने के लिये सन् 1913 में मुसलमान वक्फ मान्यकारी अधिनियम (The Mussalman Waqf Validating Act) 1913 पारित किया गया।