अपकृत्य विधि :-अर्थ (Meaning):-अपकृत्य को अंग्रेजी में टार्ट कहते है जो लैटिन शब्द टार्टम से बना है, जिसका अर्थ है- तोड़ना या मरोड़ना।
उदाहरण– मानहानि, हमला, प्रहार, उपेक्षा आदि अपकृत्य के कुछ उदाहरण है।
:-परिभाषा (Definition):-परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 2 (m) के अनुसार- अपकृत्य एक ऐसा सिविल अपकार है जो केवल संविदा भंग या न्यास भंग नहीं है।
सामण्ड – अपकृत्य एक सिविल दोष है, जिसका उपचार नुकसानी की कार्यवाही है और जो केवल संविदाभंग, न्यासभंग या किसी अन्य प्रकार का भंग नहीं है।
विनफील्ड–
1) अपकृत्य का दायित्व कर्तव्य भंग से उत्पन्न होता है।
2) यह कर्तव्य आमतौर पर सामान्य व्यक्ति के प्रति होता है
3) इसके भंग होने पर अनिर्धारित नुकसानी का उपचार प्राप्त किया जा सकता है।
:-अपकृत्य के आवश्यक तत्व:-
1) कार्य या लोप।
2) विधिक क्षति।
1) कार्य या लोप :- अपकृत्य के लिये जरूरी है कि प्रतिवादी द्वारा कोई ऐसा कार्य या लोप हुआ हो जिससे वादी के किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन हुआ हो। प्रतिवादी द्वारा किया गया कार्य या लोप दोषपूर्ण माना गया हो। यदि केवल नैतिक अथवा सामाजिक अपकार घटित हुआ है तो उसके लिए कोई उत्तरदायित्व नहीं हो सकता।
उदाहरण – यदि कोई व्यक्ति किसी डूबते हुये व्यक्ति को बचाने में विफल रहता है तो यह केवल नैतिक अपकार है। इसके लिए तब तक उत्तरदायित्व नहीं हो सकता जब तक यह साबित न हो कि उस डूबते हुये व्यक्ति को बचाने के लिये प्रतिवादी विधिक रूप से बाध्य था।
2) विधिक क्षति :- यदि प्रतिवादी के किसी कार्य से वादी को विधिक क्षति हुई है तो वह प्रतिवादी के विरुद्ध वाद ला सकता है। वाद लाने के लिये केवल यह साबित करना पर्याप्त नहीं है कि प्रतिवादी के कार्य से वादी को कुछ नुकसान हुआ है बल्कि यह जरूरी है कि वादी के किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन हुआ हो।
:-अपकृत्य विधि की विशेषताएं :–
1) अपकृत्य किसी व्यक्ति के कानूनी अधिकारों या कर्तव्यों के उल्लंघन से संबंधित विधि है।
2) अपकृत्य उन अनुचित कार्यों से अलग होता है जो संविदा भंग के अंतर्गत आते हैं।
3) अपकृत्य का उपचार दीवानी न्यायालय में वाद दायर करके प्राप्त किया जा सकता है।
4) अपकृत्य और अपराध दोनों अलग-अलग हैं।
5) यह समाज के सभी व्यक्तियों के विरुद्ध होता है, समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपकृत्य न करने के लिए बाध्य हैं।
6) अपकृत्य का मुख्य उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति को उस अवस्था में लाना है, जिसमें वह अपकृत्य के कृत्य से पहले था।
:-भारत में अपकृत्य विधि :- भारत में अभी अपकृत्य विधि का अधिक विकास नहीं हुआ है। हैं। बहुत कम मामले न्यायालयो में लाये जाते इसके कई कारण है-
1) भारत में अधिकतर लोगों को अपने अधिकारों के बारे में बहुत व कम जानकारी है।
2) यहां कर्तव्यो को अधिकारों से अधिक महत्व दिया जाता है।
3) भारतवासियों में सहनशीलता तथा दूसरों के दोषो को क्षमा करने की प्रवृत्ति होना।इसलिए वे क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के बारे में बहुत कम सोचते है। यदि वाद लाया भी जाये तो उसमें इतना समय और धन खर्च होता है कि साधारण व्यक्ति वाद लाने में हिचकिचाते है।
केस :- एम सी मेहता बनाम भारत संघ :- उच्चतम न्यायालय ने रायलैंड्स बनाम फ्लेचर (1868) के मामले में में दिये गए कठोर दायित्व के सिद्धांत को भारत में कई परिस्थितियों में अमान्य ठहराया और पूर्ण दायित्व का नया सिद्धांत विकसित किया।
केस :- इंडियन कौंसिल फॉर एनवायरो लीगल एक्शन बनाम भारत संघ :- पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति में भी एम सी मेहता के वाद में विकसित पूर्ण दायित्व के सिद्धांत को लागू किया और प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को निर्देश दिया कि भारत सरकार द्वारा निर्धारित मुआवजा दे और ऐसी इकाइयों को बंद कर दिया जाये और उनकी संपत्ति को जब्त कर लिया जाए।